Pitru Paksha 2020: क्या होता है पितृदोष? ये लक्षण बताते हैं कि आप हैं इस दोष से पीड़ित, जानें कैसे पाएं इससे मुक्ति
पितृ पक्ष 2020 (Photo Credits: Facebook)

Pitru Paksha 2020: हमारे पितर (Ancestors) जो किन्हीं कारणों से कष्टकारी योनियों में अतृप्त महसूस करते हैं, उन्हें मोक्ष (Salvation) नहीं मिला है. वे चाहते हैं कि उनकी संतान उनका श्राद्ध-तर्पण इत्यादि कुछ करें, ताकि उन्हें सारे कष्टों से मुक्ति मिले. ऐसा हो जाता है तो वे संतान को आशीर्वाद देते हैं, लेकिन अगर संतान उनके लिए कुछ नहीं करती तो मान्यता है कि इससे उनकी कुंडली प्रभावित होती है और उन पर विभिन्न प्रकार के कष्ट आने शुरु हो जाते हैं. इसे ही 'पितृदोष' (Pitru Dosha) कहते हैं. संक्षेप में कहें तो पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी भी प्रकार का कष्ट ही 'पितृदोष' कहलाता है. यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाए तो इससे मुक्ति मिल सकती है.

क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र

ज्योतिषियों का मानना है कि सूर्य से पिता, चन्द्र से मां, गुरु से दादा, बुध-मंगल से भाई बहन आदि के बारे में जानकारी मिलती है. उदाहरण के लिए यदि कही चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि का सम्बन्ध दिखता है तो मातृपक्ष से योग बनता है, जिसे 'मातृदोष' कहते हैं. जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक 'पितृदोष' से पीड़ित होता है. यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उससे ही अशुभ फल उत्पन्न होते हैं. इससे प्रभावित व्यक्ति धनाभाव, विवाह न हो पाना, गृह क्लेष, असाध्य रोग, मानसिक क्लेष जैसे तमाम कष्टों को भुगतता है. वह कभी तरक्की नहीं कर पाता. अगर उसके अच्छे कर्मों से उसे किसी तरह का लाभ मिलने वाला भी होता है तो अचानक कोई न कोई बाधा उत्पन्न होकर उसकी लाभ में रुकावट बन जाता है. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष में इन कार्यों को करने से मिलता है पितरों का आशीर्वाद, लेकिन भूलकर भी न करें ये गलतियां

पिता के पाप पुत्र को भुगतने होते हैं

पितृदोष का सिद्धांत है कि पिता के पाप कर्मों का परिणाम पुत्र को भोगना पड़ता है. मान्यतानुसार यदि मृत्यु के पश्चात पिता को मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में जाते हैं और अपनों को कष्ट देने लगते हैं. उदाहरण के लिए माता-पिता, ताई-ताऊ, चाचा-चाची, सास-ससुर, का अपमान करना, पूर्वजों का विधि-विधान से श्राद्ध व तर्पण न कर पाने, पशु पक्षियों की अनावश्यक हत्या करने, सांपों को मारने जैसे कई कारण पितृदोष के हो सकते हैं, गौरतलब है कि माता-पिता से जाने-अनजाने हुए पापों की सजा अपने भौतिक जीवन में पुत्र को भुगतना पड़ता है, भले ही पुत्र ने तमाम तरह के पुण्य के कार्य किये हों. हां उसके पुण्य का प्रतिफल उसकी मृत्यु के पश्चात उसकी संतान को प्राप्त होता है.

पितृदोष के लक्षण

हिन्‍दु धर्म ग्रंथों में पितृदोष से तमाम कष्टों एवं हानियों का विस्‍तृत वर्णन है. मसलन घर में हमेशा कलह व अशांति रहती है. असाध्य बीमारियां एवं अन्य तरह के शारीरिक कष्ट पीछा नहीं छोड़ते. सामान्य परिस्थितियों में भी घर में एक दूसरे के प्रति मतभेद बना रहता है, जिसकी वजह से घर में आये दिन झगड़े होते रहते हैं. बनते कार्य अथवा पहले से तय तरक्की में अचानक अवरोध उत्पन्न हो जाता है. अकाल मृत्यु का भय रहता है. पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति बात-बात पर क्रोधित होते रहते हैं. विवाह अथवा संतान-प्राप्ति में विलंब होता है. धनाभाव बना रहता है. धन का ज्यादातर व्यय इलाजों में जाता है. कार्यालय में अक्सर अपने उच्चाधिकारियों के गुस्से का सामना करना पड़ता है. आय से ज्यादा खर्च होता है. घर में बरकत नहीं होती. बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एवं परवरिश प्रभावित होती है. शुभ मंगल कार्यों में बाधाएं आती हैं. हाथ आई सफलता फिसल जाती है.

जानें, पितृ दोष है या नहीं?

हिन्‍दू धर्म के अनुसार किसी व्‍यक्ति की जन्‍म-कुण्‍डली देखकर बताया जा सकता है कि अमुक व्‍यक्ति पर पितृदोष है या नहीं. क्‍योंकि यदि जातक के पितर असंतुष्‍ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष से सम्‍बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं. जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्‍बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्‍म-कुण्‍डली वाले जातक को पितृ दोष होता है. साथ ही कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उसके सम्‍बंधित अशुभ फल घटित होते हैं.

पितृदोष का निवारण

श्रद्धा और आस्था द्वारा पितरों को पिण्ड दान करना ही श्राद्ध कहलाता है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. अगर पितरों की भटकती आत्मा को सद्गति देने के लिए उनके वंशज उनके लिए श्राद्ध, पिण्डदान एवं तर्पण इत्यादि करते हैं, तो पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सेहतमंद एवं दीर्घायु, सुख, शांति, समृद्धि, प्रसिद्धि, तरक्की, बल-तेज तथा सभी प्रकार के पितृदोष से मुक्ति प्रदान करने का आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा पितृदोष से मुक्ति के लिए निम्नलिखित बातों को अमल में लाने पर पितृदोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष के दौरान सपने में पितरों के नजर आने का क्या हो सकता है मतलब? जानें इसके बारे में स्वप्न शास्त्र एवं शोध क्या कहता है

  • पीपल अथवा बरगद के वृक्ष की पूजा करें और श्राद्ध नहीं कर पाने के लिये क्षमायाचना करें.
  • सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करें.
  • नियमित गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
  • घर के बड़े-बुजुर्गों को प्रेम एवं सम्मान देने से भी पितृदोष में लाभ मिलता है.
  • भोजन शुरु करने से पूर्व पित्तरों के नाम अग्रासन निकालकर गाय को खिलाने से पित्तरों का आशीर्वाद मिलता है.
  • शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, काला तिल चढाएं.
  • श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.