नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सूचित किया गया है कि मौजूदा और पूर्व सांसदों (MP) एवं विधायकों (MLA) के खिलाफ लंबित मामले दिसंबर 2018 में 4,110 से बढ़कर दिसंबर 2021 में 4,984 हो गए. न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त किये गए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में शीर्ष न्यायालय को बताया कि इनमें से कुछ मामले तीन दशकों से अधिक समय से लंबित हैं. 2,324 मामले मौजूदा विधायकों के खिलाफ हैं और 1,675 मामले पूर्व विधायकों के खिलाफ थे. यहां तक कि 1,991 मामलों में तो अभी तक आरोप भी तय नहीं किए गए थे. उच्च न्यायालयों द्वारा लगाई गई रोक (स्टे) के कारण 264 मामले लंबित पड़े हुए हैं. Supreme Court: उच्चतम न्यायालय में केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार पर कानून का बचाव किया
एमिकस क्यूरी ने सांसदों और विधायकों की सुनवाई में तेजी से जुड़े एक मामले में रिपोर्ट दाखिल की.
रिपोर्ट के अनुसार, जो मामलों पर राज्य-वार डेटा प्रदान करती है, उत्तर प्रदेश 1 दिसंबर, 2021 तक अंतिम निपटान के लिए लंबित 1,339 मामलों के साथ सूची में सबसे ऊपर है, जबकि दिसंबर 2018 में यहां से 992 मामले लंबित थे और अक्टूबर 2020 में इन मामलों की संख्या 1,374 थी. इसलिए, डेटा से पता चलता है कि अक्टूबर 2020 और 1 दिसंबर, 2021 के बीच केवल कुछ ही मामलों का निपटारा किया गया है. 4 दिसंबर, 2018 से देखें तो यूपी के 435 मामलों का निपटारा किया, जिसमें सत्र न्यायालय द्वारा 364 और मजिस्ट्रेटों द्वारा निपटाए गए 71 मामले शामिल हैं.
बिहार में दिसंबर 2018 में 304 मामले लंबित थे, जो अक्टूबर 2020 में बढ़कर 557 और फिर दिसंबर 2021 में 571 हो गए. 571 मामलों में से 341 मामले मजिस्ट्रेट अदालतों में और 68 मामले सत्र न्यायाधीशों के समक्ष लंबित हैं.
रिपोर्ट, जिसे गुरुवार को शीर्ष अदालत में प्रस्तुत किया गया था, में कहा गया है, यह प्रस्तुत किया जाता है कि इस माननीय न्यायालय द्वारा कई निर्देशों और निरंतर निगरानी के बावजूद, 4984 मामले लंबित हैं, जिनमें से 1899 मामले 5 साल से अधिक पुराने हैं. यह ध्यान दिया जा सकता है कि दिसंबर 2018 तक लंबित मामलों की कुल संख्या 4110 थी और अक्टूबर 2020 तक 4859 थी. 4 दिसंबर, 2018 के बाद 2775 मामलों के निपटान के बाद भी सांसदों एंव विधायकों के खिलाफ मामले 4122 से बढ़कर 4984 हो गए हैं.
2018 में, शीर्ष अदालत ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने का निर्देश जारी किया था और तब से, इसने कई निर्देश जारी किए हैं, जिसमें केंद्र से जांच में देरी के कारणों की जांच के लिए एक मामलों के संबंध में निगरानी समिति गठित करने के लिए कहा गया है.
सांसदों के खिलाफ मामलों की संख्या का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है, इससे पता चलता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक लोग संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों पर कब्जा कर रहे हैं. यह अत्यंत आवश्यक है कि इसके लिए तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं. लंबित आपराधिक मामलों का त्वरित निस्तारण किया जाना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच में देरी के कारणों का मूल्यांकन करने के लिए एक निगरानी समिति के गठन के संबंध में पिछले साल अगस्त में अदालत के आदेश के बाद केंद्र ने कोई सुझाव नहीं दिया है.