बड़े बंदर आज जमीन पर रहते हैं लेकिन हमेशा से वे ऐसे नहीं थे. उनके मस्तिष्क में बड़े बदलाव हुए जिनके बाद वे जमीन पर रहने लगे.करीब डेढ़ करोड़ साल पहले बंदरों के मस्तिष्क में ऐसे बदलाव आने शुरू हुए, जिनके जरिये उन्होंने बदलते वातावरण के मुताबिक खुद को ढाला और ज्यादा समय जमीन पर बिताना शुरू किया. वैज्ञानिकों ने 3.6 करोड़ साल पुरानी खोपड़ियों के अवशेषों से मौजूदा बंदरों के मस्तिष्क की तुलना के बाद यह पता लगाया है.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बंदरों के वातावरण के मुताबिक खुद को ढालने के बारे में यह दिलचस्प शोध किया है. अध्ययन में बबून, मैकाक और मैंड्रिल जैसे बंदरों की उन प्रजातियों का अध्ययन किया जिन्हें एक समूह के रूप में प्राचीन युग के बंदर कहा जाता है.
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अध्ययन के नतीजे दिखाते हैं कि कनपटी के पास का हिस्सा यानी वह भाग जो याददाश्त और संवाद जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, प्राचीन बंदरों के मस्तिष्क में छोटा होता था.
संवाद और पहचान
एएनयू में पीएचडी कर रहीं अलाना पियरसन इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता हैं. यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक बयान में वह बताती हैं कि जब बंदरों के मस्तिष्क में कनपटी के पास का हिस्सा बड़ा होना शुरू हुआ तो उनके मस्तिष्क का आकार भी दूसरी प्रजातियों के बराबर होने लगा.
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पियरसन कहती हैं, "कनपटी बंदरों को अपनी प्रजाति के अन्य बंदरों के साथ संवाद को याद रखने में मदद करती है. इसी के सहारे वे शिकारियों की आवाजें भी पहचान पाते हैं.”
3.6 करोड़ साल पहले अफ्रीका के हिस्सों में वातावरण वर्षा वनों जैसा था, लेकिन जैसे-जैसे वहां सूखा बढ़ता गया, वर्षावन जैसे इलाके गायब होते गये और प्राचीन युग के बंदरों ने अपने आपको नये माहौल के मुताबिक ढालना शुरू किया ताकि वे ज्यादा समय जमीन पर बिता सकें.
क्यों हुए बदलाव?
वातावरण में इस बदलाव का एक अर्थ यह भी था कि बंदरों को अपनी कनपटी पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता था ताकि वे अपने इलाके और उसकी सीमा को याद रख सकें. पियरसन बताती हैं, "समूहों का आकार भी बढ़ने लगा था इसलिए उन्हें ज्यादा जानवरों के साथ संवाद करने और उनके चेहरे याद रखने की जरूरत थी. बड़ी कनपटी ऐसे जानवरों को पहचानने में फायदेमंद होती थी, जो आपके दल के ना हों.”
बबून जैसी कुछ प्रजातियों में ये बदलाव इसलिए हुए क्योंकि उन्हें ज्यादातर जमीन पर रहना था जबकि अन्य प्रजातियों ने पेड़ों और जमीन दोनों जगह रहने के हिसाब से खुद को ढाला.
वह बताती हैं, "खोपड़ियों के अवशेषों में मस्तिष्क नहीं थे इसलिए हमने उनके खोल से थ्रीडी प्रारूप बनाये, जिन्हें एंडोकास्ट कहते हैं. ”
पियरसन ने सीटी स्कैन तकनीक के इस्तेमाल से अलग-अलग प्रजातियों की खोपड़ियों के थ्रीडी रूप तैयार किये और सभी में नतीजे एक जैसे पाये गये.