रांची: झारखंड (Jharkhand) में पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) में अब ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिख रही है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के आनंदपुर के झाड़बेड़ा पंचायत (Jharbeda Panchayat) की सखी मंडल (Sakhi Mandal) की महिलाओं ने जंगल (Jungle) और जंगल के पेड़ो को कटने से बचाने के लिए एक अनोखे प्रयास की शुरुआत की है. अप्रैल 2021 से ग्रामीण महिलाओं द्वारा शुरू किए गए इस प्रयास के जरिए ग्रामीणों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी है. ये महिलाओं हाथ में डंडे लिए जंगलों की पहरेदारी कर रही हैं. Jharkhand Lockdown News: सीएम हेमंत सोरेन का ऐलान-झारखंड में कुछ छूट के साथ 10 जून तक रहेगा लॉकडाउन
ग्रामीण बताते हैं कि आनंदपुर प्रखंड के महिषगिड़ा में 9 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले जंगली क्षेत्रों में साल, सागवान, आसन, बांस, करंज, चिरोंजी, चैकुडी, महुआ, केंदु सहित कई पेड़ हैं. पूर्व में आजीविका चलाने के लिए इन जंगली फसलों की खेती और कटाई के समय आस-पास के छोटे पेड़ों को काट दिया जाता था तथा जंगलों में आग भी लगा दी जाती थी.
झाड़बेड़ा पंचायत की सखी मंडल की महिलाओं ने जंगलों की बर्बादी देखकर जंगलों को बचाने और रक्षा करने के अनूठे प्रयास की शुरुआत की. जंगल बचाओ पहल की शुरुआत इस इलाके के 7 सखी मंडलों की 104 ग्रामीण महिलाओं ने किया.
इन महिलाओं ने अपने आप को 4 ग्रुपों मे बांटकर रोजाना सुबह 6 से 9 बजे एवं शाम 4 से 6 बजे तक जंगल के इन इलाकों में पहरेदारी करती हैं. हाथों में डंडा लेकर पर्यावरण संरक्षण की मुहीम को बल दे रही ये महिलाएं रोजाना पेड़ों की गिनती भी करती हैं, जिससे पेड़ों की संख्या में आई कमी का पता चल सके.
ये महिलाएं प्रतिदिन एक जगह इकट्ठा होकर फिर अलग-अलग ग्रुप मे बंटकर जंगलों की पहरेदारी करने निकलती हैं. यही नहीं जिम्मेदारी से बचने वाली महिलाओं को 200 रुपये जुमार्ना भी देना पड़ता है.
बेरोनिका बरजो आईएएनएस को बताती हैं, "अगर बिना सूचना के कोई महिला नहीं पहुंचती तो उन्हे 200 रुपये का जुमार्ना भरना पड़ेगा. ऐसा नहीं करने पर सख्त कारवाई का प्रावधान भी किया गया है जिससे सदस्यों मे डर बना रहे. कोरोना महामारी के इस समय मे महिलाएं सरकार द्वारा निर्धारित सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर दीदियां दो गज की दूरी पर रहकर अपनी जिम्मेदारी को अंजाम दे रही हैं."
नेमंती जोजो कहती हैं, "जंगल के पेड़ों के कटने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है. पर्यावरण को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है इसलिए जंगलों की रक्षा भी हमे खुद ही करनी होगी. जंगल हमारी आजीविका का एक बड़ा हिस्सा हैं. अगर इनपर खतरा आएगा तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित नहीं होगा."
उन्होंने कहा कि हम सभी महिलाएं जंगल की सुरक्षा के लिए डंडे के सहारे जंगल के अंदर दो से तीन घंटे तक पहरेदारी करते हैं. ये महिलाएं ग्रामीणों को पर्यावरण संतुलन को लेकर जागरूक भी करती हैं.
दीदियों द्वारा चलाये जा रहे इस प्रयास की अब बाकी ग्रामीण प्रशंसा भी करते है और इस कार्य में अपना भी योगदान देते हैं. ग्रामीण अब सखी मंडल की दीदियों को सूचित कर जरूरत के हिसाब से ही लकड़ी इकट्ठा करते हैं.
झारखण्ड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी (जेएसएलपीएस) की सीईओ नैन्सी सहाय कहती हैं कि सखी मंडल की दीदियों की सामूहिक पहल 'जंगल बचाओ' पर्यावरण संरक्षण के लिए ग्रामीण महिलाओं की जागरुकता एवं सामाजिक जिम्मेदारी को दशार्ता है.
उन्होंने कहा, "सखी मंडल में जुड़कर महिलाएं आर्थिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी का भी निर्वहन कर रही हैं. राज्य की सखी मंडल की दीदियों को जैविक खेती, सौर सिंचाई संयत्र, पर्यावरण अनुकूल खेती समेत तमाम विषयों पर मदद एवं जागरुक किया जाता है. मुझे उम्मीद है कि दीदियों की इस पहल से दूसरों को पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी का अहसास होगा."