Rabindranath Tagore Death Anniversary 2022: भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ की रचना करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) को एक बेमिसाल और महान क्रांतिकारी माना जाता है. एक महान बांग्ला कवि, गीतकार, संगीतकार, कहानीकार, नाटककार, चित्रकार, रचनाकार और निबंध लेखक के तौर पर मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को हुआ था और आज उनकी पुण्यतिथि है. रबींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कलकत्ता में हुआ था. कहा जाता है कि कबीगुरु और गुरुदेव जैसे नामों से मशहूर रवींद्रनाथ ठाकुर ने 8 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी, जबकि 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी. अपनी लेखनी से लोगों के दिलों में आजादी की लड़ाई के लिए क्रांति की अलख जगाने वाले रवींद्रनाथ टैगोर को आज पूरा देश याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.
नोबल पुरस्कार विजेता और देश के महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने जलियावाला बाग हत्याकांड का विरोध जताते हुए नाइट हुड की उपाधि लौटा दी थी. अपनी लेखनी के जरिए क्रांति की अलख जगाने वाले रवींद्रनाथ टैगोर के विचार आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं. ऐसे में उनकी पुण्यतिथि पर आप उनके इन महान विचारों को अपनों के साथ शेयर करके न सिर्फ उन्हें याद कर सकते हैं, बल्कि उन्हें श्रद्धांजलि भी अर्पित कर सकते हैं.
1- तथ्य कई हैं पर सत्य एक है, अगर आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद करेंगे तो सच बाहर ही रह जाएगा.
2- प्रेम चाहे किसी से भी हो, वो कभी अधिकार का दावा नहीं करता, क्योंकि प्रेम स्वतंत्रता देता है.
3- नदी के किनारे खड़े होकर सिर्फ पानी को देखने से आप नदी पार नहीं कर सकते, इसके लिए आपको उसके भीतर जाना होगा.
4- वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते है, स्वयं अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते.
5- समय परिवर्तन का धन है, लेकिन घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं.
6- प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है.
रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे और बचपन में उन्हें प्यार से रबी कहकर पुकारा जाता था. उन्होंने बचपन से ही कविताएं, कहानियां और नाटक लिखना शुरु कर दिया था. उन्होंने अपने जीवन काल में कई मशहूर रचनाएं लिखीं, जिनमें 'गीतांजलि' सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई थी. उनकी इस रचना का अनुवाद अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी, रूसी जैसी कई भाषाओं में किया गया. गीतांजलि के लिए उन्हें साल 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.