
यह आरोप है कि नाटो ने पूर्वी यूरोप में अपना विस्तार करके रूस को धोखा दिया, जिससे मॉस्को के लिए खतरा पैदा हुआ. रूस ने यूक्रेन में किए गए अपने हमले को इसी तर्क के सहारे सही ठहराया है. आखिर इस दावे में कितनी सच्चाई है?नाटो के नेता 24 और 25 जून को नीदरलैंड्स के द हेग में रक्षा खर्च में वृद्धि के विषय पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए. इस दौरान, यूक्रेन के लिए समर्थन उनके एजेंडे में सबसे ऊपर था. दरअसल, रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर हमला शुरू किया और तीन वर्ष बाद भी यह युद्ध जारी है. जैसे-जैसे यह लड़ाई खिंचती जा रही है, अमेरिका लगातार अपने नाटो सहयोगियों से यह मांग कर रहा है कि वे इस गठबंधन के खर्चों का बड़ा हिस्सा खुद उठाएं. नाटो के सदस्य देश यूक्रेन को जरूरी सैन्य और वित्तीय सहायता दे रहे हैं.
इसी दौरान, पिछले करीब 4 वर्षों में, नाटो को लेकर कई झूठे बयान और गलत जानकारियां फैलाने की कोशिश की गई हैं. डीडब्ल्यू फैक्ट चेक के तहत, इन्हीं कुछ दावों की सच्चाई जानने का प्रयास किया गया.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुताबिक, नाटो रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, खासकर शीत युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में नाटो के विस्तार के बाद से. इस विस्तार के दौरान नाटो में वे देश शामिल हुए हैं जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे या कम से कम सोवियत के प्रभाव में थे.
यूक्रेन और रूस के बीच भी गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं. पुतिन के मुताबिक, वह 2014 से यूक्रेन में इसलिए दखल दे रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन नाटो और यूरोपीय संघ के करीब आ रहा है या इस गठबंधन में उसके शामिल होने की संभावना है. इसी तर्क के आधार पर फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन में अपनी तथाकथित ‘विशेष सैन्य कार्रवाई' शुरू की.
मार्च 2000 की शुरुआत में, रूसी राष्ट्रपति के तौर पर बीबीसी से बात करते हुए पुतिन ने इस बात पर जोर दिया था कि वह नाटो के विरोधी नहीं हैं, लेकिन उन्होंने नाटो गठबंधन में भूतपूर्व पूर्वी यूरोप के देशों के शामिल होने को लेकर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें उस समय तक पोलैंड, हंगरी और चेक गणराज्य सदस्य के रूप में शामिल हो चुके थे.
नाटो ने कई बार कहा कि यह गठबंधन खुद की सुरक्षा के लिए बना है, लेकिन पुतिन आश्वस्त नहीं हुए. वह इस विस्तार को तथाकथित ‘टू प्लस फोर एग्रीमेंट' के मद्देनजर विश्वासघात मानते हैं. यह समझौता सितंबर 1990 में हुआ था, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के पुनः एकीकरण को लेकर नियम तय किए गए थे. इस समझौते पर उन चार सहयोगी देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ ने हस्ताक्षर किए, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी जर्मनी पर अपना नियंत्रण बनाए रखा था.
पुतिन के मुताबिक, पश्चिमी शक्तियों ने वादा किया था कि नाटो में उन देशों या इलाकों को शामिल नहीं किया जाएगा जो कभी सोवियत संघ के नियंत्रण में थे. नाटो ने हमेशा इस दावे का खंडन किया है.
नाटो ने कथित तौर पर सोवियत संघ से क्या वादा किया था?
जर्मनी के संबंध में अंतिम समझौते पर संधि या टू प्लस फोर समझौते ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी विदेशी यानी गैर-जर्मन सैनिक या परमाणु हथियार, पूर्वी जर्मनी के क्षेत्र में स्थायी रूप से तैनात नहीं किए जाएंगे. हालांकि, जर्मनी के गृह मंत्रालय ने कहा कि इस समझौते में ‘नाटो के पूर्व की ओर विस्तार या अन्य सदस्यों को शामिल करने के बारे में कोई बाध्यकारी दावा नहीं किया गया था.'
वहीं, उस दौर में जो अनौपचारिक वादे और बयान दिए गए थे, वे क्या थे, उनका असल मतलब क्या था और उन्हें कैसे समझा जाए, ये सब बातें तब से ही राजनेताओं और इतिहासकारों के बीच तीखी बहस का विषय बनी हुई हैं.
2007 में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में बोलते हुए पुतिन ने नाटो के पूर्व महासचिव मानफ्रेड वोर्नर का जिक्र किया था. वोर्नर ने मई 1990 में ब्रसेल्स में दिए गए भाषण में कहा था, "सिर्फ यह तथ्य कि हम संघीय गणराज्य (जर्मनी) की सीमाओं के बाहर नाटो सेनाएं तैनात ना करने को तैयार हैं, सोवियत संघ को मजबूत सुरक्षा की गारंटी देता है.”
इस विषय पर 2016 में जर्मन सरकार के स्थिति पत्र में बताया गया है, "न तो इस भाषण में और न ही किसी अन्य बिंदु पर (वोर्नर) ने घोषणा की थी कि नाटो का पूर्व की ओर कोई विस्तार नहीं होगा.”
पुतिन और उनके सहयोगियों के लिए, फरवरी 1990 में जर्मनी और अमेरिका के वरिष्ठ नेताओं ने जो दो बातें कहीं थीं, वो बहुत मायने रखती हैं. ये बातें रिकॉर्ड में भी शामिल हैं: पहली बात, पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर का कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव मिखाइल गोर्बाचोव को दिया गया प्रस्ताव, जिसमें उन्होंने ‘यह आश्वासन दिया था कि नाटो का अधिकार क्षेत्र अपनी वर्तमान स्थिति से एक इंच भी पूर्व की ओर नहीं बढ़ेगा'. दूसरी बात यह कि पश्चिमी जर्मनी के पूर्व विदेश मंत्री हंस-डीट्रिष गेंशर ने ‘नाटो का विस्तार न करने' की प्रतिबद्धता जताई थी.
क्या नाटो के वादों को संदर्भ से हटाकर देखा जा रहा है?
लाइबनित्स इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी हिस्ट्री के टिम गाइगर का तर्क है कि नाटो के संदर्भ में कही गई इन बातों को उनके मूल संदर्भ से हटाकर देखना सही नहीं है.
जर्मन सेना ‘बुंडेसवेयर' की ओर से लिखते हुए गाइगर ने तर्क दिया कि बेकर और गेंशर ने जो सुझाव दिए थे, उनका मकसद सिर्फ यह दिखाना था कि जर्मनी के एकीकरण पर सोवियत संघ की चिंताओं को दूर करने के लिए पश्चिमी जर्मनी कितनी कोशिश कर रहा था. हालांकि, ये सुझाव कभी भी जर्मनी या अमेरिका की आधिकारिक विदेश नीति का हिस्सा नहीं थे.
उन्होंने बताया कि दो महीने के भीतर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू बुश और पश्चिमी जर्मनी के चांसलर हेल्मुट कोल ने इन विचारों को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया था, क्योंकि वे किसी देश के गठबंधन चुनने की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते थे.
सीएनएएस ट्रांसअटलांटिक सिक्योरिटी प्रोग्राम के वरिष्ठ सदस्य जिम टाउनसेंड भी इस बात से सहमत हैं. टाउनसेंड ने 1990 के दशक में नाटो के साथ कई अलग-अलग पदों पर काम किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "यह सब जर्मनी और जर्मनी के एकीकरण के बारे में था.”
गोर्बाचोव ने खुद अक्टूबर 2014 में दिए एक साक्षात्कार में इसकी पुष्टि की थी. उन्होंने कहा था, "नाटो के विस्तार के विषय पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई थी. एक भी पूर्वी यूरोपीय देश ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, यहां तक कि 1991 में वारसॉ संधि के समाप्त हो जाने के बाद भी नहीं. पश्चिमी नेताओं ने भी इस मुद्दे को नहीं उठाया था.”
गोर्बाचोव: '1990 की भावना का उल्लंघन'
मैरीलैंड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के एसोसिएट प्रोफेसर जोशुआ शिफ्रिंसन, नाटो के विस्तार पर चल रही बहस में एक नया दृष्टिकोण पेश करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि पुतिन के सिद्धांत को गोर्बाचोव द्वारा कथित तौर पर खारिज करने वाले बयान को भी उसके वास्तविक संदर्भ से हटाकर देखा गया है.
पूर्व सोवियत राष्ट्रपति ने 2014 के अपने उसी साक्षात्कार में साफ कहा था कि 1990 के दशक में नाटो का पूर्व की ओर बढ़ना ‘शुरुआत से ही एक बड़ी गलती' थी. उन्होंने इसे ‘1990 में हमें दिए गए आश्वासनों और बयानों की भावना का सीधा उल्लंघन' भी बताया.
शिफ्रिंसन ने जिन दस्तावेजों का अध्ययन किया है उनमें मार्च 1991 की एक बैठक की बातें भी शामिल हैं. नाटो में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों की इस बैठक के विवरण को पहले गोपनीय रखा गया था. जर्मन पत्रिका ‘डेय श्पीगल' ने भी इस पर रिपोर्ट दी थी. इसमें जर्मन प्रतिनिधि युर्गन क्रोबोग ने कहा था: "हमने ‘टू प्लस फोर' बातचीत के दौरान यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था कि हम नाटो को एल्बे नदी से आगे नहीं बढ़ाएंगे. इसलिए, हम पोलैंड और दूसरे देशों को नाटो का सदस्य नहीं बना सकते थे.”
डीडब्ल्यू ने इस बैठक की तस्वीरें भी देखी हैं. बैठक के विवरण के मुताबिक, क्रोबोग के किसी भी सहकर्मी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी. अमेरिकी प्रतिनिधि रेमंड साइट्ज ने अपने बयान में यह भी कहा था, "हमने सोवियत संघ के साथ ‘टू प्लस फोर' वार्ता और अन्य बातचीत में यह स्पष्ट कर दिया था कि हम पूर्वी यूरोप से उनके हटने का कोई फायदा नहीं उठाएंगे.”
शिफ्रिंसन के मुताबिक, यह इस बात का सबूत है कि नाटो ने न केवल पूर्वी जर्मनी से विदेशी सैनिकों को बाहर रखने की प्रतिबद्धता जताई थी, बल्कि ‘लोग सामान्य रूप से पूर्वी यूरोप के भविष्य के बारे में सोच रहे थे.'
अमेरिकी थिंक टैंक डिफेंस प्रायोरिटीज के लिए रूस और नाटो के बीच संबंधों का विश्लेषण करने वाले बेंजामिन फ्रीडमैन ने कहा, "अमेरिका ने कभी यह स्पष्ट वादा नहीं किया था कि हम नाटो का विस्तार कभी नहीं करेंगे, लेकिन हमने कहीं न कहीं रूसियों को यह संकेत दे दिया था और मुझे लगता है कि इससे वे परेशान हो गए.”
क्या नाटो ने रूस को युद्ध के लिए मजबूर किया?
इस बहस के बावजूद, शिफ्रिंसन ने कहा, "यह पूरी तरह सच है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया. आप स्वीकार कर सकते हैं कि आश्वासन दिए गए थे और बाद में उन्हें रद्द कर दिया गया और फिर भी रूसी व्यवहार को उचित नहीं ठहराया जा सकता.”
फ्रीडमैन ने कहा, "यूक्रेन में नाटो का विस्तार या इसके विस्तार की संभावना, युद्ध की एक बहुत बड़ी वजह थी. यह बेशक अकेली वजह नहीं थी, लेकिन एक मुख्य कारण जरूर था.” उन्होंने जोर देकर कहा, "किसी चीज के ‘कारण' के बारे में बताने और किसी पर ‘दोष' या ‘नैतिक जिम्मेदारी' थोपने में अंतर होता है.”
पेंटागन और नाटो में काम करने के बाद थिंक टैंक ‘अटलांटिक काउंसिल' में शामिल हुए टाउनसेंड भी रूस को स्पष्ट रूप से आक्रामक मानते हैं. उन्होंने कहा, "हमने रूसियों को परेशान करने के लिए कुछ भी नहीं किया. हम उस समय बहुत सावधानी बरत रहे थे और उन दिनों उन्होंने हमें आगे बढ़ने की इजाजत दे दी थी. जब तक पुतिन ने म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में अपना भाषण नहीं दिया, तब तक उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई थी. इसके बाद ही उन्हें समस्या होने लगी.”
टाउनसेंड के मुताबिक, अगर नाटो ने कोई गलती की है, तो वह बहुत अलग तरह की है. नाटो ने अगर कोई ऐसी कार्रवाई की जिससे यूरोपीय सुरक्षा प्रभावित हुई, तो वह उसकी कमजोर तैयारी के कारण थी.”