Sawan 2019: केसरिया वस्त्र पहने, कंधे पर कांवड़, कांवड़ के दोनों ओर गंगाजल और जुबान पर ‘बम भोले’ एवं ‘ओम नमः शिवाय’ का उद्घोष करते शिव भक्त कांवड़ियों की यात्रा सावन मास के शुरू होते ही शिव मंदिरों की ओर चल पड़ी है. प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में लाखों की तादात में गेरुवा वस्त्र धारण किए, कंधे पर कांवड़ लिए दूर-दूर स्थानों से आकर गंगा नदी से गंगा जल भरते हैं और अपने कंधों पर लेकर पद-यात्रा करते वापस लौटते हैं. सावन की चतुर्दशी (सावन की शिवरात्रि) के दिन कांवड़िए आसपास के मंदिरों में स्थित शिवलिंग पर साथ लाए गंगाजल से अभिषेक करते हैं. हजारों सालों से चली आ रही है कांवड़ यात्रा की यह परंपरा...
मान्यता है कि समुद्र-मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को जनहित को ध्यान में रखते हुए भगवान शिव जी ने पीकर गले में स्थिर कर लिया था. हलाहल के प्रभाव से शिव जी में भी कुछ नकारात्मक प्रभाव दिखा तब सृष्टि की रक्षार्थ देवताओं ने नदियों के शीतल जल से शिव जी का जलाभिषेक किया. इसके बाद से ही शिवलिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक की परंपरा जारी है.
क्या है कांवड़
दरअसल कांवड़ एक सजी-धजी पालकी होती है. जिसमें गंगाजल रखा होता है. हालांकि कुछ लोग पालकी को न उठाकर हाथ में गंगाजल लेकर आ जाते हैं. मान्यता है कि जो जितना कष्ट उठाकर सच्चे मन से कांवड़ लेकर आता है, उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है. कांवड़िया भी कई प्रकार के होते हैं और वे एक दूसरे को बम के नाम से पुकारते हैं. हर ग्रुप में कांवड़ियों का एक समूह होता है. कांवड़ यात्रा की शुरूआत सावन के महीने में हो जाती है. 17 जुलाई से शिव भक्त अपने-अपने कांवड़ लेकर निकल चुके हैं. इसका समापन सावन पूर्णिमा यानि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 अगस्त के दिन होगी. मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि अथवा सावन के सोमवार के दिन अगर जलाभिषेक किया जाए, तो वह बहुत फलदाई होता है. अधिकांश कांवड़िए गंजल का अभिषेक बैजनाथ (झारखंड), वटेश्वर मंदिर (आगरा), महाकाल (उज्जैन), इसके अलावा गंगोत्री, यमुनोत्री,
रामेश्वरम्, बद्रीनाथ, काशी स्थित बाबा विश्वनाथ जैसे प्रमुख शिवमंदिरों में स्थित शिवलिंग पर करते हैं.
कब और किसने शुरू की कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा कब और कैसे शुरू हुई इसे लेकर विद्वानों में विभिन्न मत हैं. कुछ का मत है कि प्रथम कांवड़िया भगवान परशुराम जी थे, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित पुरा महादेव का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था. इस अत्यंत प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजी का जल लेकर आए थे. उसी परंपरा का पालन आज भी किया जा रहा है, जब शिव भक्त सावन मास में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं. आज गढ़मुक्तेश्वर को लोग ब्रजघाट के नाम से जानते हैं. वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान श्रीराम ने की थी. उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबाधाम शिवलिंग का जलाभिषेक किया था. एक मत यह भी है कि शिव भक्त रावण ने कांवड़ यात्रा की शुरूआत की थी. पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है. समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था. परंतु विष के नकारात्मक प्रभाव ने शिव जी को घेर लिया, तब शिव जी को इस नकारात्मक पीड़ा से निकालने के लिए शिव भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर पुरा महादेव स्थित शिव मंदिर में शिवजी का जलाभिषेक किया था. इसी क्रम में कुछ लोग सावन कुमार को पहला कांवड़िया होने का विश्वास जताते हैं. इन लोगों के अनुसार त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी. माता पिता को यात्रा कराने के संदर्भ में श्रवण कुमार हिमाचल प्रदेश के ऊना में थे. जहां उनके नेत्रहीन माता-पिता ने उनसे हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी. माता-पिता की इसी इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार में गंगा जी का स्नान करवाया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल लेकर गए थे.
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कांवड़ यात्रा में नियमों का पालन जरूरी
कांवड़ यात्रा इतना आसान नहीं है. इस अभियान में शामिल होने के लिए कुछ नियम बने हैं जिनका पालन करना नितांत आवश्यक होता है. कांवड़िया अपने साथ लेकर चल रहे गंगाजल को जमीन पर नहीं रख सकते और पूरे रास्ते ‘बम भोले’ का नारा लगाते हुए पैदल ही पदयात्रा करते हैं. कांवड़ियों को नशीले पदार्थों का सेवन करना पूर्णतया निषेध होता है. कांवड़ यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. जमीन अथवा तख्त पर ही सोना चाहिए. रास्ते भर ‘बोल बम’ अथवा ‘ओम नम शिवाय’ का जाप करते हुए चलना चाहिए. अगर राह चलते बीच स्थान पर कांवड़ रखना है तो उसे किसी साफ एवं ऊंचे स्थान पर रखें अथवा किसी साथ चलते मित्र के हाथों में पकड़ा दें. दुबारा कांवड़ को उठाते समय एक बार फिर से बोल बम अथवा ओम नमः शिवाय का उद्धोष करते हुए अपने कंधे पर रखें. पूरे रास्ते में अगर आप भोजन करते हैं, शौच जाते हैं या सोते हैं तो उसके पश्चात स्नान करके ही कांवड़ को अपने कंधे पर रखें. यात्रा के दौरान तेल, साबुन अथवा कंघी का प्रयोग वर्जित होता है. कांवड़ यात्रा के दौरान इन नियमों का पालन करना जरूरी होता है