Independence Day 2020: भारतीय संतों ने 15 अगस्त 1947 की आजादी का विरोध क्यों किया था
स्वतंत्रता दिवस (Photo Credits: File Image)

संतों और ज्योतिषियों ने 15 अगस्त 1947 की आजादी का विरोध क्यों किया? क्या भारत 14 अगस्त को ही आजाद कर दिया गया था? क्या थी कहानी? कहां किसने किया समझौता? एक रोचक दास्तान! ब्रिटिश हुकूमत से लंबे समय तक चली लड़ाई के बाद अंततः 15 अगस्त 1947 को हमें संपूर्ण आजादी मिली. इस आजादी को हासिल करने के तमाम छुए-अनुछए प्रसंग भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, जिसमें त्याग, शहादत, बलिदान, संवेदना और रोमांच सबकुछ निहित है. ऐसी ही एक घटना थी, ब्रिटिश शासित भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत को 'संपूर्ण आजादी' की घोषणा की, तो भारतीय साधु-संतों एवं ज्योतिषियों ने इसका खुलकर विरोध किया. आखिर संतों एवं ज्योतिषियों को क्या समस्या थी? उन्हें किसने एवं कैसे विश्वास में लिया ? आइये देखते हैं. यद्यपि इस घटना का जिक्र तत्कालीन पत्रकार और संपादक दुर्गादास जी की पुस्तक 'इंडिया - फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड ऑफ्टर' में भी मिलता है.

आनन-फानन में क्यों बदली गयी भारत की आजादी की तारीख:

ब्रिटिश हुकूमत आसानी से भारत को 'आजादी' देने के मूड में नहीं थी, लेकिन जब सारे साम-दाम-दण्ड-भेद सब कुछ इस्तेमाल करने के बाद जब उन्हें लगा कि अब भारत की सरजमीं पर ज्यादा दिन टिकना आसान नहीं है, तब मई 1947 में तय किया गया कि जून 1948 में अंग्रेज भारत को आजाद कर देंगे. इस आशय का योजना-पत्र लेकर लॉर्ड माउंटबेटन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली से मिलने लंदन गये. वे भारत की आजादी और बटवारे पर विस्तार से चर्चा करना चाहते थे. लेकिन भारत की आजादी के प्रस्ताव को हाउस ऑफ लॉर्ड में विपक्ष के नेता विंस्टन चर्चिल ने सिरे से खारिज कर दिया. वे किसी भी कीमत पर भारत से अपनी पकड़ नहीं हटाना चाहते थे. यद्यपि प्रधानमंत्री एटली और उनकी कैबिनेट ने माउंटबेटन की योजना पर स्वीकृति की मुहर लगा दी, लेकिन चर्चिल की स्वीकृत भी जरूरी था. क्योंकि हाउस ऑफ लॉर्ड्स में चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी बहुमत में थी और वे भारत की आजादी को दो साल तक रोक सकते थे. चर्चिल के अड़ियल रुख को देखते हुए माउंटबेटन ने उन्हें समझाया कि भारत में अंग्रेजों की गिरती साख से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमें ही नुकसान हो सकता है. जैसे-तैसे माउंटबेटन ने चर्चिल की सहमति हासिल कर ली. मई 1947 को तय किया गया कि भारत को अगले साल जून 1948 तक आजाद घोषित कर दिया जायेगा, लेकिन इसी दौरान बटवारे को लेकर जो सांप्रदायिक दंगे भड़के, तो अंग्रेजी हुकूमत इस आग में अपना हाथ जलाने के लिए तैयार नहीं थी. उन्होंने आनन-फानन में 15 अगस्त 1947 को ही भारत को आजाद करने का फैसला कर लिया.

यह भी पढ़ें- Independence Day 2020: जानें इस बार किन-किन बदलावों के साथ मनाया जाएगा स्वतंत्रता दिवस

आजादी की तारीख का संतों-ज्योतिषियों ने क्यों किया विरोध:

लॉर्ड माउंटबेटन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि भारत-पाकिस्तान के बटवारे आधार क्या होगा, और उन्होंने भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त 1947 की भी घोषणा कर दी. यह एक आजाद एवं नये भारत का जन्म था. इस तिथि की आधिकारिक घोषणा होते ही भारतीय संतों एवं ज्योतिष अपने-अपने पंचांग-पोथी इत्यादि खोलकर भारत की जन्म-पत्री बनाने में जुट गये. भौगोलिक स्थिति, ग्रह, नक्षत्र एवं राशि का गणितीय आकलन करते-करते सारे संत और ज्योतिषियों ने पाया कि इस नये भारत के लिए यह तिथि बेहद अमंगलकारी साबित हो सकता है. उन्होंने इस तिथि को स्वीकार करने से स्पष्ट मना कर दिया. काशी (वाराणसी) के ज्योतिषियों ने इस तिथि को देश के लिए घातक माना. उनके अनुसार 15 अगस्त 1947 को अगर नये भारत का जन्मदिन घोषित किया जाता है तो भारत की राशि मकर होती है, उस पर शनि का गहरा साया भी स्पष्ट दिख रहा था, वृषभ राशि का राहु भी लग्न में था, यह एक अभीष्ठ चिंता की स्थिति थी. अगर नये भारत के उदय की यही तारीख तय हो जाती है तो भारत आये दिन दैवीय आपदाओं, गरीबी, भुखमरी का सामना करना पड़ सकता था. उधर कलकत्ता (कोलकाता) के स्वामी मदनानंद ने भी ग्रहों, नक्षत्रों एवं राशियों का आकलन करने के बाद पाया कि यह तारीख भारत के लिए अनिष्ठकारी साबित होगा. सभी संतों एवं ज्योतिषियों की आम सहमति के बाद लॉर्ड माउंटबेटन को एक पत्र भेजा गया और बताया गया कि हिंदुस्तान की आजादी की अमुक तिथि पर पुनर्विचार किया जाये, क्योंकि हम एक नया और खुशहाल भारत देखना चाहते हैं, हम इसकी तबाही नहीं चाहते.

कैसे हुई सुलह क्या निकला हल?

ज्योतिषियों के अनुसार 14 अगस्त 1947 का दिन ज्यादा शुभ था. अंततः कांग्रेस नेता पं. जवाहर लाल नेहरु ने बीच का रास्ता निकालते हुए 14 अगस्त को अपराह्नकाल में संविधान सभा की मीटिंग बुलाई. यह मीटिंग मध्य-रात्रि 12 बजे तक चली. इसके तुरंत बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की पूर्ण आजादी की घोषणा कर दी. ज्योतिषियों की समस्या का हल कुछ इस तरह निकाला गया कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रात 12 बजे से 15 अगस्त शुरू हो जाता है. भारतीय मान्यताओं और शास्त्रों में अगले दिन की शुरुआत सूरज के उदय के साथ माना जाता है. यानी जब माउंटबेटन ने भारत की आजादी की घोषणा की भारतीय मान्यताओं के अनुसार वह 14 अगस्त की तिथि थी. ज्योतिषि एवं संत भी यही दिन चाहते थे.

क्या कहती थी नये भारत की जन्म-कुंडली:

नये भारत की जन्मपत्री के अनुरूप तैयार कुंडली वृषभ लगन की है, राहु और केतु एक्सिस पर हैं. लग्न का स्वामी शुक्र तृतीय भाव में पांच ग्रहों सूर्य, शनि चंद्र, बुध और शुक्र के मध्य है हालांकि तृतीय भाव में इतने ग्रहों का होना उतार-चढ़ाव दिखाता है, लेकिन साथ ही यह पराक्रम का भाव भी दिखाता है. यही वजह है कि आज भी तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत लगातार विकास कर रहा है. हर क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. गुरु छठे भाव में विपरीत राजयोग बना रहा है यानि हमेशा प्रतिकूल स्थितियां होने के बावजूद भारत बड़े साहस से इनसे मुक्ति हासिल कर लेता है.