Swami Vivekananda Birth Anniversary: तरुणाई के सजग प्रहरी स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है. वे वेदांत के महानतम आचार्य और विश्व भर में भारतीय ज्ञान परम्परा के सबसे बड़े संवाहक रहे हैं. स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं.अधिकाधिक युवाओं को उनके विचार दर्शन से परिचित कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है.
कैसे मिला विवेकानंद नाम :
पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को जन्मे विवेकानंद बचपन से ही अद्भुत मेधा और तर्क शक्ति के धनी थे. उनके पूर्वाश्रम का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. माता भुवनेश्वरी देवी स्नेहवश उन्हें बिले कहकर पुकारती थी. स्वामी रामकृष्ण परमहंस के इस शिष्य ने सन्यास धारण करने के बाद अपना नाम नरेन्द्रनाथ से विविदिषानंद रख लिया था. अपने परिव्राजक जीवन के दौरान जून 1891 में स्वामी जी राजस्थान के खेतड़ी पहुंचे, जहां उनकी भेंट खेतड़ी नरेश राजा अजीत सिंह से हुई. राजा अजीत सिंह स्वामी जी को अपना गुरु मानते थे. दोनों के सम्बन्ध आजीवन प्रगाढ़. राजा अजीत सिंह के कहने पर ही स्वामी जी ने अपना नाम विविदिषानंद से विवेकानंद रखा था.
उस रात अपार ख्याति प्राप्त कर भी सो न सके थे विवेकानंद :
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो धर्म महासभा में भारतीय संस्कृति का परचम लहराया. उनके इस कृत्य ने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान भारत की ओर आकृष्ट किया. उन्हें अपार ख्याति प्राप्त हुई, किंतु उसी रात्रि को शिकागो के एक धनकुबेर के सुसज्जित भवन में राजकीय सम्मान के अधिकारी होते हुए भी वे सो न सके. वे रोते हुए धरती पर लेट गए और मां काली को पुकार कर कहने लगे, मां मैं इस नाम-यश-प्रसिद्धि का क्या करूँ जबकि मेरा देश गरीबी गुलामी और अशिक्षा में जकड़ा हुआ है. वास्तव में, स्वामी विवेकानंद के भीतर पीड़ितों और असहायों के लिए अथाह संवेदना थी. जितना अधिक वे पाश्चात्य का वैभव देखते उतना ही भारत की गरीबी-गुलामी को याद कर उनका हृदय चीत्कार उठता. संवेदना के इन्हीं क्षणों ने उनके भीतर शिव भाव से जीव सेवा करने के विचार को तीव्रता दी. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda 10 Great Thoughts: ‘संघर्ष जितना कठिन होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी’ पढ़ें स्वामी विवेकानंद के ऐसे ही 10 महान विचार
चहुं ओर गूंजती है विवेकानंद की ओजस्वी वाणी :
परिव्राजक के रूप में स्वामी जी ने सम्पूर्ण भारत की यात्राएं की. उन्होंने भारत समेत और विश्व के अधिकांश देशों में यात्राएं कर एक ओर जहां समाज की बुनावट को जाना तो वहीं विश्व को वेदान्त का सार्वभौम संदेश सुनाया. स्वामी विवेकानंद के पाश्चात्य देशों की यात्रा करने के दो उद्देश्य थे. प्रथम, भारत के अविनाशी जीवन तत्व आध्यात्म से विश्व का परिचय करवाना और दूसरा विदेशी संस्कृति के छद्म प्रभाव में डूबे लोगों को राह दिखाना. स्वामी विवेकानंद ने भारत में कश्मीर, असम , रामेश्वरम, राजस्थान, मेरठ,दिल्ली, रायपुर, पुणे, कलकत्ता और मद्रास समेत अधिकांश नगरों और अन्य ग्रामीण इकाईयों की यात्रा की थी. वहीं विदेशों में अमेरिका के प्रमुख नगरों जैसे न्यूयॉर्क, सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, फ्रांस में पेरिस, विएना, हंगरी, नेपाल,श्रीलंका इत्यादि देशों की यात्रा भी की थी.
कुरीतियों पर प्रहार करते विवेकानंद :
भारतीय समाज की तत्कालीन कुरीतियों पर स्वामी विवेकानंद ने खूब प्रहार किया. जातिवाद, शोषण, भुखमरी और अन्याय से देशवासियों की दुदर्शा को देखकर उनका अंतःकरण कराह उठता. वे समाज में समता के पक्षधर थे. वे कहते कि जब तक करोड़ों लोग गरीबी, भुखमरी और अज्ञान का शिकार हो रहे हैं, तब तक मैं हर उस व्यक्ति को शोषक मानता हूं, जिसने इनके पैसों से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन अब उनकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रहा है. पूर्वाग्रह और अंधविश्वास से भरे-बंटे समाज को उनके कठोर आघात ने करवट बदलने पर मजबूर किया. वास्तव में स्वामी विवेकानंद ने भारत को दीर्घकालव्यापी सम्मोहन की निद्रा से जगाया. भारतवासियों को उनका खोया हुआ व्यक्तित्व और आत्मविश्वास वापस लौटाया. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda 10 Great Thoughts: ‘संघर्ष जितना कठिन होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी’ पढ़ें स्वामी विवेकानंद के ऐसे ही 10 महान विचार
युवाओं को स्वामी विवेकानंद का संदेश :
स्वामी जी युवा वर्ग को संदेश देते हुए कहते,
• स्वयं पर विश्वास करो. संसार की समस्त शक्ति तुम्हारे भीतर है.
• नास्तिक वे लोग हैं जो स्वयं पर विश्वास नहीं करते.
• वे युवाओं का आह्वान करते हुए कहते कि तुम धर्मग्रंथों में उलझे रहने के बजाय खेल के मैदान में फुटबॉल खेलो, नदी में तैराकी करो जिससे तुम्हारी मांसपेशियां बलिष्ठ हो सके और तुम्हारा बल देश और समाज के काम आए.
• मुझे कम से कम सहस्त्र तरुण मनुष्यों की शक्ति की आवश्यकता है पर ध्यान दो मनुष्यों की, पशुओं की नहीं.
• चरित्रगठन करो, सत्य के महान आदर्श को लेकर जियो और मरो
स्वामी विवेकानंद का यह संदेश मानो राम कृष्ण और शिव की भूमिआ जागरण का शंखनाद था. देश के प्रति स्वामी विवेकानंद की अनन्य भक्ति थी. वे भारत माता को उसके पुरातन गौरवमयी सिंहासन पर आरूढ़ कर देना चाहते थे. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उनका सर्वाधिक विश्वास युवाओं पर ही था. आज भारत की 60 प्रतिशत आबादी युवा है. ऐसे में स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी विचारों को कार्यरुप में परिणित कर युवाशक्ति देश की उन्नति और मानवता के हित में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकती है.