सूरत में रहने वाली 82 वर्षीय कंचन देवी बैद ने खाना पीना छोड़ दिया है और अपनी मृत्य का इंतजार कर रही हैं. उन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए 'संथारा' अपना लिया है. जैन समाज में अक्सर वृद्ध लोग अपनी इच्छा से मोक्ष प्राप्ति के लिए संथारा अपना लेते हैं. इस प्रथा को जैन समुदाय में "मृत्यु का त्योहार" कहा जाता है. अपना जीवन समाप्त करने की इच्छुक कंचन बैद ने 11 मई को उपवास शुरू किया. ये जानकारी उनके परिवार ने दी. इस बारे में उनकी पोती निवेदिता नवलखा ने कहा, "संथारा हमारी संस्कृति का हिस्सा है और हमारे लिए कोई नई बात नहीं है. मैंने सुना है कि हमारे परिवार में बुजुर्ग इसे पहले भी देख चुके हैं." उन्होंने बताया कि जैन धर्म में "संथारा" सभी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को वापस लेने के द्वारा पुनर्जन्म-प्रभावित कर्म को नष्ट करने का एक साधन है.
कंचन बैद के बेटे पुष्पराज बैद ने कहा कि जब मृत्यु निकट होती है, तो हम अपनी आत्मा को हमारे शरीर को छोड़ने की अनुमति देकर इसे गले लगाते हैं. यह पीढ़ियों से हो रहा है और हमने इस अभ्यास का पालन अपने बुजुर्गों से सिखा है'. हम जैन धर्म की मान्यताओं और प्रथाओं का पालन करते हुए जीवन जीना चाहते हैं. हमारे धर्म में हम 'तपस्या' में विश्वास करते हैं. हम केवल इस अवधि के दौरान पानी पीते हैं. हमारे लिए सबसे बड़ी तपस्या 'संथारा' है. कंचन बैद के बेटे ने कहा कि, 'जब कोई व्यक्ति महसूस करता है कि उसे ठीक करने के लिए कोई भी दवाई काम नहीं कर रही है और मृत्यु निकट है, वो भोजन छोड़ देते हैं और "संथारा" का पालन करते हैं.
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पुष्पराज बैद ने बताया कि 'मां हमारे परिवार की चौथी पीढ़ी की महिला हैं जिन्होंने संथारा अपनाया है. चार पीढ़ियों से महिलाएं संथारा के जरिए मोक्ष ले रही हैं. मेरी मां की दादी ने भी संथारा किया था.' जैन समुदाय के एक सदस्य ने कहा, 'संथारा करने की अनुमति उसी व्यक्ति को है जो अपनी मर्जी से यह करना चाहता है.