नये वर्ष का पहला पर्व लोहड़ी के बस कुछ घंटे शेष हैं, पंजाब और हरियाणा का मुख्य पर्व होने के कारण यहां इस पर्व का विशेष महत्व होता है. पिछले 2 वर्ष कोविड-19 की भेंट चढ़ने के बाद उम्मीद लगाई जा रही है कि इस बार लोहड़ी का पर्व अपने पूरे शबाब पर होगा. यह पर्व नई फसल के स्वागत के साथ-साथ अपने धार्मिक एवं सामाजिक महत्व के कारण और भी लोकप्रिय हो जाता है. इससे संदर्भित लोक कथा भी प्रचलित हैं. इस साल लोहड़ी 13 जनवरी, 2023 शुक्रवार, को मनाई जाएगी. यहां हम लोहड़ी के संदर्भ में कुछ ऐसी रोचक जानकारियों पर बात करेंगे, जिसकी जानकारी शायद कम ही लोगों को होगी.
फसलों का पर्व!
देश के अधिकांश हिस्सों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों, जहां ज्यादातर खेती होती है, के लिए यह जानकारी बहुत कॉमन हो सकती है, लेकिन दक्षिण भारत जहां इस संदर्भ में कम लोगों को पता होगी. बता दें कि सर्दी की पारंपरिक फसल रबी (गेहूं, मक्का, सरसों मटर आदि) लोहड़ी के आसपास ही काटी जाती है. लोहड़ी के दिन ग्रुप के सभी लोग अलाव के इर्द-गिर्द एकत्र होते हैं, और इन फसलों को अलाव में प्रसाद के रूप में अर्पित करते हुए इन फसलों का स्वागत करते हुए जश्न मनाते हैं. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda Jayanti 2023 Quotes: स्वामी विवेकानंद जयंती पर उनके इन 10 प्रेरणादायी विचारों से आप भी बदल सकते हैं अपना जीवन
धार्मिक पर्व है!
नाचते गाते मनाये जाने वाले इस पर्व के बारे में यह तय करना बहुत आसान नहीं होता कि यह धार्मिक पर्व है या सामाजिक या फिर केवल कृषि तक सीमित है, लेकिन हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार यह देवी लोहड़ी और अग्नि देव के सम्मान स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है. यद्यपि लोहड़ी सभी धर्म के किसानों द्वारा मनाया जाता है. लेकिन फैक्ट यही है कि हरियाणा और पंजाब में इस पर्व की खूबसूरती देखते बनती है.
सर्दी की विदाई का प्रतीक!
लोहड़ी को जहां नये साल का पहला पर्व माना जाता है, वहीं मौसम की विदाई का भी प्रतीक कहते हैं. इसके बाद से रात की तुलना में दिन लंबा होता जाता है. इसे वसंत के अंत और गर्मी के शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है. इसे बसंत पंचमी का स्वागत वाला पर्व भी मानते हैं.
वित्तीय वर्ष का प्रतीक!
लोहड़ी रवि की फसल के स्वागतार्थ मनाया जाने वाला पर्व है, लेकिन इसके तहत इतनी सारी फसलें हैं, जिससे देश को काफी राजस्व की प्राप्ति होती है. क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है. इसलिए इस पर्व को इस दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. सिख समुदाय के लिए यह बहुत पवित्र पर्व के रूप में भी देखा जाता है.
साल की सबसे लंबी रात का पर्व!
यह बात शायद कम लोग जानते होंगे कि लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है. यही वजह है कि लोहड़ी के सारे रीति-रिवाज एवं परंपराएं सूर्यास्त के बाद ही शुरू होती है, और देर रात तक अलाव के इर्द-गिर्द नाचते गाते पर्व मनाते हैं.
नाम को लेकर किंवदंतियां!
इस पर्व को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं. कुछ लोग इसे होलिका की बहन लोहड़ी कहते हैं, जो होली के एक दिन पूर्व होलिका-दहन के रूप में मनाई जाती है. पंजाब में इसे लोही भी कहते हैं. सिख मान्यताओं के अनुसार लोही संत कबीर की पत्नी थीं. एक अन्य मान्यता के अनुसार चूंकि यह पर्व तिल और रोढ़ी (गुड़) की मुख्य उपयोगिता वाला पर्व है, तो इस आधार पर बहुत सी जगह पर इसे ‘तिलोरही’ भी कहते हैं, जो बाद में संक्षिप्त होकर लोहड़ी हो गया.