सर्वाइकल कैंसर के खात्मे में मील का पत्थर बनेगा एचपीवी टेस्ट
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सर्वाइकल कैंसर अक्सर ही एचपीवी संक्रमण की वजह से होता है. एक नया सस्ता एचपीवी टेस्ट मरीजों की जांच में मददगार हो सकता है. सर्वाइकल कैंसर के इलाज में ये एक अहम कदम साबित होगा.एक नया सस्ता, प्वाइंट-ऑफ-केयर परीक्षण विकसित किया गया है जो इंसानों में पैपिलोमावायरस (एचपीवी) की मौजूदगी की पहचान कर सकता है. सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण यही वायरस, एचपीवी है.

एचपीवी के कुछ खास स्ट्रेनों के संक्रमण से ही सर्वाइकल कैंसर होता है. लेकिन महंगे इलाज और बुनियादी ढांचे के अवरोधों की वजह से स्क्रीनिंग और उपचार तक व्यापक पहुंच नहीं मिल पाती.

साइंस ट्रान्सलेश्नल मेडिसिन जर्नल में 21 जून को प्रकाशित एक नये अध्ययन में दिखाया गया है कि एचपीवी टेस्ट कैसे महज 45 मिनट में पूरा हो सकता है और खर्च भी मामूली है- सिर्फ प्रति टेस्ट 5 डॉलर (4.6 यूरो).

टेस्ट की आसान प्रक्रिया और कम कीमत, विकासशील देशों में सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग की गंभीर कमी को भर सकती है. इन देशों में एचपीवी संक्रमणों का अक्सर पता नहीं चल पाता.

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सर्वाइकल कैंसर को रोका नहीं जा सका है

सर्वाइकल कैंसर, विज्ञान में सफलता और विफलता की कहानी है. ये कैंसर के सबसे ज्यादा रोके जा सकने वाला रूपों में से एक है, फिर भी हर साल छह लाख औरतें सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित होती हैं जबकि साढ़े तीन लाख औरतें इस बीमारी से दम तोड़ देती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक इनमें से 90 फीसदी औरतें गरीब देशों में रहती हैं.

हमारे पास अभी एचपीवी की रोकथाम और इलाज के लिए कई सारे औजार मौजूद हैं- एचपीवी संक्रमण रोकने वाली वैक्सीनें, एचपीवी की सटीक शिनाख्त के आला दर्जे के तरीके, और फ्रीजिंग या लेजर जैसे शुरुआती उपचार. लेकिन एचपीवी स्क्रीनिंग की कीमत और उसका महंगा साजोसामान, सर्वाइकल कैंसर की दरों में कटौती के सामने प्रमुख रुकावटों में से एक है.

अमेरिका की राइस यूनिवर्सिटी में बायो इंजीनियरिंग की प्रोफेसर और हालिया अध्ययन की लेखक, रेबेका रिचर्ड्स-कोर्टुम कहती हैं, "टीके तैयार करने में हमारा प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, ना ही हम आला दर्जे की टेस्टिंग और स्क्रीनिंग कर पाए हैं. डब्लूएचओ ने 90 फीसदी लड़कियों के टीकाकरण, 30 से 45 की उम्र की 70 फीसदी औरतों की स्क्रीनिंग और 90 फीसदी महिलाओं के इलाज का लक्ष्य रखा है. लेकिन हम उस लक्ष्य से अभी वाकई बहुत दूर हैं." प्रोफेसर रेबेका ने नये एचपीवी टेस्ट पर भी काम किया है.

जीनएक्सपर्ट सिस्टम जैसे मौजूदा एचपीवी टेस्टों ने प्रति टेस्ट 15 डॉलर की कम कीमत रखी है. लेकिन टेस्ट को अंजाम देने की प्रक्रिया में 17 हजार डॉलर निकल जाते हैं. फिर लैब की कीमतें हैं, टेस्ट करने की ट्रेनिंग भी चाहिए.

प्रोफेसर रेबेका ने डीडब्लू को बताया, "बिजली, एसी और इंटरनेट वाली प्रयोगशालाओं की जरूरत है. दुनिया में चिकित्सा कल्याण में काम कर रही बहुत सी जगहों में ये तमाम चीजें मौजूद नहीं हैं."

एक दिन की जांच और इलाज

अध्ययन के लेखकों ने एक ऐसा एचपीवी टेस्ट तैयार किया जो कम महंगा हो और एक बार के अप्वायनमेंट में ही निपट जाए.

रिचर्डस-कोर्टुम के मुताबिक, "औरतें खुद ही सैंपल ला सकती हैं, जिसे तत्काल (45 मिनट में) ही टेस्ट कर लिया जाता है. अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है तो तो उनका फौरन इलाज कर दिया जाता है, सारा काम एक बार में ही निपट जाता है."

फायदा ये है कि टेस्ट करना आसान है, इसमें बहुत सारी ट्रेनिंग और बड़े व महंगे तामझाम की जरूरत नहीं. लेखकों का अनुमान है कि प्रति टेस्ट इसकी कीमत पांच डॉलर आएगी. उपकरण की कीमत होगी 1000 डॉलर, और ट्रेनिंग भी बहुत ज्यादा नहीं चाहिए.

सर्विकोवेजाइनल स्वैबों से ये टेस्ट एचपीवी डीएनए के निशानों की पहचान खुद ही कर लेता है. कोविड-19 के लेटरल फ्लो टेस्ट की तरह ही काम करता है, लेकिन शुरू में कुछ अतिरिक्त चीजें इसमें करनी होती हैं. कैमिकल बफर्स की मदद से सैंपल की कोशिकाओं से डीएनए निकाल लिया जाता है, उसके बाद हीट-ट्रीटमेंट और एम्प्लीफिकेशन की बारी आती है. फिर सॉल्युशन को एक लेटरल फ्लो पट्टी पर रख दिया जाता है जिसे कोविड-19 टेस्ट की तरह ही पढ़ सकते हैं.

ट्रायल परीक्षणों में टेस्ट ने अमेरिका से मिले स्वैब्स में एचपीवी डीएनए की शिनाख्त की और उसी तरह मोजाम्बीक के एक अस्पताल से मिले स्वैबों में भी.

फिलहाल, टेस्ट सिर्फ एचपीवी के दो स्ट्रेनों का ही पता लगा सकता है- एचपीवी 16 और एचपीवी 18.

ये दो स्ट्रेन, 70 फीसदी सर्वाइकल कैंसरों के जिम्मेदार हैं. लेकिन रिचर्ड्स-कोर्टुम और उनकी टीम चाहती है कि टेस्ट का दायरा बढ़ाकर दूसरे छह और बड़े जोखिम वाले एचपीवी स्ट्रेनों को भी उसमें शामिल किया जाए.

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कम से कम जरूरतों के साथ एचपीवी स्क्रीनिंग

रवांडा जैसे देशों में बड़ा ही मजबूत एचपीवी टीकाकरण और जांच अभियान चलाया गया है. रवांडा अफ्रीका में और शायद पूरी दुनिया में पहला देश होगा जिसने इस बीमारी को खत्म कर दिया है.

सर्वाइकल कैंसर की ऊंची दरों और स्क्रीनिंग और टीकारण में तमाम किस्म के अवरोधों से जूझ रहे अन्य देश रवांडा से सबक ले सकते हैं. उम्मीद है कि इस मुहिम में नये टेस्ट बड़े काम का साबित होगा.

अध्ययन में कुंड्रोड और अन्य ने निष्कर्ष निकाला कि, "इस टेस्ट का प्रारूप ऐसा है और ये इतना किफायती है कि सीमित संसाधनों वाल जगहों में ये चीजें सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग को और ज्यादा विकेंद्रीकृत और सुगम बनाएंगी. और ये वैश्विक स्तर पर सर्वाइकल कैंसर के खात्मे की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम होगा."