नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर लोकपाल की ओर से कहा गया है कि उसकी पीठ द्वारा पारित किसी आदेश पर पुनर्विचार की याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे संबंधित कानून में पुनर्विचार का प्रावधान नहीं हैं। एक आधिकारिक आदेश में यह कहा गया है।
दरअसल लोकपाल के पास उसके आदेशों पर पुनर्विचार या समीक्षा की मांग करने वाली कई शिकायतों आ रही हैं, जिन्हें देखते हुए लोकपाल ने यह कहा है।
लोकपाल के तीन सदस्यों-न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी, न्यायमूर्ति डीके जैन और न्यायमूर्ति आईपी गौतम की समिति का गठन किया गया था जिसे पीठ के द्वारा पारित आदेशों पर पुनर्विचार के अनुरोधों से संबंधित नीति के बारे में विचार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
लोकपाल के अध्यक्ष पिनाकी चंद्र घोष द्वारा गठित समिति ने छह अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
सोमवार को जारी आदेश में कहा गया, ‘‘समिति की राय है कि लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून, 2013 में पुनर्विचार के व्यापक अधिकार नहीं होने के कारण, भारत के लोकपाल की पीठ द्वारा पारित आदेश पर पुनर्विचार के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’
समिति ने रिपोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार से अनुरोध किया जा सकता है कि वह लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून में पुनर्विचार के अधिकार को शामिल करने के बारे में विचार करे।
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