International Yoga Day 2019: इन दिनों भारत की प्राचीनतम कला योग (Yoga) और उसकी महत्ता की चर्चा पूरे ब्रह्मांड में है. सेहत और सौंदर्य के रक्षक के रूप में भारत की इस प्राचीनतम धरोहर की शक्ति से संपूर्ण विश्व अवगत हो चुका है. इस कला का दुनिया भर में परचम लहराने वाले भारतीय महापुरुषों का देश सदा ऋणी रहेगा. आज वक्त आ चुका है जब इन महान विभूतियों के बारे में न केवल हम जानें, बल्कि आनेवाली पीढ़ियों से भी परिचय करवाएं. विश्व योग दिवस (International Yoga Day) के विशेष अवसर पर आइये जानें योग के इन महागुरूओं (Mahaguru of Yoga) की उपलब्धियां...
1- ‘आधुनिक योग के पितामह’ तिरुमलाई कष्णमचार्य
दक्षिण भारत के कर्नाटक के चित्रदुर्गा में 18 नवंबर 1988 को जन्में तिरुमलाई कृष्णमचार्य को आधुनिक ‘योग का पितामह’ कहा जाता है. कृष्णमचार्य योग के ही नहीं बल्कि आयुर्वेद के भी प्रकाण्ड पंडित थे. कहा जाता है कि उन्होंने हिमालय की गुफाओं में रहने वाले योगाचार्य राममोहन ब्रह्मचारी से पतंजलि योगसूत्र की बारीकियां सीखी थीं. इसके पश्चात उन्होंने 6 वैदिक दर्शनों में डिग्री हासिल की. मैसूर के महाराजा के राज्य में योग को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया. कहा जाता है कि योग के बल पर वे अपनी धड़कनों एवं सांसों पर घंटों नियंत्रण रख सकते थे. हठयोग और विन्यास को पुनर्जीवन देने का श्रेय श्री कृष्णमाचार्य को ही जाता है. के.एस. अयंगर, के पट्टाभी जोस, ए.जी. मोहन, श्रीवास्ता रामास्वामी और दिलीपजी महाराज जैसे महान योग-गुरू उनके शिष्य रहे हैं. यह भी पढ़ें: International Yoga Day 2019: योग करते समय बरतें ये 10 सावधानियां, वरना फायदे की जगह हो सकता है नुकसान
2- स्वामी शिवानंद सरस्वती
स्वामी शिवानंद सरस्वती का जन्म तमिलनाडु में 1887 को हुआ था. वह पेशे से चिकित्सक थे. मरीजों का इलाज करते हुए उन्हें अहसास हुआ कि वह मानव शरीर के एक-एक अंग-प्रत्यंग से परिचित हो चुके हैं, वे उनका इलाज करने में भी सक्षम थे. एक दिन उन्हें लगा कि तमाम विद्वता होने के बावजूद आत्मज्ञान से वे शून्य हैं. चिकित्सा व्यवसाय छोड़ वे आत्मज्ञान की तलाश में निकले. ऋषिकेश पहुंच कर उन्होंने गुरुदीक्षा ली. उन्होंने योग का गहराई से अध्ययन किया. इसके पश्चात उन्होंने सारी दुनिया को योग की महत्ता के संदर्भ में बताया कि किस तरह से योग के जरिये वे आत्मज्ञान को हासिल कर सकते हैं. उन्होंने योग, वेदांत पर लगभग दो सौ से ज्यादा पुस्तकें भी लिखीं. उनकी पूरी जिंदगी ‘शिवानंद योग वेदांत’ में योग की शिक्षा देते हुए बीती.
3- स्वामी परमहंस योगानंद की ‘एक योगी की आत्मकथा’
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में 5 जनवरी 1893 में मुकुंद नाथ घोष का जन्म हुआ था. बचपन से ही धर्म एवं आध्यात्म में ज्यादा रुझान होने के कारण उन्होंने घर छोड़ दिया. साल 1910 में उनकी मुलाकात स्वामी युक्तेश्वर गिरी जी से हुई. उन्होंने मुकंदनाथ को योग की एक नई दिशा एवं दशा से परिचय कराया. यहीं वह मुकुंदनाथ घोष से स्वामी परमहंस योगानंद बनें. कालांतर में उन्होंने योग एवं मेडिटेशन में एक पुस्तक ‘एक योगी की आत्मकथा’ लिखी. इस पुस्तक के जरिये पश्चिमी दुनिया के लोगों को योग और मेडिटेशन की शक्ति एवं क्षमता का अहसास हुआ.
स्वामी परमहंस योगानंद ने अपने शिष्यों को क्रिया योग का उपदेश दिया, साथ ही पूरे विश्व में योग का प्रचार-प्रसार किया. इसका यह असर हुआ कि दुनिया भर के लोगों ने माना कि योग के माध्यम से सशरीर ईश्वर के करीब पहुंचा जा सकता है. परमहंस योगानंद जी भारत के पहले योग गुरु हैं, जिनका ज्यादा वक्त अमेरिका में बीता.
4- महर्षि महेश योगी का ‘ट्रांसैडेंटल मेडिटेशन’
20वीं सदी के महर्षि महेश योगी जब दुनिया भर में योग का अलख जगा रहे थे, तब देश विदेश में हिप्पियों का बोलबाला था. उन्हीं दिनों दुनिया भर में धूम मचाते हुए एक संगीत बैंड ‘बीटल्स’ अपने कार्यक्रम के लिए भारत आया हुआ था. इस बैंड के लोगों को जब महर्षि महेश योगी के योग की शक्ति का अहसास हुआ तब वे महर्षि से योग सीखने के लिए ऋषिकेश स्थिति चौरासी आश्रम पहुंचे. महेश योगी से योग की कला सीखने के बाद उन्होंने माना कि जिंदगी को एक नये नजरिये से देखने की शक्ति उन्होंने महसूस की है. महेश योगी की ‘ट्रांसैडेंटल मेडिटेशन’ कला अपने समय में काफी लोकप्रिय हुई थी. सरल शब्दों में कहें तो इसका आशय अनुभवातीत ध्यान का अर्थ है परे जाना. मेडिटेशन की यह क्रिया काफी सरल और आसानी से ग्रहण किया जा सकता है. इसमें आंख बंदकर विश्राम की अवस्था में बैठकर 15 से 20 मिनट तक दो बार आसानी से किया जा सकता है. अच्छी बात यह है कि योग की यह क्रिया सभी धर्म के लोगों को मान्य है. यह भी पढ़ें: International Yoga Day 2019 Wishes: निरोगी जीवन का आधार है योग, इन शानदार WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Messages, HD Wallpapers को भेजकर दें सभी को शुभकामनाएं
5- 'फादर ऑफ माडर्न योगा' बी. के. एस. अयंगर
कर्नाटक के छोटे से गांव बेल्लूर में पैदा हुए कृष्णमचारी सुंदरराज बचपन से किशोरावस्था तक बेहद खराब स्वास्थ्य से गुजरते रहे. इस कारण वह पढाई लिखाई भी नहीं कर सके थे. उनके बहनोई एवं योगी श्री तिरुमलई कृष्णमचार्य ने 1934 में तिरुमलई में अयंगर को योग के अभ्यास के लिए मैसूर बुलवाया. मैसूर में योग के जरिये न केवल उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ, बल्कि मैसूर के महाराजा के दरबार में उन्हें योग के प्रदर्शन का अवसर भी मिल गया. इसके पश्चात उन्हें राजदरबार में तिरुमलई कृष्णमचार्य की जगह सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया. क्योंकि तिरुमलई कृष्णमचार्य अपने काम को कम महत्व देते थे. कृष्णमचार्य ने सोचा कि अय्यंगर कमजोर बच्चा है, वह योग गुरु बनने में सक्षम नहीं है. अयंगर का उचित प्रशिक्षण तब शुरू हुआ, जब कृष्णमचार्य अपने प्रिय शिष्य को छोड़कर, अयंगर पर अपना ध्यान केंद्रित किया. 1937 में अयंगर ने एक शिक्षक के रूप में इस सफर की शुरुआत की. कृष्णमचार्य के आग्रह पर, अयंगर 18 वर्ष की आयु में पुणे चले गए. यहां उन्होंने अपना अधिकांश समय विभिन्न तकनीकों के परीक्षण और उन्हें सीखने में बिताया.
उन्होंने योग पर अध्ययन ही नहीं किया बल्कि योग को इस तरह आत्मसात कर लिया योग की अपनी निजी पद्धति का भी निर्माण किया, जो बाद में 'अयंगर योग' के रूप में खूब सराहा गया. बाद में दुनिया भर में वह 'फादर ऑफ माडर्न योगा' के नाम से लोकप्रिय हुए. योगा पर लिखी उनकी एक पुस्तक 'लाइट ऑन योग' को वेस्टर्न दुनिया के लोगों ने योग का बाइबिल नाम दिया.