Sawan Shivratri 2019: जब पधारते हैं शिव जी सपरिवार पृथ्वी पर! जानें शुभ मुहूर्त एवं कैसे करें पूजा-अर्चना!
भगवान शिव और उनके वाहन नंदी (Photo Credits: Facebook)

हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 12 शिवरात्रियां होती हैं, जो प्रत्येक माह की त्रयोदशी को पड़ती है. इन बारह शिवरात्रियों में फाल्गुन शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) और श्रावण की शिवरात्रि का महात्म्य सबसे अधिक होता है. श्रावण मास की शिवरात्रि को श्रावण-शिवरात्रि कहते हैं. इस वर्ष यह पर्व 30 जुलाई (मंगलवार) को पड़ रहा है. शास्त्रों के अनुसार श्रावण-शिवरात्रि पर व्रत रखते हुए शिव जी को जलाभिषेक करने से शिव जी प्रसन्न होकर भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं. जलाभिषेक करते समय निम्न श्लोक का वाचन करना बेहतर होता है.

पुण्येन जायते पुत्रः पुण्येन लभते श्रियम्।

पुण्येन रोगनाशः स्यात सर्वशास्त्रेण सम्मतः।।

अर्थात भगवान शिव देवी पार्वती जी से कहते हैं, -हे देवी! शास्त्रों का मानना है कि पुण्य कर्म करने से वंशवृक्ष की बृद्धि होती है, व्यक्ति कीर्तिवान होता है और शरीर के तमाम रोग खत्म होते हैं.

पुण्यदायी है श्रावण मास

यूं तो श्रावण का पूरा माह ही अति पावन और पुण्यदायी माना गया है, किन्तु इस माह की शिवरात्रि का दिन कुछ अधिक महत्वपूर्ण होता है. शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्णित है,

श्रावण-शिवरात्रि के दिन शुभ मुहूर्त

प्रातःकाल 9:10 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक शुभ मुहूर्त है. इसी समय शिव की पूजा और शिवलिंग का जलाभिषेक करना सार्थक होगा.

'अवश्यमेव भोक्तव्यम कृते कर्म शुभाशुभं।'

अर्थात् मनुष्य स्वयं द्वारा अर्जित पाप-पुण्य के आधार पर ही कर्मों का फल भुगतता है. पाप करके भी वह तभी तक सुखी रह पाता है, जब तक उसके पास संचित पुण्य होता है. पुण्य का यह कोष रिक्त होने के पश्चात, उसे अपने पापों के कर्म ही भुगतने पड़ते हैं. श्रावण-मास इसी पुण्य के रिक्त भंडार को पुनः संचित करने का अवसर देता है.

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 श्रावण और शिव जी का दिव्य महात्म्य

ऐसी मान्यता है कि पूरे श्रावण मास तक के लिए भगवान शिव माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय जी नंदी और अपने गणों के साथ पृथ्वी पर पधारते हैं. शिव जी की महिमा अपरंपार है, जो शिव समय आने पर महाकाल बनकर दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का संहार करते हैं, वही त्रिदेव शिव महामृत्युंजय बनकर जीव को मृत्यु के मुख से बचाकर नया जीवन भी प्रदान करते हैं. और शंकर के रूप में जीवों का पालन-पोषण भी करते हैं. यही शिव महारुद्र के रूप में योगियों, साधकों मुनियो आदि के अंतस्थल में विराजते हैं. कहने का आशय यह कि शिव ही ब्रह्मा हैं और शिव ही विष्णु के रूप में एकाकार होकर देवों के देव महादेव बन जाते हैं. श्रावण मास में विधि के विधान से ही शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि का पर्व आता है.

श्रावण-शिवरात्रि पर शिव जी की पूजा-अर्चना

श्रावण की शिवरात्रि की प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात भगवान शिव के करीब स्थित मंदिर में जायें. वहां स्थित शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, कच्चा चावल, शुद्ध घी और शहद चढाएं. इसके पश्चात शिवलिंग पर जलाभिषेक करें. इसके पश्चात माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय जी एवं नंदी का जलाभिषेक करें. तत्पश्चात धूप एवं दीप जला कर उनकी पूजा अर्चना करें. इस पूजा अर्चना में शिवजी का पंचामृत चढ़ाएं हांलाकि शिव पुराण में यह भी वर्णित है कि उनकी पूजा बेल-पत्र, पुष्प, फल और जल मात्र से भी करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं. बस जरूरत होती है सच्ची श्रद्धा की. पूजा के दरम्यान 'ॐ नमः शिवाय' का जाप जरूर करते रहें. इस जाप के साथ बेल पत्र पर चंदन, केशर या अष्टगंध से राम-राम लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं.

पूजा भक्ति से प्रसन्न हो महादेव देते हैं मोक्ष का वरदान

जो भक्त अपने जीवन के तमाम कष्टों से थक चुका है, और सारे कष्टों से मुक्ति पाना चाहता है, उसे चाहिए कि शिवलिंग पर पहले गंगाजल फिर पंचामृत चढ़ाते हुए निम्य मंत्रों का जाप करे.

'ॐ नमो भगवते रुद्राय।

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नों रुद्रः प्रचोदयात।'

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ध्यान रहे कि शिव जी इतने कृपालु देवता हैं कि सच्ची श्रद्धा पूर्ण भाव एवं विश्वास के साथ आप जैसी भी पूजा करेंगे, और अपनी सामर्थ्यानुसार उन्हें चढ़ाएंगे वे प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामना की पूर्ति का वरदान देते हैं.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.