
International Disabled Persons Day 2020: विकलांगता (Disability) अभिशाप नहीं है, शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाये तो वही विकलांगता व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाती है. विकलांगों का मजाक बनाना, उन्हें कमज़ोर समझना और उन्हें दूसरों पर आश्रित समझना, एक गैर जिम्मेदराना व्यवहार है. आज जरूरत इस बात की है कि हम उन्हें समझें कि उनका जीवन भी हमारी तरह है. वे अपनी कमज़ोरियों के साथ भी हमारे साथ चलने का जज्बा रखते हैं. बस उन्हें आपकी प्रेरणा की जरूरत है. दुनिया में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि सही राह मिल जाये तो अभाव विशेषता बनकर सबको चमत्कृत कर देती है.
विकलांगता दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) ने वर्ष 1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाने का निर्णय लिया था. सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सयुंक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर वर्ष 1983-92 को अंतरराष्ट्रीय 'विकलांग दिवस दशक' घोषित किया. अंततः संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्व के बुद्धिजीवियों ने तय किया कि प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया जाएगा. तभी से 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस मनाया जा रहा है. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 'विकलांग' शब्द की जगह 'दिव्यांग' शब्द का प्रयोग शुरू किया.
प्रधानमंत्री के अनुसार निःशक्तों के पास 'दिव्य क्षमताएं' होती हैं. उन्होंने यह संदेश भी देने की कोशिश की कि शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी आम लोगों की तरह सामान्य जिंदगी जी सकता है. विकलांग व्यक्तियों के आत्म-सम्मान और जीवन में नई दिशा देने के उद्देश्य से उन्होंने विकलांगों के लिए कई योजनाओं एवं रियायतों की घोषणा की. जिसमें 'निःशक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक, 2016' प्रमुख है.
क्या है उद्देश्य
विश्व विकलांगता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अक्षम लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना, तथा उनके साथ भेदभाव की भावना को जड़ से खत्म करने के लिए जनसामान्य को प्रोत्साहित करना है. इसके लिए जरूरी है कि उनके आसपास के वातावरण को उनके अनुरूप बनाया जाये. अक्सर हमारी विकलांग सोच ही शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के जीवन को कठिन बनाती है. वे अपनी शारीरिक अक्षमता को तो किसी हद तक झेल लेते हैं, लेकिन उसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से जूझ पाना आसान नहीं होता.
ऐसी ही प्रवृत्तियों को दूर करने के लिए विश्व विकलांगता दिवस मनाया जाता है. इस दिवस विशेष का एक उद्देश्य सशक्तिकरण को बढ़ावा देना भी है, जब लोगों को सशक्त किया जाता है तो वे अवसरों का लाभ उठाने के लिए बेहतर तरीके से खुद को तैयार करते हैं, वे परिवर्तन के प्रतीक बनते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को आसानी से गले लगा सकते हैं.
वरदान बनकर आया 'निःशक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक, 2016'
मोदी सरकार की कई उपलब्धियों में एक बड़ी उपलब्धि थी, 'निःशक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक 2016', जिसने दिव्यांगों के लबों पर मुस्कान बिखेर दिया. लंबे समय से देश और दिव्यांगों के लिए इस विशेष कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी. इस विधेयक के पास होने के बाद अब नि:शक्तजनों से भेदभाव किए जाने पर दो साल तक की कैद और अधिकतम पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. दिव्यांगों की श्रेणी में तेजाब हमले के पीड़ितों को भी शामिल किया गया है.
विधेयक के कानून बनने के बाद नि:शक्तजनों से संबंधित अधिकांश समस्याओं का समाधान होने की उम्मीद है. नि:शक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि और उसके आनुषंगिक विषयों को प्रभावी बनाने वाला नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधयेक काफी व्यापक है और इसके तहत दिव्यांगों की श्रेणियों को सात से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है.
अब नि:शक्तता में मानसिक बीमारी, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डायस्ट्रॉफी, गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारियां भी शामिल हैं. दिव्यांगों के लिए राज्य आयुक्तों और मुख्य आयुक्त नियामक के रूप में काम करेंगे. निजी कंपनियों की इमारतों में दिव्यांगों के आवागमन के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाना होगा.