World Music Day 2022: हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि सृष्टि की शुरुआत ही संगीत से हुई थी. मान्यतानुसार ब्रह्माजी ने जब सृष्टि की रचना करते हुए नदी, पहाड़, पशु-पक्षी, सागर, झरने, वृक्ष एवं मानव की उत्पत्ति की थी, मगर वह अपनी ही रचना से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने श्रीहरि से मन की व्यथा कही. श्रीहरि ने उनसे कहा कि वे अपने कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़कें. जल के छिड़कते ही वीणा धारण किये मां सरस्वती प्रकट हुईं. उन्होंने वीणा की तार छेड़ी, और अचानक मानों संपूर्ण सृष्टि में जान सी आ गई. सागर में पानी की हिलोरें, वृक्ष पर बैठी पक्षियों का चहचहाहट, झर झर करते झरने, वृक्षों के टकराहट से सायं-सायं निकली आवाजें किसी संगीत सदृश्य प्रतीत होने लगीं. कहते हैं कि यहीं से संगीत की उत्पत्ति हुई. हमारे धर्म शास्त्रों में इंद्र के दरबार में संगीत के विशेष आयोजनों का उल्लेख मिलता है.
यह सिलसिला राज घरानों से होते हुए मुगल काल में भी देखने सुनने को मिलता है, आज भी जारी है. बस इसका स्वरूप बदल गया है. भारतीय संगीत में प्रमुख रूप से लोकसंगीत , शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत का प्रचलन रहा है. संगीत के इतिहास से यह ज्ञात होता है कि संगीत की दो मुख्य श्रेणियाँ लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत ही हैं. यहां हम बात करेंगे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गायकी की, जिनके बिना संगीत की परिभाषा पूरी नहीं हो सकती. यह भी पढ़े: Happy World Music Day Greetings 2022: वर्ल्ड म्यूजिक डे पर ये ग्रीटिंग्स विशेज HD Wallpapers और GIF Images के जरिए भेजकर दें संगीत दिवस की बधाई
हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायकी के प्रकार:
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में गायकी को तीन भागों में विभाजित किया गया है.
1- शास्त्रीय संगीत!
शुद्ध शास्त्रीय संगीत के तहत गायकी में संगीत शास्त्र के नियमों और अनुशासन का पालन किया जाता है. इसकी तीन विधाएं बताई गई हैं
राग ध्रुपदः ये हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीन पद्धति है, जो अधिकांशतया पुरुष गायकों द्वारा तम्बूरे और पखावज के साथ गाया जाता था. इसमें रूद्र वीणा और सुर श्रृंगार वाद्य यंत्र के प्रयोग होते थे. ध्रुपद गायकी ज्यादातर भक्ति संगीत में प्रयोग की जाती थी.
राग ख़यालः यह हिन्दुस्तानी संगीत का सबसे प्रचलित और आधुनिक रूप है. ख़याल का आशय विचार, सोच है. इस संगीत पद्धति में गीत की भावनाओं को और उस राग के बारे में अपने विचारों को रागों एवं अलंकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता था. ख़याल में काफी विविधिता देखने को मिलती है. साथ ही गायक पूरी स्वतंत्रता से अपनी प्रस्तुति देता है.
राग तरानाः हिन्दुस्तानी संगीत की गतिमय और लुभावनी पद्धति है, तराना. इसमें कई बिना अर्थों वाले शब्दांशों मसलन ना, देरे, धीम, तोम, ताना इत्यादि का प्रयोग किया गया है. मान्यता है कि अमीर खुसरो ने तराना पद्धति की शुरुआत की थी.
2- सुगम संगीत!
सुगम संगीत हिन्दुस्तानी संगीत का मुक्त स्वरूप है, जिसमे गायकी के अनुशासन और नियमों से काफी लिबर्टी ली जाती है. ये आम जनता के लिए संगीत का एक सरल और लोकप्रिय शैली है. इसमे रागों एवं अलंकारों के व्याकरण से ज्यादा श्रोता की पसंद के अनुरूप संगीत की मधुरता और लोकप्रियता पर ध्यान दिया जाता है. सुगम संगीत की बहुत सारी विधाएं हैं.
ठुमरीः ठुमरी में गीत के रस के अनुसार गायकी को ढालते हैं. ठुमरी की गायकी में नृत्य की गति और भाव का एहसास होता है.
यहां जानें ठुमरी का विस्तृत स्वरूपः
टप्पाः टप्पा की गायकी पंजाब प्रांत लोक संगीत से प्रभावित है. टप्पा शैली की खासियत है संगीत की फास्ट गति और चंचल पूर्ण लयबद्धता.
ग़ज़लः ग़ज़ल उर्दू साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है, जिसमे उर्दू के शेरों को मधुर गायकी के स्वरुप में प्रस्तुत किया जाता है. ग़ज़ल विरह के दर्द, प्रेम और सौंदर्य की सुरुचिपूर्ण एवं सौम्य अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है.
भजनः भजन भक्ति संगीत की एक विधा है जिसमे गीत के माध्यम से किसी देवी देवता की प्रशंसा या स्तुति की जाती है. भजन में संगीत का कोई निर्धारित स्वरूप या नियम नहीं होता और इसमें शब्द एवं साहित्य की महत्ता होती है.
3- लोक संगीतः
लोक संगीत गायकी का सबसे सहज स्वरूप है. इसमें स्वरों की छंदबद्धता और अलंकारों की सीमाओं का बंधन नहीं होता है. लोकगीतों के विषय, सामान्य जनमानस की रोजमर्रा के जीवन की सहज संवेदना से जुडे होते हैं.
जानें लोक संगीत की मुख्य प्रचलित विधाएं!
कजरीः कजरी उत्तर प्रदेश और बिहार प्रांत के लोक संगीत की एक विधा है जो महिलाओं के अपने जीवन साथी की वर्षा-ऋतु में लम्बी प्रतीक्षा के दर्द को गीत के रूप में अभिव्यक्त करती है. कजरी एक महिला प्रधान गायकी है. कजरियों की पहचान उनके टेक से होती है, जिसमे बलमा, साँवर गोरिया, ननदी, ललना जैसे स्थानीय शब्दों का प्रयोग होता है.