Shab e-Barat 2025: भारत में कब मनाया जाएगा शब-ए-बारात? इस दिन रोजा रखने का क्या अर्थ है, साथ ही जानें इसका महत्व एवं इतिहास आदि?
शब-ए- बारात (Photo: File Image)

Shab e-Barat 2025: शाबान माह की 15वीं तारीख की रात को शब-ए-बारात कहते हैं. इसे ‘निस्फ शाबान’, ‘बारात की रात’, ‘चेरघ-ए-बारात कांदिली’ जैसे नामों से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों के सारे पापों को माफ कर देता है. कई हदीस में इस बात का उल्लेख है कि शब-ए-बारात की रात दुनिया में रहने वाले लोगों का इंसाफ होता है. अगर इस पाक दिन पर कोई व्यक्ति अपने गुनाहों से तौबा करते हुए, आगे कोई भी पाप नहीं करने का संकल्प लेता है, तो अल्लाह उसके सारे गुनाहों को माफ कर देता है. यही वजह है कि इस्लाम धर्म में इस शब-ए-बारात का काफी महत्व है. इस दिन ज्यादातर मुसलमान पूरी रात जागकर खुदा की इबादत करते हैं, और गुनाओं के लिए प्रायश्चित करते हैं. शब-ए-बारात को शिया मुसलमानों के 12वें इमाम- अल-महदी की जयंती भी मानी जाती है. आइये जानते हैं इस वर्ष शब-ए-बारात कब और कैसे मनाया जाएगा. यह भी पढ़ें: Shaban Mubarak 2025 Wishes: शाबान महीने की प्रियजनों को इन शानदार WhatsApp Stickers, GIF Greetings और HD Wallpapers के जरिए दें मुबारकबाद!

इस वर्ष कब मनाया जायेगा शब-ए-बारात

शब-ए-बारात की तारीख, इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शाबान महीने की 14वीं और 15वीं तारीख के बीच की रात को मनाई जाती है. हालांकि शाबान चांद दिखने के बाद ही सही तारीख निर्धारित की जाती है. प्राप्त जानकारी के अनुसार 30 जनवरी 2025 को चांद देखा गया है, इस तरह कहा जा सकता है कि इस साल 2025 में 13 फरवरी को शब-ए-बारात का पर्व मनाया जाएगा.

कैसे मनाते हैं शब-ए-बारात?

शब-ए-बारात के दौरान श्रद्धालु विशेष प्रार्थना करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं, और पूरी रात प्रार्थना करते हैं. कुछ लोग सुबह होने तक पवित्र कुरान पढ़ते हैं, और पूरी रात आध्यात्मिक गीत गाए जाते हैं. इस रात मुस्लिम समुदाय के लोग अपने मृत परिजनों की आत्मा की शांति के लिए उनके कब्रों पर जाकर क्षमा मांगते हैं. वे अपने मृत परिजनों के नाम पर गरीबों या जरूरतमंदों को धन, वस्त्र और अन्य जरूरत के सामान दान करते हैं. कहीं-कही शब-ए-बारात के दौरान विशेष खाद्य पदार्थ मिठाइयां एवं अन्य पकवान बनाकर आपस में शेयर कर खुशियों का इजहार करते हैं.

शब-ए-बारात का इतिहास और महत्व

हदीस (पैगंबर मुहम्मद के कथन) के अनुसार शब-ए-बारात की रात अल्लाह आने वाले वर्षों के लिए इंसानों की किस्मत का फैसला निर्धारित करते हैं. मान्यता है कि इस रात दया और क्षमा के दरवाजे खुले होते हैं, और लोग अल्लाह से उसकी असीम कृपा के लिए संपर्क कर सकते हैं, यही वजह है कि शब-ए-बारात सभी मुसलमानों के लिए आशीर्वादों की रात है. इस रात की कुछ विशेषताएं हैं, जिनका मुसलमानों को पालन करना आवश्यक है.

शब-ए-बारात में रोजा की परंपरा!

इस अवसर पर मुस्लिम समुदाय द्वारा दो दिन रोजा रखने का भी रिवाज है. पहला रोजा शब-ए-बारात के दिन और दूसरा रोजा अगले दिन रखते हैं. इस रोजा को फर्ज नहीं बल्कि नफिल रोजा कहा जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन रोजा रखने से व्यक्ति के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सारे गुनाह खत्म हो जाते हैं.