करवा चौथ का पर्व भारतीय संस्कृति में प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इस लेख में हम आपको करवा चौथ 2024 के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और आवश्यक सामग्री की पूरी जानकारी देंगे.
करवा चौथ 2024 कब है?
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2024, रविवार सुबह 6:46 बजे
चतुर्थी तिथि का समापन: 21 अक्टूबर 2024, सोमवार सुबह 4:18 बजे
करवा चौथ का व्रत: 20 अक्टूबर 2024 (रविवार)
करवा चौथ 2024 का पूजा शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ समय: शाम 5:46 से 7:02 बजे तक
इस दौरान महिलाएं एकत्र होकर फेरी की रस्म निभाती हैं और व्रत कथा सुनती हैं. यह समय अत्यंत शुभ माना जाता है, इसलिए पूजा विधि इस समयावधि में पूरी कर लेना श्रेष्ठ होता है.
करवा चौथ पर चांद निकलने का समय
चांद निकलने का समय: शाम 7:54 बजे
महिलाएं चांद के दर्शन कर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत का समापन करती हैं.
करवा चौथ की पूजा विधि और सामग्री
करवा चौथ की पूजा के दौरान महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और माता करवा की पूजा करती हैं. घर पर या समूह में की जाने वाली इस पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
पूजा सामग्री (Puja Samagri)
- करवा माता की तस्वीर
- छलनी और कलश
- अक्षत (चावल)
- मिठाई और फल
- चंदन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर और दही
- देसी घी, हल्दी, कुमकुम, रोली और हल्दी
- पान का पत्ता, मौली और नारियल
- करवा (मिट्टी या धातु का कलश)
- करवा चौथ की व्रत कथा पुस्तक
- सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ,
- दीपक, रुई, कपूर
- गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी,
- आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ आदि.
करवा चौथ व्रत की विधि
1. सुबह का संकल्प और स्नान
- प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और पवित्र वस्त्र धारण करें.
- घर के मंदिर की साफ-सफाई कर पूजा स्थल को सजाएं.
- व्रत का संकल्प लेते हुए भगवान से अपने पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन की प्रार्थना करें.
2. दिनभर का उपवास
- दिनभर किसी भी प्रकार का भोजन या जल ग्रहण न करें.
- अगर स्वास्थ्य कारणों से निर्जला व्रत संभव नहीं है, तो फलाहार कर सकती हैं.
3. शाम की पूजा विधि
- सूर्यास्त के समय पूजा स्थल पर बैठकर भगवान गणेश और करवा माता की पूजा करें.
- करवा माता की कथा पढ़ें या सुनें, जिससे व्रत का महत्व समझा जा सके.
- पूजा में करवा, रोली, अक्षत, दीपक और मिठाई का उपयोग करें.
4. चंद्रमा की पूजा और अर्घ्य
- चंद्रमा के उदय होने पर छत या खुले स्थान पर जाएं.
- छलनी से पहले चंद्रमा को देखें और फिर उसी छलनी से अपने पति के दर्शन करें.
- चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें और पति के हाथ से जल ग्रहण करके व्रत का समापन करें.
पूजा के दौरान महिलाएं घेरा बनाकर बैठती हैं और एक-दूसरे से थाली बदलते हुए करवा चौथ की कथा सुनती हैं. कथा सुनने के बाद चांद के दर्शन कर पति के हाथों से जल ग्रहण करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है.
महत्वपूर्ण बातें
- व्रत के दौरान महिलाएं पूरे दिन जल और भोजन ग्रहण नहीं करतीं.
- पूजा के समय परिवार के सभी सदस्य उपस्थित रहना शुभ माना जाता है.
- चांद के निकलने पर छलनी से चांद और फिर पति के दर्शन कर व्रत तोड़ा जाता है.
करवा चौथ व्रत की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. सभी भाई अपनी बहन से अत्यधिक प्रेम करते थे. वे हमेशा पहले अपनी बहन को भोजन कराते और उसके बाद स्वयं भोजन करते थे. एक बार करवा अपने ससुराल से मायके आई हुई थी और उस दिन करवा चौथ का व्रत था.
करवा ने निर्जल व्रत रखा था और नियम के अनुसार, वह चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन कर सकती थी. शाम को जब भाई घर लौटे, तो उन्होंने करवा को भूख और प्यास से व्याकुल देखा. छोटे भाई से बहन की व्यथा देखी नहीं गई, और उसने एक पेड़ पर दीपक रखकर छलनी की ओट से ऐसा आभास कराया जैसे चांद निकल आया हो.
करवा ने चांद मानकर उसे अर्घ्य दिया और भोजन करने बैठ गई, लेकिन पहले निवाले पर उसे छींक आ गई, दूसरे पर बाल निकला, और तीसरे निवाले के समय उसके पति की मृत्यु का समाचार मिला. सच्चाई जानकर करवा को समझ आया कि उसके व्रत के गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे रुष्ट हो गए.
करवा ने ठान लिया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने तप से उसे पुनर्जीवित करेगी. वह पूरे साल अपने पति के मृत शरीर की देखभाल करती रही और उस पर उगने वाली सूईनुमा घास को एकत्र करती गई.
अगले साल फिर करवा चौथ का दिन आया. करवा ने अपनी भाभियों से अपने पति को पुनर्जीवित करने की विनती की, लेकिन हर भाभी उसे टालती गई. अंततः सबसे छोटी भाभी के पास जाकर करवा ने उसे पकड़ लिया और पति को जीवित करने की जिद की.
छोटी भाभी करवा की तपस्या और दृढ़ संकल्प से प्रभावित हुई. उसने अपनी अंगुली चीरकर अमृत की बूंद करवा के पति के मुंह में डाल दी. करवा का पति तत्काल जीवित हो उठा और श्रीगणेश का नाम लेते हुए खड़ा हो गया. इस प्रकार, करवा की तपस्या और विश्वास के कारण उसे उसका सुहाग वापस मिल गया.
कथा का संदेश और आशीर्वाद
इस कथा का संदेश यह है कि सच्चे प्रेम, विश्वास और तप से बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को पार किया जा सकता है, जिस प्रकार गणेश जी और माता गौरी ने करवा को चिर-सुहागिन होने का वरदान दिया, वैसा ही आशीर्वाद हर सुहागिन को प्राप्त हो.
करवा चौथ की यह कथा न केवल प्रेम और विश्वास की मिसाल है बल्कि यह भी सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और समर्पण से काम लेना चाहिए.
करवा चौथ का पर्व पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत बनाता है. यह दिन केवल उपवास का नहीं, बल्कि प्रेम और साथ निभाने की भावना का प्रतीक है. आप सभी को करवा चौथ 2024 की शुभकामनाएं!
डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत करवा चौथ व्रत कथा पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक कथाओं पर आधारित है. इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना और पाठकों को इस पर्व के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व से अवगत कराना है.