Guru Nanak Jayanti 2019: सिक्ख धर्म भारतीय धर्मों में से एक पवित्र धर्म है. इस धर्म की स्थापना उत्तर पश्चिमी राज्य के पंजाब प्रांत में 15वीं सदी में गुरु नानक देव द्वारा की गई थी.
सिक्ख का अर्थ है 'शिष्य' जिसका मतलब है गुरुनानक के शिष्य. यानी उनकी दी हुई शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले. गुरु नानक देव का जन्म पाकिस्तान के तलवंडी नाम की जगह पर हुआ था, बाद में इसका नाम ननकाना साहेब पड़ा. गुरु नानक की इस जन्मस्थली पर करतारपुर साहिब गुरुद्वारा बनाया गया है. 18 वर्ष की उम्र में विवाह के बाद उन्हें दो बेटे हुए उसके बाद भी उनका मन सांसारिक गतिविधियों में नहीं लगा, जिसके बाद वो घर छोड़ अपने साथ कुछ शिष्यों लेकर संसार भ्रमण पर निकल गए. इस दौरान उन्होंने बहुत सारे उपदेश भी दिए. उन्होंने भजनों और बोलचाल की भाषा में उपदेश दिए.
छुआछूत रहित समाज की स्थापना और मानव मात्र के कल्याण की कामना सिक्ख धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं. कर्म करना, बांट कर खाना इसके आधार हैं. इन्हीं मंतव्यों की प्राप्ति के लिए गुरु नानक देव ने इस धर्म की स्थापना की थी. दुनिया भर में जहां भी सिक्ख समुदाय के लोग हैं वो नानक देव के बताए गए नक्शे कदम पर चल रहे हैं. गरीबों, बेसहारा की मदद करते हैं और प्यार बाटते हैं.
सिक्ख धर्म में पांच कक्के (पंज कक्के) का महत्व
सिक्ख धर्म में गुरु को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है, इस धर्म के दस गुरु हैं. सभी गुरुओं ने सिक्ख धर्म की पहचान और समाज में अच्छाई फैलाने के लिए कुछ नियम बनाए हैं. उन्ही में एक है 'पंज कक्का' इस धर्म में 'पांच कक्के' का बहुत महत्व है, इसी से सिक्खों की पहचान होती है. छठे गुरु हरगोविंद के काल में मुग़ल बादशाह औरगंजेब का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था. सिक्खों पर जबरदस्ती इस्लाम अपनाने का दबाव बनाया जा रहा था. इस्लाम न अपनाने पर औरगंजेब ने गुरु हरगोविंद सिंह के दो बेटों को दीवार में चुनवा दिया. जिसके बाद गुरु हरगोविंद सिंह ने सिक्खों को नया स्वरुप दिया. उन्होंने खालसा परंपरा की स्थापना की, जिसका मतलब है शुद्ध. खालसाओं के पांच जरुरी लक्षण तय किए गए जिसका नाम है पंज कक्के. इसे पांच ककार भी कहते हैं. इन्हें पांच कक्के इसलिए कहते हैं क्योंकि ये क से शुरू होते हैं. वो पांच कक्के हैं केश, कंधा, कड़ा, कच्छा और कृपाण. ये पांचों लक्षण सिक्ख को अलग पहचान देते हैं. सिक्ख धर्म में आत्मरक्षा के लिए कृपाण धारण किया जाता है. क्योंकि हरगोविंद सिंह चाहते थे कि सिक्खों में संत वाले गुण के साथ सिपाहियों वाली भावना भी हो, जो मुश्किल में अपनी और दूसरों की रक्षा कर सके.
गुरु गोविन्द सिंह सिक्ख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु थे, उन्होंने कहा था कि उनके बाद कोई गुरु नहीं होगा और ग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने के लिए कहा, जिसके बाद से सिक्ख धर्म में ग्रन्थ को 'गुरु ग्रंथ साहिब कहा कहा जाने लगा. इस पवित्र ग्रन्थ का सिक्ख बहुत सम्मान करते हैं और उसे अपने गुरुओं की उपाधि दी हैं.