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National Girl Child Day 2024: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं बालिकाओं की हालिया स्थिति!

भारत ही नहीं दुनिया भर में बालिकाएं आत्मनिर्भरता के नये आयामों को छू रही है. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है, जहां वे लड़कों की तुलना में कमतर हों, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में बहुत पीछे हैं.

लाइफस्टाइल Rajesh Srivastav|
National Girl Child Day 2024: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं बालिकाओं की हालिया स्थिति!

भारत ही नहीं दुनिया भर में बालिकाएं आत्मनिर्भरता के नये आयामों को छू रही है. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है, जहां वे लड़कों की तुलना में कमतर हों, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में बहुत पीछे हैं. आजादी के 76 साल गुजर जाने के बावजूद लड़कियां अपने कानूनी अधिकारों, शिक्षा, विवाह एवं लैंगिक असमानताओं का शिकार बन रही हैं. इन्हीं सब असमानताओं को दूर करने के लिए भारत में प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर आइये जानते हैं राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां..

राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास

सर्वप्रथम 24 जनवरी 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी. इसके बाद से यह दिवस भारत भर में निर्विघ्न सेलिब्रेट किया जा रहा है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य भारत के शहर से लेकर गांवों तक स्त्री शिक्षा, स्व निर्भरता, सेहत, सम्मान की दृष्टि चतुर्मुखी विकास हो. साथ ही राष्ट्रीय बालिका दिवस पर इ प्रमुखता का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार हो, ताकि बालिका विकास की चेतना आम लोगों तक पहुंचे. ज्ञात हो कि विश्व स्तर पर यानी अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है.

राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व

एक समय था, जब भारत में स्त्री

National Girl Child Day 2024: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं बालिकाओं की हालिया स्थिति!

भारत ही नहीं दुनिया भर में बालिकाएं आत्मनिर्भरता के नये आयामों को छू रही है. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है, जहां वे लड़कों की तुलना में कमतर हों, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में बहुत पीछे हैं.

लाइफस्टाइल Rajesh Srivastav|
National Girl Child Day 2024: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं बालिकाओं की हालिया स्थिति!

भारत ही नहीं दुनिया भर में बालिकाएं आत्मनिर्भरता के नये आयामों को छू रही है. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है, जहां वे लड़कों की तुलना में कमतर हों, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में बहुत पीछे हैं. आजादी के 76 साल गुजर जाने के बावजूद लड़कियां अपने कानूनी अधिकारों, शिक्षा, विवाह एवं लैंगिक असमानताओं का शिकार बन रही हैं. इन्हीं सब असमानताओं को दूर करने के लिए भारत में प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर आइये जानते हैं राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां..

राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास

सर्वप्रथम 24 जनवरी 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी. इसके बाद से यह दिवस भारत भर में निर्विघ्न सेलिब्रेट किया जा रहा है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य भारत के शहर से लेकर गांवों तक स्त्री शिक्षा, स्व निर्भरता, सेहत, सम्मान की दृष्टि चतुर्मुखी विकास हो. साथ ही राष्ट्रीय बालिका दिवस पर इ प्रमुखता का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार हो, ताकि बालिका विकास की चेतना आम लोगों तक पहुंचे. ज्ञात हो कि विश्व स्तर पर यानी अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है.

राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व

एक समय था, जब भारत में स्त्री शिक्षा नगण्य थी, शिक्षा ही नहीं बल्कि सारे नैतिक अधिकार भी पुरुषों को ही प्राप्त थे. आजादी के बाद लिंग भेद पर धीरे-धीरे नियंत्रण पाने की कोशिश सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर हुई. इसलिए भारत में इस दिवस का विशेष महत्व रखता है. इसके महत्व को निम्न तरीके से समझा जा सकता है.

जागरूकता बढ़ाना: यह दिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में लड़कियों द्वारा अनुभव की जाने वाली विभिन्न प्रकार की असमानताओं को सामने लाता है और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है.

अधिकार और सशक्तिकरण: राष्ट्रीय बालिका दिवस लोगों को प्रत्येक महिला बच्चे के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने और सम्मान देने के महत्व का एहसास करने में मदद करता है. यह समान अवसरों, कौशल विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से उनके सशक्तिकरण को दर्शाता है.

सरकारी पहल: वर्तमान में भारत सरकार ने इस दिशा में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान का मुहिम भी चला रखा है, जो लैंगिक मुद्दों को खत्म करने के सरकार के अटूट प्रयास को उजागर करता है.

चक्र को तोड़ना: जागरूकता बढ़ाने और गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों को प्रासंगिक कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करके, इस दिन का उद्देश्य भारत में भेदभाव के पैटर्न को तोड़ना है

बाल विवाह कुप्रथा पर आंशिक अंकुश

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी एवं भारत सरकार के सौजन्य से नेशनल फैमिली हेल्थ पर हुए सर्वे के अनुसार 1993 से 2021 तक के सर्वे में पाया गया कि 2016 से लेकर 2021 के बीच कई राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में बाल विवाह की प्रथा आम बात रही. मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित 6 राज्यों में बालिका विवाह की दर में वृद्धि हुई, जबकि छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर, पंजाब समेत 8 राज्यों में बालक बाल विवाह (21 से कम आयु के लड़कों) का ग्राफ बढ़ा. कुल मिलाकर भारत में बाल विवाह में राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट आई है.

1993 में कन्या बाल विवाह दर जहां 49 प्रतिशत था, 2021 में 22 प्रतिशत रह गया. वहीं बालक बाल विवाह साल 2006 में 7 प्रतिशत से घट कर 2021 में 2 प्रतिशत रह गया, लेकिन शोध में यह भी पाया गया कि 2016 से 2021 के बीच बाल विवाह रोकने के प्रयासों में कमी आई है.

जागरूकता बढ़ाना: यह दिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में लड़कियों द्वारा अनुभव की जाने वाली विभिन्न प्रकार की असमानताओं को सामने लाता है और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है.

अधिकार और सशक्तिकरण: राष्ट्रीय बालिका दिवस लोगों को प्रत्येक महिला बच्चे के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने और सम्मान देने के महत्व का एहसास करने में मदद करता है. यह समान अवसरों, कौशल विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से उनके सशक्तिकरण को दर्शाता है.

सरकारी पहल: वर्तमान में भारत सरकार ने इस दिशा में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान का मुहिम भी चला रखा है, जो लैंगिक मुद्दों को खत्म करने के सरकार के अटूट प्रयास को उजागर करता है.

चक्र को तोड़ना: जागरूकता बढ़ाने और गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों को प्रासंगिक कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करके, इस दिन का उद्देश्य भारत में भेदभाव के पैटर्न को तोड़ना है

बाल विवाह कुप्रथा पर आंशिक अंकुश

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी एवं भारत सरकार के सौजन्य से नेशनल फैमिली हेल्थ पर हुए सर्वे के अनुसार 1993 से 2021 तक के सर्वे में पाया गया कि 2016 से लेकर 2021 के बीच कई राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में बाल विवाह की प्रथा आम बात रही. मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित 6 राज्यों में बालिका विवाह की दर में वृद्धि हुई, जबकि छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर, पंजाब समेत 8 राज्यों में बालक बाल विवाह (21 से कम आयु के लड़कों) का ग्राफ बढ़ा. कुल मिलाकर भारत में बाल विवाह में राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट आई है.

1993 में कन्या बाल विवाह दर जहां 49 प्रतिशत था, 2021 में 22 प्रतिशत रह गया. वहीं बालक बाल विवाह साल 2006 में 7 प्रतिशत से घट कर 2021 में 2 प्रतिशत रह गया, लेकिन शोध में यह भी पाया गया कि 2016 से 2021 के बीच बाल विवाह रोकने के प्रयासों में कमी आई है.

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