Bankim Chandra Chatterjee Jayanti 2020: राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की 182वीं जयंती, जानें उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
बंकिम चंद्र चटर्जी (Photo Credit: Wikipedia)

Bankim Chandra Chatterjee 182nd Birth Anniversary: भारत के राष्ट्रगीत  'वंदे मातरम' (Vande Mataram) के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी (Bankim Chandra Chatterjee) की आज 182वीं जयंती मनाई जा रही है. उनका जन्म 27 जून 1838 को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा नामक गांव में एक समृद्ध और परंपरागत बंगाली परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम बंकिम चंद्र चटर्जी था, लेकिन लोग उन्हें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) के नाम से भी जानते हैं. वे एक प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार, कवि और पत्रकार थे. उनके लेखन ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया.

इतना ही नहीं उनके द्वारा रचित राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिलती थी, जिस पर आज भी हर भारतीय गर्व महसूस करता है. चलिए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की 182वीं जयंती (Bankim Chandra Chatterjee Jayanti) पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें...

बंकिम चंद्र चटर्जी से जुड़ी रोचक बातें-

1- बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म एक समृद्ध बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता यादव चंद्र चट्टोपाध्याय मिदनापुर के डिप्टी कलेक्टर थे. उनके भाई संजीव चंद्र चट्टोपाध्याय भी एक उपन्यासकार थे और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक 'पलामाउ' काफी प्रसिद्ध थी.

2- बंकिम चंद्र की शुरुआती शिक्षा मिदनापुर में हुई, उसके बाद उन्होंने हुगली स्थित मोहसिन कॉलेज में दाखिला लिया और करीब 6 साल तक वहां पढ़ाई की. साल 1856 में वे कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज गए, जहां से उन्होंने 1859 में बीए पास किया. इसके बाद उन्होंने साल 1869 में लॉ की डिग्री भी हासिल की.

3- बंकिम चंद्र चटर्जी जब महज 11 साल के थे, तब उनकी शादी हो गई थी. शादी के समय उनकी पत्नी की उम्र महज 5 साल थी. जब वे 22 साल के हुए तो उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. पहली पत्नी के निधन के बाद उन्होंने राजलक्ष्मी से दूसरा विवाह किया, जिनसे उन्हें तीन बेटियां हुईं.

4- उन्होंने कई उपन्यास और कविताएं लिखीं, इसके साथ ही उनके कई लेखों ने लोगों में क्रांतिकारी विचारों का अलख जगाने का काम किया.उनके उपन्यास इतने प्रसिद्ध हो गए कि उनका अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं में भी किया जाने लगा.

5- बंकिम चंद्र ने रोमांस पर आधारित अपना पहला उपन्यास 'दुर्गेशनंदिनी' लिखा था, जिसका प्रकाशन साल 1865 में हुआ था. उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंद मठ' था जो साल 1882 में प्रकाशित हुआ था. आनंद मठ में ही वंदे मातरम गीत है, जिसे आगे चलकर राष्ट्रगीत के तौर पर अपनाया गया.

6- कपालकुंडल (1866), मृणालिनी (1869), विषवृक्ष (1873), चंद्रशेखर (1877), रजनी(1877), राजसिंह (1881) और देवी चौधरानी (1884) जैसे उनके कई उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुए थे. उपन्यास के अलावा उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें कृष्ण चरित्र', 'धर्मतत्व' और 'देवतत्व इत्यादि शामिल हैं.

7- पढ़ाई पूरी करने के बाद बंकिम चंद्र चटर्जी को जेसोर के डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया, जिसके बाद वे डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद तक पहुंचे. वे कुछ समय के लिए बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी तैनात रहे और साल 1891 में वे सरकारी नौकरी से रिटायर हुए. यह भी पढ़ें: Bankim Chandra Chattopadhyay Punyatithi 2020: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की पुण्यतिथि, जानें राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के रचयिता से जुड़ी रोचक और अनसुनी बातें

8- सन 1870-1880 के दशक में अंग्रेजी हुकूमत के शासकों ने सरकारी समारोहों में 'गॉड सेव द क्वीन' गीत गाने को अनिवार्य कर दिया था, जिससे बंकिम चंद्र चटर्जी को काफी ठेस पहुंची. इसके बाद उन्होंने सन 1875 में इस गीत के विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक 'वंदे मातरम' दिया.

9- अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल खुदीराम बोस, भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खां, बटुकेश्वर दत्त जैसे सैकड़ों क्रांतिकारी वंदे मातरम गीत गाते हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. खासकर बंगाल विभाजन के विरुद्ध उठे जन आक्रोश ने इस गीत को अंग्रेजों के खिलाफ एक हथियार के रूप में तब्दील कर दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे देश में वंदे मातरम गीत गाया जा रहा था.

10- गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर ने इस गीत के लिए एक अच्छी सी धुन तैयार की, जिसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया. 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के तौर पर स्वीकार किया. इस गीत के पहले गायक ओंकारनाथ ठाकुर थे.

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय एक ऐसे साहित्यकार थे, जिनकी रचनाओं को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब ख्याति मिली. यहां तक कि उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया और उन रचनाओं पर आधारित कई फिल्में भी बन चुकी हैं. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से उनके उपन्यासों का विभिन्न भाषाओं में अनुवादन होता रहा है. उनका निधन 8 अप्रैल 1894 को हुआ था.