Tokyo Olympics 2020: झोली में कांस्य- वो आखिरी छह सेकंड जब थम गई थीं सांसें, गुमसुम हो गई थीं धड़कनें
Indian Hockey Team (Photo Credits: Twitter)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने भारतीय हॉकी टीम की ऐतिहासिक जीत पर ”प्रफुल्लित भारत! प्रेरित भारत! गर्वित भारत!” जैसे शब्दों का प्रयोग किया. उनके इन शब्दों से बयां होता है कि टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की शानदार जीत न केवल 16 खिलाड़ियों की एक टीम की जीत थी बल्कि यह पूरे देश की जीत है. इस जीत की चमक आज हर भारतीय की आंखों में नजर आ रही है. कुछ ऐसा है नया भारत जो आत्मविश्वास से भरा है. जापान की धरती पर नीली जर्सी में खेलने वाले इन खिलाड़ियों के साथ आज पूरा हिंदुस्तान मैदान पर नजर जमाए हुए था. आज शायद ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद को भी नाज होगा कि उनके नक्शेकदम पर चलते हुए भारतीय हॉकी टीम के नए लड़कों ने ओलंपिक खेलों में भारत के पुराने रुतबे को वापस लौटाया है. जी हां, टोक्यो ओलंपिक में गुरुवार को भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने जर्मनी को 5-4 के स्कोर से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया. यदि इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो इस जीत के मायने और अधिक बढ़ जाते हैं. दरअसल, यही वो पल है, जिसका पूरे भारत को बेसब्री से इंतजार था.

आत्मबल नहीं होने दिया कमजोर

भारतीय टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें वापसी करने की क्षमता है. दूसरे क्वार्टर की शुरुआत में दो गोल खाने से भी भारतीय हॉकी टीम ने मुकाबले के दौरान अपना आत्मबल कमजोर नहीं होने दिया. टीम ने जर्मनी के खिलाफ खेल पर नियंत्रण बनाए रखा. मैच के दौरान भारतीय हॉकी टीम का गेंद पर करीब 58 प्रतिशत कब्जा रहा. भारत ने दूसरे क्वार्टर के आखिरी चार मिनट में खेल की दिशा को एकदम से बदल दिया और 3-3 की बराबरी कर ली. यह बराबरी पेनल्टी कॉर्नर पर जमाए गोलों से हासिल की गई. पहले मौके पर हार्दिक ने रिबाउंड पर गोल जमाया और फिर हरमनप्रीत ने ड्रैग फ्लिक से गोल जमाया. भारतीय टीम पूरी लय में खेल रही थी. भारत ने सेकेंड हाफ के तीसरे क्वार्टर में आक्रामक अंदाज से शुरुआत करते हुए जर्मनी के डिफेंस पर जबरदस्त दबाव बना दिया. इसी के बलबूते भारत ने मैच के तीसरे क्वार्टर की शुरुआत में ही दो गोल जमा कर 5-3 की बढ़त बना ली.

7 मिनटों के भीतर भारत ने किए 4 गोल

आज के मुकाबले की बात करें तो कांस्य पदक के लिए जर्मनी से बड़ी रोमांचक भिड़ंत हुई. एक वक्त टीम 1-3 से पिछड़ने के बाद भारतीय टीम ने जोरदार वापसी की और 5-4 से मुकाबला अपने नाम किया. 7 मिनटों के भीतर 4 गोल करके भारतीय हॉकी टीम ने पूरी कहानी ही पलट दी. यह भारतीय टीम के कभी हार न मानने वाले जज्बे को दिखाता है.

आखिरी छह सेकेंड ने बढ़ा दी थीं धड़कनें

खेल समाप्ति से साढ़े चार मिनट पहले जर्मनी की टीम ने पैनिक बटन दबाकर अपने गोलकीपर स्टेडलर को बाहर बुलाकर सभी 11 खिलाड़ियों को मैदान पर उतार दिया. खेल समाप्ति के महज छह सेकेंड बचे थे जब जर्मनी को मैच का दसवां पेनल्टी कॉर्नर मिल गया और भारतीय टीम और खेल प्रेमियों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं. लेकिन भारतीय दीवार कहे जाने वाले गोलकीपर श्रीजेश ने शानदार डिफेंस किया और भारत का पोडियम पर चढ़ना पक्का कर दिया. इससे ढाई मिनट पहले भी जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला था लेकिन भारतीय डिफेंडर्स की मुस्तैदी से जर्मनी को अपने इरादों में सफलता नहीं मिली.

मैच के अंतिम क्षण और खुशी से झूम उठा देश

भारतीय टीम 135 करोड़ देशवासियों की उम्मीदों पर खरी उतरकर 41 साल से ओलंपिक पदक से चली आ रही दूरी को खत्म करके देश को खुशी से झुमा दिया. मैच के अंतिम क्षणों के बाद जैसे ही हूटर बजा मैदान पर खिलाड़ियों के साथ पूरे देश की आंखें खुशी से नम हो गईं. यह जीत भारतीय टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह के लिए भी बेहद खास है, क्योंकि इस जीत ने उन्हें वी. भास्कन जैसे कप्तान की श्रेणी में खड़ा कर दिया. इससे पहले भास्करन के नेतृत्व में भारतीय हॉकी टीम ने 1980 मॉस्को ओलंपिक में स्वर्ण जीता था. भारतीय हॉकी टीम ने खेलों के सबसे बड़े मंच पर 41 साल बाद सफल वापसी की है.

भारतीय हॉकी टीम का इतिहास

वर्ष 1900 से अब तक ओलंपिक में भारत को नौ स्वर्ण पदक समेत कुल 33 मेडल मिले हैं. सबसे ज्यादा 11 पदक हॉकी में मिले हैं. ये सिलसिला शुरू होता है सन् 1928 के ओलंपिक खेलों से जब 1928 से 1956 तक लगातार 6 बार भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक पर कब्जा कर हिंदुस्तान का तिरंगा बुलंद किया. जी हां भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में अब तक कुल 8 बार और इसमें छह बार लगातार स्वर्ण पदक पर अपना कब्जा जमाया है. पूरी दुनिया में इस कीर्तिमान के करीब आज तक न तो कोई देश पहुंच सका है और न ही आगे पहुंचने की कोई उम्मीद नजर आती है. मेजर ध्यान चंद जैसे महान खिलाड़ियों के अद्वितीय प्रदर्शन की बदौलत भारतीय हॉकी टीम ने जो इतिहास रचा है वह अपने आप में महान है.

टीम ने दिलाए थे आठ स्वर्ण पदक

ओलंपिक में आठ स्वर्ण पदक जीतने वाला भारत साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर सका था. ऐसा भारतीय हॉकी टीम के साथ केवल एक बार हुआ है. साल 1928 में एम्सटरडम में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारत पहली बार हॉकी के मैदान में उतरा और फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को 6-0 से हराकर स्वर्ण पदक पर हासिल किया. भारत का ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का यह यादगार सफर यही नहीं थमा बल्कि 1932 में एक बार फिर लॉस एंजेलिस में ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक पर कब्जा किया. इसके बाद 1936 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हुआ. बर्लिन के ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम के जांबाजों ने स्वर्ण पदक जीतकर तहलका मचा दिया. फाइनल मुकाबले में हिटलर के सामने हिंदुस्तान ने जर्मनी को शिकस्त दी. हिटलर भारत के हाथों जर्मनी की हार देखकर बहुत शर्मिंदा हुआ. इस प्रकार ओलंपिक खेलों में लगातार तीन बार स्वर्ण पदक पर कब्जा करने के बाद भारत का नाम पूरी दुनिया में लोग लेने लगे. हिंदुस्तान-हॉकी और स्वर्ण पदक ये तीनों एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गए. यह भी पढ़े: Tokyo Olympics 2020: पीएम मोदी ने भारतीय पुरुष हॉकी टीम को फोन कर दी बधाई, देखें वीडियो

पूरी दुनिया में बज रहा था ”हॉकी के जादूगर’ का डंका

मेजर ध्यान चंद के नाम का डंका हॉकी के जादूगर के रूप में पूरी दुनिया में बज रहा था. इसके बाद विश्व युद्ध के कारण साल 1940 और साल 1944 में ओलंपिक खेलों का ओयजन नहीं हो सका. 12 साल बाद साल 1948 फिर से ओलंपिक खेलों का बिगुल लंदन में बजा. इस बार हिंदुस्तान आजाद हो चुका था और आजाद हिंदुस्तान ने ब्रिटेन को ओलंपिक में उसकी ही सरजमीं पर शिकस्त देकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया. इस बार स्वर्ण पदक की चमक और अधिक बढ़ गई है क्योंकि भारत ने ब्रिटेन की उसी की धरती पर धूल चटाई. इस दौरान भारत में ब्रिटेन को 4-0 से पटखनी दी.

भारत ने बनाया था विश्व कीर्तिमान

इसके पश्चात भारतीय हॉकी टीम ने फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में साल 1952 में हुए ओलंपिक और 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भी स्वर्ण पदक पर कब्जा किया. इस तरह भारतीय हॉकी टीम ने लगातार 6 बार स्वर्ण पदक अपने नाम करने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया. इसके पश्चात साल 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय टीम को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा, लेकिन चार साल बाद भारतीय हॉकी टीम अपने पुराने तेवर व जोश के साथ वापसी करने लौटी. इस दौरान भारतीय हॉकी टीम ने साल 1964 में कई दिग्गज टीमों को पटखनी देते हुए एक बार फिर स्वर्ण पदक पर कब्जा किया.

मुश्किलें भी कम नहीं थीं

इतने साल तक ओलंपिक में अपना दबदबा कायम रखने वाली भारतीय हॉकी टीम आखिरकार अपने सर्वोच्च शिखर पर कायम नहीं रह सकी. 1968 में मैक्सिको और 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में भारत को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा. इसके चार साल बाद 1976 में कनाडा के मॉन्ट्रियल में हुए ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम सातवें स्थान पर रही. इसके चार साल बाद 1980 में मास्को में ओलंपिक खेल आयोजित हुआ. इस दौरान भारतीय हॉकी टीम ने एक बार फिर स्वर्ण पदक हासिल किया. इसके बाद भारतीय हॉकी टीम के लिए ओलंपिक का सफर मुश्किलों भरा होता चला गया. दरअसल, भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों के लिए एस्ट्रो ट्रफ पर हॉकी खेलना परेशानी का सबब बन गया जबकि इससे पहले तक भारतीय हॉकी टीम ग्रासिंग फील्ड पर ही खेलने उतरती रही थी. हॉकी में हुए इस बदलाव के कारण ट्रिक गेम पावर और स्पीड के गेम में बदल गया. यही कारण रहा कि भारतीय हॉकी उस दौर में अचानक किए गए इस बदलाव से तालमेल नहीं बैठा सकी. एक समय जो हिंदुस्तान हॉकी के खेल पर राज करता था और लगातार कई बार विश्व विजेता बना, वह देश 1980 के बाद इस खेल में पीछे छूट गया.

एस्ट्रो ट्रफ पर भी लहराया कामयाबी का झंडा

वहीं, इस बार टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने मनप्रीत सिंह की कप्तानी में सफलता हासिल की है. टीम ने एक बार फिर इतिहास को दोहराते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया है. भारतीय हॉकी टीम के धुरंधरों ने साबित कर दिखाया है कि वे इस खेल में किसी से कम नहीं हैं. फिर चाहे घास के मैदान पर खेले जाने वाले इस खेल में बदलाव ही क्यों न किए गए हो. जी हां, भारतीय हॉकी टीम के नए खिलाड़ियों ने बदलते समय के साथ-साथ अपनी स्किल्स में भी बड़ा बदलाव किया और एस्ट्रो ट्रफ पर भी अपनी कामयाबी झंडे गाड़ दिए. इसी का नतीजा है कि आज भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक अपने नाम किया है.