कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जब राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन किया गया, तो देश की रफ्तार थम सी गई. अधिकांश लोगों का बिजनेस रुक गया, ऑफिस जाना बंद हो गया, लेकिन इस बीच हमारे स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और जरूरी सेवाओं से जुड़े लोग निरंतर अपनी सेवाएं देते रहे. इन सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी थे, जो घर पर नहीं बैठे. वो हैं देश के टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट, जिन्होंने बहुत ही कम समय में वो पीपीई किट, वेंटीलेटर और एन95 मास्क, यूवी डिसइंफेक्टर, आदि बना डाले, जो कभी हम विदेशों से आयात करते थे. राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी दिवस पर देश उन सभी लोगों को सलाम करता है.
11 मई को राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी दिवस है और इस मौके पर हमने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करांदिकर से खास बातचीत की. प्रो. करांदिकर ने राष्ट्र निर्माण में टेक्नोलॉजी पर बात करते हुए कहा कि हर प्रकार की प्रोद्योगिकी का एक ही उद्देश्य होता है- "क्वालिटी ऑफ ह्यूमन लाइफ" को कैसे बेहतर बनाया जाए. हमारे देश में काफी प्रतिभाएं हैं.आने वाले समय में भारत टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, खास कर मेडिकल टेक्नोलॉजी में एक लीडर के रूप में उभरेगा. दो दशक पहले तक प्रोद्योगिकी केवल सर्विस सेक्टर तक सीमित थी, आज हर क्षेत्र में टेक्नोलॉजी नई ऊंचाईयों को छू रही है. आज इनोवेशन का दौर है.हर क्षेत्र में नए-नए इनोवेशन हो रहे हैं. यह भी पढ़े: World Radio Day 2020: विश्व रेडियो दिवस पर फेमस सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने अपने आर्ट के जरिए लोगों को दी शुभकामनाएं
प्रो. करांदिकर ने कहा, "भारत सरकार ने हम सभी को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने को कहा है. लोगों को काम करने के तरीकों, रहन-सहन के तरीकों में बदलाव लाने की जरूरत है.यह एक बड़ा परिवर्तन होगा। बीते डेढ़ महीने में देश में ढेर सारे इनोवेशन हुए. पहले हमारे देश में पीपीई किट नहीं बनती थी। आज 25 से 30 कंपनियां कपड़ा मंत्रालय के साथ मिलकर पीपीई किट बना रही हैं. हम वेंटीलेटर को लेकर अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं हैं. इस छोटे से अंतराल में इनोवेशन के क्षेत्र में देश की प्रतिभाएं आगे आयीं. इससे यह स्पष्ट है कि हमारे देश में ढेर सारी प्रतिभा छिपी हुई है, बस उसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है. आगे चलकर हमें विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं विकसित करने की जरूरत है. हेल्थकेयर के क्षेत्र में हमारे देश में ढेर सारी संभावनाएं हैं। चूंकि मेडिकल के क्षेत्र में इंजीनियरिंग इंटरवेंशन तेज़ी से बढ़ा है तो हम आगे चलकर न केवल स्वयं के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए बड़े इनोवेशन व वृहद स्तर पर मेडिकल उपकरणों का उत्पादन कर सकते हैं. और हम यह करने में सक्षम भी हैं"
दो दशक पहले सर्विस सेक्टर तक सीमित थी प्रोद्योगिकी
देश में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे बदलावों पर प्रो. करांदिकर ने कहा, "पिछले दो दशकों में हमारे देश ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति की है। इसमें चाहे अंतरिक्ष विज्ञान हो या न्यूक्लियर या फिर डिफेंस टेक्नोलॉजी. हेल्थकेयर हो या डिजिटल रिवॉल्यूशन. इन सभी क्षेत्रों में भारत ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं. 90 के दशक तक हमारी टेक्नोलॉजी सर्विस सेक्टर तक सीमित थी, लेकिन बीते एक दशक में हमने बौद्धिक संपदा में बड़ा योगदान दिया है."
उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति का श्रेय हमारे वैज्ञानिकों और टेक्नीशियन्स को जाता है। साथ ही श्रेय जाता है सरकार द्वारा प्रयास किए जा रहे उन प्रयासों को जो इन क्षमताओं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. साथ ही देश के बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर को। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट देश के आर्थिक विकास की कुंजी है. इसमें आधरभूत इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का भी बहुत बड़ा योगदान है. जिस तरह से डिजिटल हाईवे विकसित किए जा रहे हैं। गांव-गांव व छोटे-छोटे कस्बों में ब्रॉडबैंड पहुंच रहा है. इसी से ही औद्योगिक, प्रौद्योगिक और वैज्ञानिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है.
देश में रहकर काम करना पसंद करते हैं आईआईटी के 90 प्रतिशत छात्र
स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया का जिक्र करते हुए प्रो. करांदिकर ने कहा कि इन तीनों में सभी आईआईटी व अन्य तकनीकी संस्थानों ने बड़ा योगदान दिया.पिछले पांच वर्षों में आईआईटी के ग्रेजुएट्स ने कई स्टार्टअप स्थापित किए हैं. पहले माना जाता था कि आईआईटी में पढ़ने के बाद छात्र विदेश चले जाएंगे। वर्तमान में ऐसे मात्र 10 प्रतिशत छात्र ही हैं, जो विदेश जाकर नौकरी करना चाहते हैं. 90 प्रतिशत छात्र यहीं अपने देश में रह कर काम कर रहे हैं। उनमें भी तमाम छात्र उद्यमी के रूप में खुद के स्टार्टअप के साथ आगे बढ़ रहे हैं.
उन्होंने कहा कि आईआईटी से पढ़ने वाले छात्र स्टेट ऑफ दि आर्ट टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने का काम कर रहें हैं। केवल डिजिटल के क्षेत्र में ही नहीं आईआईटी के छात्र कृषि, हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, समेत सभी क्षेत्रों में मेक इन इंडिया को आगे लेकर चल रहे हैं. स्किल इंडिया की बात करें तो टियर-2 और टियर-3 स्तर के जो इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, वहां के छात्रों के हुनर और उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए आईआईटी कई कार्य कर रहा है। आईआईटी के छात्र स्किल इंडिया में सरकार की योजनाओं में भी प्रतिभाग करते आये हैं व कई अन्य संस्थानों का सहयोग कर रहे हैं.
ऑनलाइन पढ़ाई के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत
ऑनलाइन टीचिंग से जुड़े सवाल पर प्रो. करांदिकर ने कहा कि आगे आने वाले समय में ऑनलाइन टीचिंग की एक मजबूत प्रणाली विकसित करने की जरूरत होगी. हमें ऑनलाइन टीचिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा. साथ ही ज्यादा से ज्यादा रोजगारपरक पाठ्यक्रमों को स्वयं डॉट जीओवी जैसे पोर्टल पर लाने की जरूरत है। यही नहीं दूर-दराज़ के इलाकों में इन पाठ्यक्रमों को लेकर जाने की जरूरत है.एक बार ऐसा कंटेंट आप तैयार कर लेते हैं, तो उसके बाद ऐसे पाठ्यक्रमों को सही लोगों तक पहुंचाना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में ऑनलाइन टीचिंग में एक सशक्त प्रणाली बनकर तैयार होगी.
आदिवासियों को उद्यमी बनायेगा आईआईटी
छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए आईआईटी कानपुर ने दि ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (ट्राइफेड ) के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए उद्यामिता विकास कार्यक्रम शुरू किया है. इस बारे में प्रो. करांदिकर ने कहा कि यह कार्यक्रम छोटे उद्यमियों को देश की मुख्यधारा के साथ जोड़ने के लिए है.
उन्होंने कहा, "गांव में रहने वाले युवा वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए छोटे-छोटे उद्यम अपने ही गांव व कस्बे में लगा सकते हैं। आज स्थानीय उद्यमिता का विकास करने की जरूरत है. एग्रीकल्चर, ट्रांसपोर्टेशन, आदि के क्षेत्र में इस तरह के स्टार्टअप खुले हैं. मुझे जानकारी है कि कई अन्य संस्थान भी छोटे उद्यमियों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.
प्रयोगशालाओं से कैसे कनेक्ट हों लोग
आम लोगों को देश की प्रयोगशालाओं में हो रहे रिसर्च से कैसे कनेक्ट किया जाए, इस पर प्रो. करांदिकर ने कहा कि आज से 20-25 पूर्व हमारे अंतरिक्ष के क्षेत्र में, रक्षा के क्षेत्र में कई प्रोजेक्ट्स थे, जिनका लोगों को पता नहीं चलता था. लेकिन अब लोगों को बड़ी परियोजनाओं के बारे में पता चल रहा है और लोग खुद को रिसर्च से कनेक्ट कर पाते हैं. लेकिन हां अभी भी साइंस कम्युनिकेशन में वृहद स्तर पर कार्य करने की जरूरत है. वैज्ञानिकों को अपने शोध को आसान भाषा में मीडिया के साथ साझा करने की जरूरत है. ताकि देश के आम लोग खुद को प्रयोगशालाओं से जुड़ा महसूस कर सकें.