Indira Gandhi Death Anniversary: वे इलाहाबाद के बेहद रईश परिवार में जन्मीं, दादा जी ने प्यार से 'इंदिरा प्रियदर्शिनी' (Indira Priyadarshini) नाम दिया. पिता ने 'इंदू' कहा, अटल बिहारी बाजपेई ने 'दुर्गा' (Durga) और दुनिया ने 'आयरन लेडी' के खिताब से नवाजा. वाकई उनकी शख्सियत किसी आयरन से कम मजबूत नहीं थी. लेकिन इसी आयरन की गोलियां उनके जीवन की लीला समाप्त कर देंगी, इसका अहसास उन्हें भी नहीं रहा होगा. आज देश इसी सशक्त शख्सियत और देश की पहली और अंतिम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की 36वीं पुण्य-तिथि मना रहा है. इंदिरा गांधी की छवि ही ऐसी थी कि उसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता. आइये जानें 31 अक्टूबर की उस काली सुबह की व्यथा कथा कि कैसे वह अपनों के ही विश्वासघात का शिकार बनीं.
'मैं आज यहां हूं, कल शायद न रहूं, मुझे चिंता नहीं. मैं रहूं या न रहूं. मेरा जीवन लंबा रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया. मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी. जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा.' 30 अक्टूबर 1984 को उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में दिया गया इंदिरा गांधी का यह ओजस्वी भाषण इस बात का अहसास कराता है कि उन्हें अपने जीवन के अंतिम घड़ी का कुछ-कुछ अहसास हो गया था. उड़ीसा के व्यस्त चुनावी कार्यक्रम से थकी-हारी लौटकर इंदिरा गांधी अपने कमरे में आराम कर रही थीं. देर रात तक उन्हें नींद नहीं आने की पुरानी आदत थी.
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31 अक्टूबर 1984 दिन बुधवार... प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का यह दिन भी हमेशा की तरह बहुत व्यस्त शेड्यूल वाला था. पहला अप्वाइंटमेंट रसियन वृतचित्र निर्देशक पीटर उस्तीनोव के साथ था, जो इंदिरा गांधी पर एक डाक्युमेंट्री फिल्म बना रहे थे. अगला कार्यक्रम ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलेघन के साथ एक छोटी मीटिंग थी. इसके बाद मिजोरम के एक नेता के साथ चुनावी कार्यक्रम को लेकर विशेष मीटिंग थी. शाम को ब्रिटेन की राजकुमारी ऐन को प्रधानमंत्री हाउस में भोज के लिए आमंत्रित किया था.
इंदिरा गांधी साढ़े सात बजे तक तैयार होकर नास्ते के टेबल पर आ चुकी थीं. यहां उन्होंने एक गिलास जूस, सैंडविच और फ्राय अंडे का हलका नास्ता लिया. उनके मेकअपमैन ने हलका सा टचिंग किया. काले बार्डर वाली केसरिया रंग की साड़ी में इंदिरा गांधी का व्यक्ति किसी को भी प्रभावित करने वाला था. इसी समय उनके घरेलू चिकित्सक डॉ. केपी माथुर ने उनका रुटीनी चेकअप किया. तब तक उनके पारिवारिक मित्र आरके धवन भी परिसर में प्रवेश कर चुके थे.
पीटर उस्तीनोव के साथ उनकी शूटिंग प्रधानमंत्री हाउस के बगल में ही होनी थी. श्रीमती गांधी अपने निजी सेवक नाथू राम, निजी सुरक्षा अधिकारी सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल, और इंदिरा गांधी को धूप से बचाने के लिए उन पर छाता ताने निजी सेवक नारायण सिंह और आरके धवन के साथ अपने परिसर की लॉन की तरफ बढ़ रहे थे. अचानक उनके सामने उनका एक सुरक्षागार्ड बेअंत सिंह आ गया. इंदिरा गांधी ने समझा कि हमेशा की तरह वह उन्हें अभिवादन करने आया है, इंदिरा उसके लिए हाथ उठाती कि तभी बेअंत सिंह ने अपने होल्सटर से रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर कर दिया. गोली पेट में लगी. इससे पहले कि इंदिरा और उनके साथ चल रहे लोग संभल पाते, बेअंत सिंह ने इंदिरा पर दो और गोली दाग दी, एक सीने पर दूसरी कमर पर लगी.
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वे जमीन पर गिरीं, तभी सामने एक और सुरक्षाकर्मी सतंवत सिंह आ गया. बेअंत ने चीख कर कहा ओय गोली चला. सतवंत सिंह ने जमीन पर गिरी इंदिरा गांधी पर अपनी टॉमसन आटोमैटिक कारबाइन से इंदिरा गांधी पर सेकेंड भर के अंतर पर 25 गोलियां दाग दीं. इसी समय आईटीबीपी के तमाम जवान पहुंच गये और उन्होंने बेअंत और सतंवत को जमीन पर पटककर उनके हथियार अपने कब्जे में ले लिया. बेअंत सिंह ने बेखौफ कहा, हमने अपना काम कर दिया, अब आप अपना काम करो. गोलियों की आवाज सुनकर सोनिया गांधी भागते हुए बाहर आयीं.
बताया जाता है कि प्रधानमंत्री हाउस के बाहर हमेशा एक एंबुलेंस आपातकालीन परिस्थितियों के लिए खड़ी रहती थी. लेकिन 31 अक्टूबर को घटना के समय एंबुलेंस का ड्राइवर नदारद था. इंदिरा गांधी के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने को कहा. कार आई और खून से लथपथ इंदिरा गांधी को सहारा देकर सोनिया गांधी ने पीछे की सीट पर लिटाकर उनका सर अपनी गोद में ले लिया. लगभग 9.32 बजे कार एम्स पहुंची. आपातकाल वार्ड का गेट खोलने और इंदिरा गांधी को बाहर निकालने में तीन मिनट लगे. डॉक्टर्स की एक टीम डॉ गुलेरिया, डॉ. एमएस कपूर और डॉ. एस बालाराम पहुंच गये. कहते हैं कि अचेत इंदिरा गांधी को कृत्रिम ऑक्सीजन देने के लिए उनकी नाक में नली डाली गयी. ब्लड के बोतल लगा दिये गये.
इसके बाद डॉक्टर ने जब उनकी ईसीजी रिपोर्ट निकाली तो पाया कि इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी है. इसके बाद उनके शरीर के अंदर की गोलियां निकाली गयीं. डॉक्टर्स ने 2.23 मिनट पर उन्हें मृत घोषित कर दिया. हांलाकि सुरक्षा कारणों से शाम छ बजे के बाद उनके मृत्यु की आधिकारिक घोषणा की गयी. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया इंदिरा ने इंदिरा गांधी जब भी अपने कक्ष से बाहर निकलती थीं, बुलेट प्रूफ जैकेट जरूर पहनती थीं. लेकिन घटना के दिन उन्होंने यह कहकर उक्त जैकेट पहनने से मना कर दिया क्योंकि उनके डॉक्यूमेंट्री फिल्म में बुलेट प्रूफ जैकेट के कारण उनका मूल व्यक्तित्व निखर कर नहीं आता. और संभवतया सुरक्षाकर्मियों को इस बात की जानकारी थी.
उधर खुफिया एजेंसियों ने भी इंदिरा गांधी को पहले ही चेताया था कि उन पर उनके अपने लोगों से खतरा और हमला हो सकता है. उन्होंने इंदिरा गांधी को एक सिफारिश पत्र में लिखा कि उनके निवास स्थान एवं उनके करीब लगे सभी सिख सुरक्षाकर्मियों कुछ दिनों के लिए हटा दिया जाये. कहा जाता है कि जब यह सिफारिशी पत्र इंदिरा गांधी के हस्ताक्षर के लिए उनके पास पहुंचा, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और मात्र 4 शब्द 'आर नॉट वी सेक्युलर? (क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं)' लिखकर सिफारिश पत्र को वापस कर दिया. कहा जाता है कि इसके बावजूद खुफिया एजेंसियों के कहने पर इंदिरा गांधी की सुरक्षा में लगे दो सिख सुरक्षाकर्मियों को एक साथ ड्यूटी पर रहने का वक्त नहीं दिया.
लेकिन 30 अक्टूबर की रात सतवंत सिंह ने पेट खराब होने का बहाना बनाते हुए खुद की ड्यूटी शौचालय के करीब लगवाया. तब किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि सतवंत सिंह ने यह बहाना बेअंत सिंह के साथ रहने के लिए बनाया था, ताकि वे अपने षड़यंत्र को अंजाम तक पहुंचा सकें. खुफिया एजेंसी की यह भी बड़ी चूक थी. इसके अलावा जब इंदिरा गांधी ने वृतचित्र के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहना और सिख सुरक्षाकर्मियों से उनकी सुरक्षा का खतरा था, तो ऐसे में आईटीबीपी के सुरक्षागार्डों को शुरु से उनके साथ क्यों नहीं रखा गया.