नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को राज्यों (States) और केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) को निर्देश दिया कि वे उन यौनकर्मियों की पहचान की प्रक्रिया जारी रखें जिनके पास पहचान का प्रमाण नहीं है और जिन्हें सूखा राशन नहीं मिल पा रहा है. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव (L Nageswara Rao) और न्यायमूर्ति बीआर गवई (BR Gavai) की पीठ ने कहा कि राज्यों द्वारा दी गई स्थिति रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े यथार्थवादी नहीं हैं और आदेशों के कार्यान्वयन के लिए राज्यों को राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की सूची पर भरोसा किए बिना समुदाय आधारित संगठनों से परामर्श करने के प्रयास करने होंगे. Supreme Court: उच्चतम न्यायालय में केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार पर कानून का बचाव किया
शीर्ष अदालत ने राज्यों को तीन सप्ताह में इस संबंध में अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा, ''राशन कार्ड के अलावा, राज्य नाको और समुदाय आधारित संगठनों द्वारा पहचानी गईं यौनकर्मियों को सत्यापन के बाद मतदाता कार्ड जारी करने के लिए भी कदम उठाएंगे.''
पीठ ने कहा, ''राज्य सरकारें, केंद्र शासित प्रदेश पहचान प्रमाणपत्र पर जोर दिए बिना सूखा राशन देना जारी रखेंगे.'' पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र द्वारा पेश स्थिति रिपोर्ट को देखने के बाद आवश्यक नहीं है कि हर राज्य की स्थिति रिपोर्ट को अलग से लिया जाए.
पीठ ने कहा, ''हम सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देते हैं कि वे यौनकर्मियों की पहचान की प्रक्रिया जारी रखें जिनके पास पहचान प्रमाण नहीं है और जो सूखे राशन से वंचित हैं.'' शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि पश्चिम बंगाल में 6,227 यौनकर्मी हैं, जिसके बाद ये निर्देश दिए गए. राज्य ने पीठ को बताया कि यौनकर्मियों को कूपन दिए गए हैं जिससे वे पांच किलो राशन प्राप्त कर सकती हैं.
पीठ ने कहा, ''अन्य राज्यों की संख्या को देखते हुए, हम पश्चिम बंगाल द्वारा पेश 6,227 की संख्या से आश्वस्त नहीं हैं. हम पश्चिम बंगाल में नाको की मदद से यौनकर्मियों की फिर से पहचान करने और किसी अन्य पहचान पत्र पर जोर दिए बिना उन्हें राशन कार्ड जारी करने का निर्देश देते हैं.'' गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण यौनकर्मियों के समक्ष पेश आने वाली समस्याओं को उठाया गया है.
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