World Suicide Prevention Day 2022:  कब और क्यों आते हैं, मन में आत्महत्या के विचार? कैसे पायें इस पर नियंत्रण? भारत में क्या है इसकी स्थिति?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

World Suicide Prevention Day 2022: प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को दुनिया भर में विश्व आत्महत्या नियंत्रण दिवस मनाया जाता है. किसी भी देश या समाज के लिए यह एक बड़ा अभिशाप है. त्रासदी यह है कि दुनिया भर में आत्महत्या के आंकड़े क्रमशः बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग हर 40 सेकेंड के भीतर एक व्यक्ति स्वयं के जीवन को समाप्त करता है. आत्महत्या के बढ़ते कारणों को देखते हुए WHO ने प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने का सिलसिला शुरू किया, ताकि इस दिन विभिन्न मंचों से लोगों को जीवन मूल्य की अहमियत को समझाया जा सके और इस कुकृत्य पर नियंत्रण रखने के लिए प्रेरित किया जा सके. आइये एक नजर डालें विश्व आत्महत्या नियंत्रण दिवस के महत्व एवं इतिहास पर एक नजर डालें और इस अहम समस्या की भारत में क्या तस्वीर है.

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का इतिहास

आज भागदौड़ भरी जिंदगी में दो पल का आराम किसी के पास नहीं है. इसका असर हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है, और हम क्रमशः अवसाद की तरफ बढ़ने लगते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में करीब 8 लाख लोग आत्महत्या को मजबूर होते हैं. अमूमन ऐसी घटनाएं अविकसित एवं विकासशील देशों में ज्यादा होते हैं. इस पर नियंत्रण पाने के लिए 2003 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत की. इसके प्रायोजक था, वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ एंड वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन. इसका मुख्य उद्देश्य था, आत्महत्या के व्यवहार पर शोध एवं डेटा एकत्र करना, आत्महत्या के कारणों को जानना, आत्महत्या के पूर्व संकेतों पर किसी का ध्यान न देने की वजह जानना. आई.ए.एस.पी. लोगों को यह बताकर जागरूक करना चाहता था कि ऐसे व्यक्ति के चेतावनी संकेतों की पहचान कैसे की जाए. जो आत्महत्या करने का विचार कर रहा हो, इत्यादि. यह भी पढ़े: World Mental Health Day 2019: पॉजिटिव मेंटल हेल्थ और अच्छे स्वास्थ्य के लिए देखें ये वीडियो

विश्व आत्महत्या दिवस का महत्व!

डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों के अनुसार विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का मकसद लोगों को एहसास दिलाना है कि आत्महत्या ही उनकी समस्याओं समाधान नहीं है. कुछ अध्ययनों के अनुसार कभी-कभी आंतरिक एवं बाहरी मुद्दे भी व्यक्ति को जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर करते हैं. अकसर देखा गया है कि परिवार के विशिष्ठ सदस्य की मृत्यु का सदमा किसी एक व्यक्ति को अवसाद में धकेल देता है, जिससे उबरने में खुद को असमर्थ पाने के पश्चात उसके लिए आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प दिखता है. कभी-कभी किसी मुद्दे विशेष पर बहुत ज्यादा सोचना या किसी का सहारा नहीं मिलने पर व्यक्ति का नकारात्मकता की खाई में धंसते चला जाना भी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर सकता है. सेहत संबंधी समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति भी कभी-कभी मानसिक एवं शारीरिक रूप से कुंठाग्रस्त हो जाता है, क्योंकि वह खुद को परिवार पर बोझ समझने लगता है, अंततः आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाता है. बचपन के आघात, यौन हमले, आर्थिक समस्याओं से उभरी घटनाएं भी गंभीर अवसाद का कारण बन सकती है.

आत्महत्या का वैज्ञानिक कारण

सुसाइड के मामलों में स्ट्रेस की भी अहम भूमिका होती है. कुछ शोधों से मिले रिपोर्ट के अनुसार जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनके शरीर में असाधारण तरीके से उच्च गतिविधियां और स्ट्रेस हार्मोन पाये गये थे. सेरोटोनिन वस्तुतः मस्तिष्क के भीतर स्थित एक केमिकल (न्यूरोट्रांसमीटर) होता है, जो मूड, चिंता और तनाव आदि से संबद्ध होता है. आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड और मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर सामान्य से कम पाया जाता है.

भारत में आत्महत्या की स्थिति

भारत में भी आत्महत्या के मामले चिंता करने वाले हैं. 2019 में आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार करीब 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी. इनमें 67 प्रतिशत लोग 18 से 25 की उम्र के बीच के थे. त्रासदी यह है कि आत्महत्या करने वालों में शिक्षित एवं उच्च वर्ग के लोग भी शामिल हैं. महानगरों में स्थिति और बदतर है. केंद्र और राज्य सरकारों की ओर तमाम हेल्पलाइन नंबर जारी होने और जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद आत्महत्याओं के मामले निरंतर गंभीर हो रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत को चोटी के 20 देशों में रखा है, जहां सबसे ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं होती हैं, विडंबना यह है कि भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति इसके मुकाबले बेहतर है.