प्रस्तावना
स्वामी विवेकानंद भारत के उन महान सपूतों में एक थे, जिन्होंने काफी कम उम्र में दुनिया भर में अपने देश का नाम रोशन किया. 11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिए अपने ओजस्वी भाषण से दुनिया भर के लोगों की खूब प्रशंसा बटोरी. स्वामी विवेकानंद ने अपने महान कार्यों एवं विचारों के जरिये पाश्चात्य देशों में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी प्रसिद्धि दिलाई और दुनिया भर के लोगों को शांति और भाईचारे का संदेश दिया.
स्वामी जी का प्रारंभिक जीवन परिचय
नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानंद) का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता विश्वनाथ दत्ता कलकत्ता हाई कोर्ट में विख्यात एडवोकेट थे. माँ धार्मिक प्रवृत्ति एवं मजबूत नैतिक चरित्र वाली महिला थीं, जिसका काफी असर नरेंद्रनाथ के व्यक्तित्व पर भी पड़ा था. वह निर्विवाद ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रतीक थे, जिसने काफी कम उम्र में सारा स्कूली ज्ञान हासिल कर लिया था. 8 वर्ष की आयु में नरेंद्रनाथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर के संस्थान जाना शुरू किया. साल 1984 में उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से डिग्री प्राप्त की. वे जितने अच्छे विद्यार्थी थे, उतने ही मंजे हुए तैराक और पहलवान भी थे. रामायण एवं महाभारत के उपदेशों का उनके मन में गहरा प्रभाव था. यह भी पढ़ें : National Youth Day 2024: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस? जानें इसका इतिहास, उद्देश्य एवं सेलिब्रेशन!
विदेशों में भारतीय संस्कृति, भाषा एवं सौहार्द का व्याख्यान
स्वामी विवेकानंद ने 25 साल की आयु में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था. इसके पश्चात उन्होंने संपूर्ण भारत की पैदल यात्रा की, और मुंबई पहुंचकर 31 मई 1893 को उन्होंने अपनी विदेश यात्रा की शुरुआत की. मुंबई से सर्वप्रथम वह जापान पहुंचे. जापान में नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो का दौरा करते हुए वह चीन, कनाडा का दौरा पूरा करके विवेकानंद शिकागो (अमेरिका) पहुंचे थे.
स्वामी जी की किन बातों से मंत्रमुग्ध रह गये शिकागो निवासी
शिकागो शहर में स्वामी जी ने अपने ओजस्वी भाषण की शुरुआत की, मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों, आपके स्नेह से मेरा दिल भर आया. मैं दुनिया की प्राचीनतम संत-परंपरा और सभी धर्मों की जननी भारत की ओर से आप सबका अभिनंदन करता हूं. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे सनातन धर्म से संबद्ध हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया. मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्म के लोगों को शरण दिया. अपने इस भाषण में उन्होंने दुनिया भर को भारत के ‘अतिथि देवो भवः’ सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया था.
स्वामी जी की उपलब्धियां
स्वामीजी का राज योग, माई मास्टर, भक्ति योग और समकालीन वेदांत युवाओं के लिए प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत बना. साल 1897 में उन्होंने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के सम्मान में रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन एवं बेलूर मठ की स्थापना की, जिसने विवेकानंद की धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का प्रसार किया. उन्होंने विदेशों में रामकृष्ण मिशन की शाखाएं शुरू कीं. यूके में उनकी मुलाकात मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से हुई. एलिजाबेथ उनसे प्रभावित होकर उनकी शिष्य बनीं, और अपना नाम सिस्टर निवेदिता रख लिया. स्वामीजी ने काफी कम उम्र में इतनी सारी उपलब्धियां हासिल कर ली थी, जिसके कारण उनके जन्मदिन (12 जनवरी) पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने की घोषणा की थी.
अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी
स्वामी जी ने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी स्वयं की थी. उन्होंने कहा था कि वह 40 वर्ष से ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेंगे, और 4 जुलाई 1902 को तमाम बीमारियों से जूझते हुए बेलूर मठ में उन्होंने शरीर त्याग दिया. सूत्रों के अनुसार स्वामी विवेकानंद 31 बीमारियों से ग्रस्त थे.
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एकबार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगों को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं.