पितृपक्ष-2019: शनि अमावस्या को खत्म हो रहा है पितृपक्ष, ये है मुहूर्त
पितृपक्ष 2019 (Photo Credits: Wikimedia Commons)

पितृपक्ष-2019: देश में इस बार पितृ पक्ष 28 सितंबर यानि शनिवार को खत्म हो रहा है. शनि और सर्वपितृ अमावस्या के संयोग से 28 सितंबर को शनि अमावस्या है. इस बार पित्र शनि अमावस्‍या के दिन विदा हो रहे हैं. बता दें कि इससे पहले ऐसा संयोग 1999 में बना था. माना जाता है कि ऐसे संयोग में पितरों की विदाई उनके वंशजों के लिए सौभाग्यशाली होता है. ज्ञात हो कि भाद्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है.

जानें कब से कब तक रहेगा मुहूर्त- 

आरंभ: 28 सितंबर 2019 को सुबह 3.46 बजे से रात 11.56 बजे तक

कुतुप मुहूर्त: सुबह 11.48 बजे से दोपहर 12.35 बजे तक

रोहिण मुहूर्त: दोपहर 12.35 बजे से 1.23 बजे तक

अपराह्न काल: दोपहर 1.23 बजे से 3.45 बजे तक

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि पितृऋण से उऋण होने के लिए दिवंगत पिता का श्राद्ध कर्म ही एकमात्र उपाय है. श्राद्ध कर्म के संदर्भ में बताया जाता है कि इससे मुक्ति के लिए मृत्यु के देवता यमराज दिवंगतों को एक पखवारे के लिए पृथ्वी पर भेजते हैं, ताकि वे अपनों का पिण्डदान एवं तर्पण (भोजन एवं जल) ग्रहण कर सकें. वरुण पुराण में अंकित है कि पितर ही अपने कुल की रक्षा करते है. यह भी पढ़ें- Pitru Paksha 2019: पितृ पक्ष के दौरान जरूरतमंदों को दान करें ये चीजें, इससे मिलता है पितरों का आशीर्वाद

श्राद्ध की परंपरा कब और किन हालातों में शुरू हुई? पहली बार किसने श्राद्ध किया? इस संबंध में विद्वानों में तमाम भ्रांतियां है. लेकिन माना जाता है कि महाभारत काल में श्राद्ध का उल्लेख कुछ पौराणिक पुस्तकों में देखने को मिलता है. महाभारत के अनुसार सबसे पहले श्राद्ध के संदर्भ में महर्षि निमि ने अत्रि मुनि को बताया था. इस तरह कहा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड में पहला श्राद्ध निमि ने किया. उसके बाद ऋषि-मुनियों में भी श्राद्ध का प्रचलन शुरू हुआ. धीरे-धीरे यह हिंदू समाज के हर वर्ग मनाया जाने लगा.

ऐसा भी कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में दोनों पक्षों के लोग काफी तादाद में मारे गये थे. तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण के कहने पर सभी मारे गये सैनिकों व वीरों का श्राद्ध किया. वहीं वरुण पुराण में इस संदर्भ में उल्लेख है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता का श्राद्ध का किया था. वाल्मीकी रामायण में भी इस बात का स्पष्ठ उल्लेख है.