Gudi Padwa 2019: गुड़ी पाड़वा को क्यों माना जाता है साल का सर्वश्रेष्ठ दिन, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं
गुड़ी पाड़वा 2019 (Photo Credits: File Image)

Gudi Padwa 2019: हिंदू पंचांग (Hindu Panchang)  के अनुसार नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है. यह दिन हर दृष्टिकोण से शुभ और सभी के लिए बेहद भाग्यशाली माना गया है. इस दिन से गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार ग्रहों, दिनों, माहों और संवत्सरों का प्रारंभ होता है. आज भी जनमानस से जुड़ा यही शास्त्र-सम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरती है. देश के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व विभिन्न नामों एवं अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. इस वर्ष 6 मार्च को गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa)पर्व पड़ रहा है. आइये जानें क्यों इस दिन को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ दिन (Best Day of Year) माना जाता है?

क्या है पर्व से जुड़ी कथा? 

गुड़ी पड़वा का पर्व महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. गुड़ी पड़वा का महात्म्य इससे जुड़ी कथाओं से समझा जा सकता है. हमारे वेद-पुराणों, रामायण एवं रामचरित मानस आदि धर्मग्रंथों में उल्लेखित है कि रामायण काल में दक्षिण भारतीय अंचलों में एक समय महाबलि राजा बालि का राज था. जनता उसके अत्याचारों से पीड़ित थी. वनवास के दौरान श्रीराम जी को सुग्रीव से बालि के कुशासन की बात पता चली तो उन्होंने बालि को युद्ध के लिए ललकारा. कहा जाता है लंबे समय तक बाली के साथ श्रीराम का युद्ध चलता रहा. अंततः श्रीराम के हाथों बालि का वध हुआ. मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन श्री राम ने बालि पर विजय प्राप्त की थी.

कैसे मनाते हैं यह पर्व? 

इस उपलक्ष्य में मराठी समुदाय के लोग एक बर्तन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेटकर उसे अपने घरों की छतों पर लटकाते हैं. पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं और सूर्यदेव की आराधना की जाती है. यहां गुड़ी को विजय पताका कहते हैं और पड़वा कहते हैं प्रतिपदा तिथि को. इस अवसर पर महाराष्ट्र के स्त्री-पुरुष पारंपरिक परिधानों में जुलूस भी निकालते हैं. इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्त्रोत, देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है. इस पर्व से संबंधित एक और प्राचीन कथा शालिवाहन के साथ भी जुड़ी है. उन्होंने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंककर दुश्मनों को पराजित किया, इसीलिए इस दिन को शालिवाहन शक का आरंभ भी माना जाता है.

क्यों मनाते हैं यह पर्व? 

देवी पुराण में वर्णित है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और उन्होंने ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना करने का आदेश दिया था, इसीलिए चैत्र के प्रथम दिवस को हिंदू पंचांग के अनुरूप नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना किए जाने के कारण ब्रह्मा जी के साथ-साथ उनके द्वारा निर्मित देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदी-तालाब-पहाड़ों, कीट-पतंगों का भी पूजन किया जाता है.

चैत्र वर्ष का एकमात्र ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष-लताएं पल्लवित एवं पुष्पित होती हैं. शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का भी प्रथम दिवस माना जाता है. जीवन का मुख्य आधार माने जाने वाले वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा से ही प्राप्त होता है. इसीलिए इसे औषधियों एवं वनस्पतियों का राजा भी कहा जाता है. इसीलिए इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से शुरू हो रही है चैत्र नवरात्रि, जानें किस दिन करनी चाहिए किस शक्ति की पूजा

पर्व पर बनाए जाते हैं विशेष पकवान

सेहत के दृष्टिकोण से भी इस पर्व का खास महत्व है. इस पर्व पर सेहत को ध्यान में रखकर भी पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश में प्रसाद के रूप में ‘पच्चड़ी’ का वितरण होता है. कहा जाता है कि खाली पेट इसका सेवन करने से चर्म रोग दूर होते हैं और मनुष्य का सेहत अच्छा बना रहता है. कुछ जगहों पर गुड़, नीम के फूल, इमली और आम मिलाकर मीठी रोटी बनाई जाती है. महाराष्ट्र में पूरन पोली बनकर खिलाने की परंपरा है.

विभिन्न नामों से मनाया जाता है यह पर्व

भारत के विभिन्न प्रदेशों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. गोवा और केरल में केंकड़ी समुदाय के लोग इसे ‘संवत्सर पड़वो’ नाम से मनाते हैं तो कर्नाटक में ‘युगाड़ी’ और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘उगाड़ी’ के नाम से सेलिब्रेट करते हैं. कश्मीरी हिंदू इस दिन को ‘नवरेह’ के रूप में मनाते हैं. मणिपुर में यह दिन ‘सजिबु नोंगमा पानवा’ के नाम से लोकप्रिय है.