कोरोना महामारी: ICMR के वरिष्‍ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेडकर से  जानें कोवैक्सिन के ट्रायल से जुड़ी खास बातें
कोरोना से जंग (Photo Credits: Pixabay)

जब से भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन (COVAXIN)  के नाम की घोषणा की है, हर तरफ एक ही सवाल है- कोरोना वायरस की यह वैक्सीन कब आयेगी? इस वैक्‍सीन के निर्माण में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्‍ट‍िट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के वैज्ञानिक भी भारत बायोटेक के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वैक्‍सीन के ट्रायल को लेकर हमने आईसीएमआर के वरिष्‍ठ वैज्ञानिक डा. रमन आर गंगाखेडकर से बात की तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी.

प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. गंगाखेडकर ने बताया कि कोवैक्सिन का जानवरों पर ट्रायल हो चुका है,  अब ह्यूमन ट्रायल शुरू होगा.मानव पर तीन स्तर का ट्रायल होते हैं. पहली स्टेज में देखा जाता है कि वैक्सीन सेफ है या नहीं.इसी दौरान ये भी देखा जाता है कि वैक्सीन लेने वाले में एंटीबॉडी बन रहे हैं या नहीं। दूसरी स्टेज में देखा जाता है कि कोई साइड इफेक्ट तो नहीं. एक साल या 6 महीने के अंदर कोई दुष्परिणाम होते हैं या नहीं,  तीसरी स्टेज में ये देखा जाता है कि वैक्सीन देने के बाद कितने लोगों को नए सिरे से बीमारी होती है या नहीं. चौथी स्टेज की प्रक्रिया ट्रायल मोड में नहीं होती. उसमें आम लोगों को जब वैक्सीन देना शुरू करते हैं, तो देखा जाता है कि अगले दो साल तक कोई साइड इफेक्ट तो नहीं आये. उसे पोस्ट मार्केटिंग सर्विलांस कहते हैं. उसके बाद वैक्सीन पर अंतिम निर्णय लिया जाता है. यह भी पढ़े: COVID-19 Vaccine: कोरोना की देसी वैक्सीन COVAXIN को 15 अगस्त को किया जा सकता है लॉन्च, ह्यूमन ट्रायल जल्द होगा शुरू

आम लोगों तक वैक्सीन आने में कितना वक्त लग सकता है?

इस सवाल पर डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि कोविड के पहले तक वैक्सीन के ट्रायल में 7-10 साल तक लगते थे। चूंकि कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है इसलिए इस संक्रमण को कम करने के लिए अलग-अलग तरह से वैक्सीन के ट्रायल हो रहे हैं। भारत में भी बनने में करीब डेढ़ से दो साल का समय लगेगा. अभी जो भारत की वैक्सीन है, उसका फेज वन (phase) का ट्रायल 15 अगस्त तक पूरा हो जाएगा. उसमें पता चल जाएगा कि इस वैक्सीन से एंटीबॉडी बन रहे हैं या नहीं और यह सेफ है या नहीं। उसके बाद दूसरे स्टेज का ट्रायल होगा. शायद कंपनी ने सोचा है कि अगर ये वैक्सीन काम करेगी तो इसका प्रोडक्शन शुरू कर देंगे, ताकि पूरे ट्रायल के बाद अगर सफल हुई, तो भारत में इतनी बड़ी आबादी तक जल्द से जल्द पहुंच जाये. अगर यह करागर नहीं हुई तो पैसे का नुकसान भी हो सकता है.

उन्‍होंने आगे बताया कि वैक्सीन का ट्रायल अलग-अलग फेंज़ में होता है। फेज़ वन में करीब 40 से 50 लोगों पर ट्रायल किया जाता है। फेज़ 2 में 200-250 लोगों पर ट्रायल होता है। फेज 3 में बड़ी संख्या में लोग पार्टिसिपेट करते हैं। लेकिन जो भी परिणाम आते हैं उसके आधार पर ही कैल्कुलेशन करके सैंपल लिया जाता है। उन्‍होंने बताया कि अभी दो ही वैक्सीन हैं जो फेज टू ट्रायल में हैं। एक ऑक्सफ़ोर्ड में बनी वैक्सीन है जिसका नाम केडॉक्स है। दूसरी चीन की वैक्सीन है जो साइनोवैक कंपनी ने बनाई है। ये दोनों ही भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सि की स्तर की हैं.