कोरोना वायरस (Coronavirus) के नए वेरिएंट ‘ओमिक्रॉन’ (Omicron) को लेकर भारत सरकार ने कमर कस ली है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ओमिक्रॉन की मौजूदगी के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें दक्षिण अफ्रीका के बाद से ब्रिटेन, कनाडा, नीदरलैंड्स में भी इसके केस पाए गए हैं. भारत में ओमिक्रॉन के कुछ मामले सामने आए हैं. सरकार ने हाल में मिले इन मामलों के सैंपल की पुष्टि और संक्रामकता की ताकत जानने के लिए इस वेरिएंट की ‘जीनोम सैंपलिंग’ का फैसला किया है. इस बीच जीनोम सीक्वेंसिंग (Genome Sequencing) के बारे में भी बहुत सी बातें चल पड़ी हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी कि आखिर जीनोम सीक्वेंसिंग असल में होती क्या है, इससे क्या पता चलता है और क्या ये आने वाली किसी बीमारी को कम करने में सहायता प्रदान कर सकता है ? आइए जानते हैं…
जीनोम सिक्वेंसिंग क्या होती है ?
दरअसल, हमारी कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ पाया जाता है जिसे डीएनए और आरएनए कहते हैं. इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से ‘जीनोम’ कहा जाता है. एक जीन की तय जगह और दो जीन के बीच की दूरी और उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसकी दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से जीनोम मैपिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है. जीनोम मैपिंग से पता चलता है कि जीनोम में किस तरह के बदलाव आए हैं. यानि ओमिक्रॉन की जीनोम मैपिंग होती है तो इसके जेनेटिक मटेरियल की स्टडी करके यह पता किया जा सकता है कि इसके अंदर किस तरह के बदलाव आए हैं और यह पुराने कोरोना वायरस से कितना अलग है.
क्या होता है जीनोमिक्स ?
जीनोम में एक पीढ़ी से जुड़ें गुणों और खासियतों को अगली पीढ़ी में भेजने की काबिलियत होती है. इसलिए आपने सुना होगा कि अलग-अलग वेरिएंट मिलकर नया कोरोना वेरिएंट बना रहे हैं. यानि इनके अंदर पुरानी पीढ़ी के जीनोम और नए बने वेरिएंट की खासियत होगी. जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहते हैं.
‘इंसाकोव’ करता है जीनोम सीक्वेंसिंग
वहीं एम्स, भोपाल के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सरमन सिंह इस संबंध में बताते हैं कि भारत सरकार ने और डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी के सहयोग से एक संगठनात्मक नेटवर्क तैयार किया था जिसको ‘इंसाकोव’ कहते हैं. यह कोरोना की जीनोम सीक्वेंसिंग करता है और उसके डाटा का विश्लेषण करता है. उसमें यह देखा गया है कि जितने भी आरएनए वायरस (RNA virus) जैसे कोरोना वायरस है, वैसे दूसरे वायरस भी है. इनमें म्यूटेशंस बहुत जल्दी-जल्दी होते हैं क्योंकि इनमें प्रूफ रीडिंग नहीं होती है. इसलिए जब भी म्यूटेशन होता है तो उसमें कुछ न कुछ कैरेक्टर या लक्षण या उसकी संक्रमित करने की क्षमता या उसकी बीमारी बढ़ाने की क्षमता, गंभीर रोग पैदा करने की क्षमता इस तरह की कोई न कोई क्षमता वायरस अपने विकास के लिए म्यूटेट कर लेता है यानि अपने लक्षण और स्वरूप को बदल लेता है.
‘इंसाकोव’ में जब सारा जीनोम सीक्वेंस होता है तो इसमें सभी इकाइयों को हम देखते हैं कि कहीं उनमें किसी प्रकार का कोई बदलाव तो नहीं आ गया है. तीन से ज्यादा न्यूक्लिटाइड होने पर उनमें चेंज आ जाता है. इससे प्रोटीन में चेंज आ जाता है. फिर चाहे जैसे स्पाइक प्रोटीन हो, जिसे हम एंटीजन (antigen) कहते हैं, उसमें जब बदलाव आ जाते हैं तो या तो संक्रमण करने की क्षमता या फिर गभींर रूप से बीमार करने की क्षमता भी बदल जाती है. आमतौर पर देखा गया है कि क्षमता कई बार कम भी हो जाती है और कई बार ज्यादा भी होती है. कम बदलाव होने पर हमको वायरस के चेंज (Change) पता नहीं चलते लेकिन जब अधिक बदलाव होता है तो हमें पता चल जाता है जैसे ‘डेल्टा’ वेरिएंट की हम बात करते हैं. अब तक का सबसे स्ट्रॉन्ग (Strong) डेल्टा वायरस म्यूटेशन हुआ था. यह जून में हुआ था. यही कारण है कि डेल्टा पहले भारत से शुरू हुआ और फिर सारी दुनिया में. यह चिंता का विषय है कि यदि हम सावधानियां बरतनी छोड़ देंगे तो अभी भी कोरोना वापस आ सकता है. ऐसे में हम सभी को सचेत रहना होगा.
जोखिम वाले देशों से आ रहे यात्रियों के लिए दिल्ली हवाई अड्डे पर RT-PCR जांच सुविधा की हुई समीक्षा
इधर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने सोमवार को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर वायरस के जोखिम की आशंका वाले देशों से आ रहे यात्रियों के लिए आरटी पीसीआर जांच व्यवस्था की समीक्षा की. स्वास्थ्य मंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि हवाई अड्डे के टर्मिनल-तीन में 35 आरटी पीसीआर जांच मशीनें काम कर रही हैं. इनसे तीस मिनट में ही जांच संभव हो सकेगी.