दिल्ली की बसों में महिलाओं के लिए किराया-मुक्त ‘पिंक टिकट’ योजना ने 100 करोड़ टिकटों का आंकड़ा पार कर लिया है, लेकिन एक नई रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा का मुद्दा अब भी गंभीर बना हुआ है. ग्रीनपीस इंडिया की 'राइडिंग द जस्टिस रूट' रिपोर्ट बताती है कि 77% महिलाएं रात के समय बसों में सफर को असुरक्षित महसूस करती हैं, जिसका प्रमुख कारण कम रौशनी और बसों की अनियमित सेवा है.
महिलाओं की आर्थिक बचत, लेकिन सुरक्षा का सवाल
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस योजना से 75% महिलाओं को आर्थिक राहत मिली है. बचाए गए पैसे से महिलाएं घर की जरूरतों, आपातकालीन स्थितियों और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश कर रही हैं. 25% महिलाओं ने इस योजना के बाद सार्वजनिक बसों का उपयोग बढ़ाया, जो पहले सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नहीं करती थीं.
छेड़छाड़ और भीड़भाड़ बनी समस्या
हालांकि, कई महिलाओं ने बसों में भीड़भाड़ और छेड़छाड़ की घटनाओं की शिकायत की है. रात में सुरक्षा की कमी के कारण कई महिलाएं अब भी बसों में सफर करने से कतराती हैं. ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर आकीज फारूक ने कहा, "यह योजना महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन के दरवाजे खोलती है, लेकिन इसे प्रभावी बनाने के लिए बसों की संख्या बढ़ानी होगी और सुरक्षा इंतजाम मजबूत करने होंगे."
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि किराया-मुक्त यात्रा योजना से न केवल महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता बढ़ी है, बल्कि निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर प्रदूषण भी कम हुआ है.
राष्ट्रीय स्तर पर योजना लागू करने की मांग
ग्रीनपीस इंडिया ने सुझाव दिया है कि इस प्रकार की किराया-मुक्त योजनाएं पूरे देश में महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए लागू की जानी चाहिए. साथ ही सुरक्षित और सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि हर कोई सार्वजनिक परिवहन का सुरक्षित उपयोग कर सके और शहरों को अधिक टिकाऊ बनाया जा सके.
हालांकि पिंक टिकट योजना ने महिलाओं को राहत दी है और उनकी जीवनशैली में सुधार लाया है, लेकिन सुरक्षा के मुद्दे अभी भी बड़ी चुनौती हैं. बसों की संख्या बढ़ाने, समयबद्ध सेवाएं सुनिश्चित करने और सुरक्षा उपायों को मजबूत करके ही महिलाओं के लिए यह योजना पूरी तरह प्रभावी हो सकेगी.