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- वक्फ कानून पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
- अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर और तेज हुई
वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में आज बड़ी सुनवाई, 65 याचिकाएं दायर
वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज दोपहर 2 बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस संजय खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी. इसमें जस्टिस केवी विश्वनाथन और पीवी संजय कुमार शामिल हैं.
इस कानून के खिलाफ अब तक करीब 65 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं. याचिकाकर्ताओं में कई बड़े नेता और संगठन शामिल हैं, जैसे एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, सपा सांसद जिया उर रहमान, पूर्व सांसद उदित राज, दारुल उलूम देवबंद के प्रमुख मौलाना महमूद असद मदनी, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया.
इन सभी का कहना है कि नया वक्फ कानून संविधान के खिलाफ है और इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है. आज की सुनवाई से तय होगा कि कोर्ट इस विवादास्पद कानून पर आगे क्या रुख अपनाता है.
ट्रेड वॉर का नया पड़ाव, हांगकांग से अमेरिका भेजे जाने वाले पार्सल बंद
हांगकांग की सरकार ने अमेरिका से पार्सलों के आने-जाने को बंद करने का फैसला किया है. यह कदम अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर का ताजा असर माना जा रहा है. हांगकांग सरकार ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा बदलाव किया है कि अब 800 डॉलर तक के छोटे इंटरनेशनल शिपमेंट्स को भी टैक्स में छूट नहीं मिलेगी. पहले इन पर कोई ड्यूटी नहीं लगती थी.
हांगकांग सरकार ने अमेरिका पर “दादागीरी और ज्यादती” करने का आरोप लगाया और कहा कि अब आम लोगों को पार्सल भेजने के लिए महंगे प्राइवेट कूरियर सर्विसेस का सहारा लेना पड़ेगा.
नए नियमों के तहत पार्सलों का समंदर के रास्ते भेजा जाना तुरंत बंद कर दिया गया है. एयरमेल पार्सल्स 27 अप्रैल से बंद होंगे. हालांकि डॉक्युमेंट्स और चिट्ठियों पर कोई असर नहीं होगा. इस कदम से हांगकांग के छोटे कारोबारियों और ग्राहकों पर दबाव और बढ़ सकता है, क्योंकि अब उन्हें ज्यादा पैसे चुकाकर पार्सल भेजने होंगे.
रूस में DW के पूर्व पत्रकारों को जेल, नवालनी से जुड़ी रिपोर्टिंग पर ‘उग्रवाद’ का आरोप
मॉस्को की एक अदालत ने मंगलवार को चार पत्रकारों, एंटोनिना फावोर्स्काया, कॉन्स्टनटिन गाबोव, सर्गेई कारेलिन और आर्टेम क्रिगर को उग्रवाद के आरोप में दोषी ठहराया और साढ़े पांच साल की जेल की सजा सुनाई.
इन पर आरोप था कि ये लोग एलेक्सी नवालनी द्वारा स्थापित एंटी करप्शन फाउंडेशन (एफबीके) से जुड़े एक "चरमपंथी संगठन" का हिस्सा हैं. नवालनी की फरवरी 2024 में आर्कटिक जेल में रहस्यमयी हालात में मौत हो गई थी.
गाबोव और कारेलिन पहले डॉयचे वेले के मॉस्को ब्यूरो में काम कर चुके हैं. सभी पत्रकारों ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि वे केवल एफबीके की गतिविधियों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे, उसके सदस्य नहीं थे.
DW के डायरेक्टर जनरल पीटर लिमबुर्ग ने इस फैसले की कड़ी निंदा की और कहा, “रूसी सरकार एक बार फिर साबित कर रही है कि वह कानून का शासन नहीं मानती. बहादुर पत्रकारों को अपराधियों की तरह सजा दी जा रही है.” DW ने चारों पत्रकारों और उनके परिवारों के साथ एकजुटता जताई है.