Chhath Puja 2020 Date & Full Schedule: नहाय-खाय, लोहंडा-खरना, संध्या और ऊषा अर्घ्य कब है? जानें 4 दिवसीय छठ पूजा पर्व की तिथि और पूरा शेड्यूल
छठ पूजा 2020 (Photo Credits: File Image)

Chhath Puja 2020 Date & Full Schedule: पांच दिवसीय दिवाली उत्सव (Diwali Festival) के खत्म होते ही यूपी और बिहार के लोग सूर्य की उपासना के पर्व छठ पूजा (Chhath Puja 2020) की तैयारी में जुट जाते हैं. छठ पूजा का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है. बिहार (Bihar), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और नेपाल (Nepal) के तराई वाले क्षेत्रों में छठ पूजा की धूम देखते ही बनती है. छठ पूजा मुख्य तौर पर सूर्यदेव की उपासना का पर्व है, जो चार दिनों तक चलता है. मान्यता है कि छठ मैया (Chhath Maiya) सूर्यदेव (Surya Dev) की बहन हैं और छठ पर्व पर सूर्यदेव की उपासना से छठ मैया बेहद प्रसन्न होती हैं. वैसे तो सूर्योपासना के इस पर्व को चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को साल में दो बार मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाए जाने वाले वाले छठ पर्व का विशेष महत्व है.

जैसे ही छठ पूजा (Chhath Puja) का पर्व नजदीक आता है, भक्त छठ पूजा की तिथि और पूरे शेड्यूल की तलाश में जुट जाते हैं. अगर आप भी यह जानना चाहते हैं कि लोहंडा-खरना (Lohanda and Kharna), नहाय-खाय (Nahay Khay), संध्या और ऊषा अर्घ्य (Sandhya and Usha Arghya) कब है? तो हम आपके लिए लेकर आए हैं चार दिवसीय छठ पूजा की तिथि, पूरा शेड्यूल और इससे जुड़ी हर जानकारी...

इस साल छठ पूजा का मुख्य पर्व 20 नवंबर को मनाया जाएगा. यह त्योहार चार दिन तक मनाया जाता है. छठ पूजा का व्रत बहुत ही सख्त और नियम-कायदों से भरा होता है. छठ पर्व को महापर्व या महाव्रत के रूप में भी जाना जाता है और इस चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी यानी 18 नवंबर से होगी. कहा जाता है कि छठ पूजा का व्रत रखने और सूर्यदेव की उपासना करने से परिवार में सुख-शांति, धन और समृद्धि आती है.

छठ पूजा 2020 तिथि और पूरा शेड्यूल

छठ पूजा पहला दिन: नहाय-खाय, 18 नवंबर 2020 (बुधवार)

छठ पूजा दूसरा दिन: लोहंडा-खरना, 19 नवंबर 2020 (गुरुवार)

छठ पूजा तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य, 20 नवंबर 2020 (शुक्रवार)

छठ पूजा चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य और पारण, 21 नवंबर 2020 (शनिवार)

नहाय-खाय

नहाय-खाय से छठ पूजा के पावन पर्व की शुरुआत हो जाती है. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है. इस साल नहाय-खाय बुधवार 18 नवंबर को है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:46 पर और सूर्योदय शाम 05:26 बजे होगा. इस दिन भक्त किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं. इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी या पीतल के बर्तनों में चने की दाल, लौकी और चावल बनाया जाता है, जिसका सेवन करने के बाद व्रत की शुरुआत हो जाती है.

लोहंडा-खरना

लोहंडा-खरना छठ पूजा का दूसरा दिन कहा जाता है. यह कार्तिक मास की पंचमी तिथि को पड़ता है, जो इस साल (गुरुवार) 19 नवंबर को पड़ रहा है. इस दिन सूर्योदय 06:47 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा. इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना ही व्रत किया जाता है और शाम को चावल और गुड़ की खीर बनाकर खाई जाती है. इस दिन नमक और चीनी से परहेज किया जाता है. इसके बाद व्रती को 36 घंटे का निर्जल व्रत रखना पड़ता है.

संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का मुख्य दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है, जो इस साल 20 नवंबर 2020 (शुक्रवार) को पड़ रहा है. इस दिन सूर्योदय प्रात: 06:48 बजे होगा और सूर्यास्त सायं 05:26 बजे होगा. इस दिन छठ पूजा का प्रसाद (ठेकुआ) और चावल के लड्डू बनाए जाते हैं. बांस की टोकरी में प्रसाद और फल सजाए जाते हैं. किसी तालाब, नदी या घाट पर संध्या के समय पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. यह भी पढ़ें: November 2020 Festival Calendar: करवा चौथ और पांच दिवसीय दिवाली उत्सव के साथ नवंबर महीने में पड़ रहे हैं कई बड़े व्रत व त्योहार, देखें पूरी लिस्ट

ऊषा अर्घ्य

छठ पूजा का आखिरी दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को पड़ता है. जो इस साल 21 नवंबर (शनिवार) को है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:49 बजे और सूर्यास्त शाम 05:25 बजे होगा. इस दिन सुबह सूर्योदय के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. ऊषा अर्घ्य और सूर्यदेव की विधिवत पूजा करने ही छठ पूजा का व्रत पूरा होता है. ऊषा अर्घ्य के बाद प्रसाद बांटकर व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं.

छठ पूजा के व्रत को सभी व्रतों में बेहद कठिन माना जाता है और इसके नियमों का भी व्रतियों को सख्ती से पालन करना पड़ता है. इस व्रत को करने से भगवान सूर्य और छठ मैया की कृपा प्राप्त होती है. इस व्रत के प्रभाव से सेहत अच्छी रहती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. कहा जाता है कि संतान की कामना रखने वालों को भी इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होती है और उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं.