पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों का वास्तुकार माना जाता है, जिन्होंने पी.वी. नरसिम्हा राव के शासन के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया. लेकिन अर्थशास्त्र के अलावा, उनका एक और महत्वपूर्ण शौक 'शायरी' था, और वे अक्सर राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के लिए शेर और गज़ल का सहारा लेते थे, चाहे वह संसद के अंदर हो या बाहर.
इन शेरों और गज़लों के हमलों को संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों से जोरदार ताली मिलती थी, जब संसद में हास्य, नफरत से ज्यादा, छाया करता था. डॉ. मनमोहन सिंह की शायरी की काट, 15वीं लोकसभा में उन्हें शानदार प्रतिद्वंदी मिली. 2009 से 2014 तक भाजपा की वरिष्ठ नेता, दिवंगत सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, और दोनों के बीच 'शायरी जुगलबंदी' एक अद्भुत दृश्य बन गई थी.
मार्च 2011: विकिलीक्स और शायरी का आदान-प्रदान
मार्च 2011 में विकिलीक्स के एक खुलासे ने संसद को हिला दिया था, जिसमें कांग्रेस सरकार पर 2008 के विश्वास मत के दौरान सांसदों को रिश्वत देने का आरोप था. विपक्ष की ओर से इस मुद्दे को लेकर सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को निशाना बनाते हुए शाहराब जाफरी की मशहूर शायरी का हवाला दिया:
"तु इधर उधर की न बात कर, ये बता की काफ़िला क्यों लूटा, हमें राहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है."
इसका मतलब है: "बातें बदलने की बजाय यह बताओ कि कारवां क्यों लूटा गया, हमें डाकुओं से कोई शिकायत नहीं, यह सवाल तुम्हारी नेतृत्व क्षमता से है."
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इस शायरी का जवाब अल्लामा इकबाल की मशहूर पंक्तियों से दिया:
"माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं. तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख"
(मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारे ध्यान के योग्य नहीं हूं, लेकिन देखो, मेरी तड़प और इंतजार को.)
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— NDTV (@ndtv) December 27, 2024
2013 में एक और शायरी की जंग
2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान, डॉ. मनमोहन सिंह ने एक और शायरी की. इस बार उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब के प्रसिद्ध शेर का उपयोग किया,
"हमें उनसे है वफ़ा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है."
(हम उनसे वफादारी की उम्मीद करते हैं, जो यह नहीं जानते कि वफादारी क्या है.)
इस पर सुषमा स्वराज ने बशीर बद्र की शायरी के साथ जवाब दिया:
"कुछ तो मजबुरियाँ रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता."
(कुछ कारण रहे होंगे, ऐसा नहीं है कि कोई बिना कारण बेवफा होता है.)
सुषमा स्वराज ने अपनी दूसरी शायरी में कहा:
"तुम्हें वफ़ा याद नहीं, हमें जफ़ा याद नहीं, जिंदगी और मौत के तो दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं."
सुषमा स्वराज की मृत्यु और डॉ. मनमोहन सिंह का श्रद्धांजलि
अगस्त 2019 में जब सुषमा स्वराज का निधन हुआ, तब डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें एक महान सांसद और असाधारण मंत्री के रूप में याद किया. उन्होंने कहा, "सुषमा स्वराज के निधन की खबर सुनकर मुझे गहरा सदमा लगा. मुझे उनके साथ 15वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता के रूप में काम करने का यादगार अनुभव था."
अब जबकि डॉ. मनमोहन सिंह भी हमारे बीच नहीं हैं, उनके और सुषमा स्वराज के बीच की 'शायरी जुगलबंदी' केवल हमारे यादों में ही जीवित रहेगी. यह जुगलबंदी उस समय के संसद के दृश्य को दर्शाती है जब राजनीतिक बहसों में ज्यादा शोर-शराबा नहीं, बल्कि तालियां और हंसी-ठहाके होते थे.