गुरु राम दास जयंती दुनिया भर के सभी सिखों के लिए बहुत बड़ा त्योहार है. इस दिन चौथे सिख गुरु, गुरु राम दास जी की जयंती है. जो अमृतसर शहर के संस्थापक थे. यह त्योहार गुरुपूरब या गुरु परब के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है. इस दिन गुरु के महान कार्यों और शिक्षाओं की याद दिलाने के साथ-साथ उनकी जयंती मनाया जाता है. इस दिन गुरुद्वारों में में लोग अरदास करने जाते हैं. चौथे सिख गुरु ने समुदाय और राष्ट्र के लिए बहुत योगदान दिया और यही कारण है कि त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. गुरुपर्व के रूप में मशहूर इस त्योहार के दिन गुरुद्वारों में कीर्तन और गुरबानी का पाठ किया जाता है.
गुरु राम दास जी का जन्म:
गुरु राम दास जी की जयंती नानकशाही कैलेंडर के 7 वें महीने (अस्सु) के 25 वें दिन पड़ती है जो हिंदू कैलेंडर का अश्विन माह है. गुरु राम दास जी का जन्म लाहौर में 1534 में एक हिंदू परिवार में हुआ था. जब वे सिर्फ 7 साल के थे, तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया और उनकी दादी ने उनकी देखभाल की.
दादी ने करवाई थी तीसरे सिख गुरु अमर दास से मुलाक़ात:
वास्तव में उनकी दादी ने गुरु राम दास जी की मुलाकात गोइंदवाल में सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास से करवाई. गुरु राम दास जी वहां तीसरे गुरु के साथ रहे और अपने लक्ष्य और दर्शन के लिए खुद को समर्पित किया. इससे गुरु अमर दास जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने न केवल अपनी छोटी बेटी के साथ गुरु राम दास जी का विवाह कर दिया बल्कि उन्हें अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके अनुसार, उनके दो बेटे उनकी जगह लेने के काबिल नहीं थे, जो बाद में गुरु राम दास जी के खिलाफ हो गए. तीसरे सिख गुरु के निधन के बाद, उनके दो बेटे गुरु राम दास के प्रति शत्रुतापूर्ण हो गए, जिसके बाद वे गोइंदवाल छोड़कर तीर्थ स्थल बनाने के लिए निकल गए. जिसे 'गुरु दा चक' के नाम से जाना जाने लगा.
अमृतसर के संस्थापक हैं गुरुरामदास:
जब स्थानीय लोग और व्यापारी वहां रहने लगे, तो इस जगह को रामदासपुर के नाम से जाना जाने लगा और बाद में इसका नाम बदलकर अमृतसर कर दिया गया. गुरु राम दास जी ने सादा जीवन व्यतीत किया और अपना समय समुदाय की सेवा में लगाया. उन्हें सिख विवाह में होने वाले 4 फेरे लावण (Laavan) के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है. उन्हें गुरुद्वारा श्री हरमिंदर साहिब के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान और गुरु ग्रंथ साहिब में 600 से अधिक भजन की रचना करने के लिए भी जाना जाता है.
शब्द गुरुपुरब दो शब्दों 'गुरु' + 'पूरब' (हिंदी में पर्व से लिया गया है) से बना है, इसलिए गुरुपुर शब्द का शाब्दिक अर्थ 'गुरु से जुड़ा दिन' है. सिख गुरुओं से जुड़े सिख त्योहारों या महत्वपूर्ण दिनों को 'गुरपुरब' कहा जाता है.