Ahoi Ashtami 2019: करवा चौथ के चार दिन बाद यानी कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन माता अहोई देवी (Mata Ahoi) का व्रत किया जाता है. यह उपवास पुत्र की दीर्घायु, स्वस्थ एवं समृद्ध जीवन के लिए माँएं करती हैं. यह व्रत अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के नाम से लोकप्रिय है. उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोई माता (Ahoi Mata) का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार दीवारों रेखांकित कर उसकी पूजा की जाती है. अहोई माता वस्तुतः माता पार्वती का ही एक स्वरूप है.
कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को माता अहोई देवी के व्रत एवं पूजन का विधान सैकड़ों वर्षों से किया जाता है. पुत्र की कामना, उसकी अच्छी सेहत और समृद्धि जीवन के लिए माँएं निर्जल व्रत रखती हैं. अष्टमी को पूरे दिन व्रत रखने के पश्चात सायंकाल के समय पूर्व दिशा की किसी साफ दीवार पर परंपरागत आठ कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है. इस पुतली के पास ही स्याउ माता व उसके बच्चे के रेखाचित्र भी बनाए जाते हैं. इसी दिन शाम को पुत्रवती महिलाएं मिट्टी का दीप प्रज्जवलित कर चंद्रमा को अर्ध्य देती हैं. इसके पश्चात कच्चा भोजन खाकर अपना उपवास तोड़ती हैं. मान्यता है कि यह व्रत करके पुत्रवती महिलाएं अपने पुत्र के स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं.
व्रत का महात्म्य
माता अहोई देवी को माँ पार्वती देवी का एक स्वरूप माना जाता है. इस दिन पुत्रवती महिलाएं माता पार्वती (अहोई माता) की ही पूजा करती हैं. पूरे दिन निर्जल उपवास रखकर माँ अपनी संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं. ऐसी भी आस्था है कि माता अहोई का व्रत एवं पूजन करने से बांझ औरतों की भी गोद भर जाती हैं, तथा जिन माँओं की संतान दीर्घायु नहीं होती हैं या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हैं, उनके लिए भी यह व्रत एक अचूक औषधि के समान प्रभावशाली एवं शुभकारी होता है. मान्यता है कि इस दिन माता अहोई की कुछ विशेष प्रकार से पूजा-पाठ, करने से संतान का चतुर्मुखी कल्याण होता है. इस वर्ष अहोई का उपवास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 21 अक्टूबर को पड़ रहा है. इस दिन सोमवार होने से व्रत का महात्म्य कई गुना बढ गया है, क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव के नाम समर्पित है, और शिव गौरी के पति हैं.
पूजन विधि
पहले अधिकांश घरों में व्रती महिलाएं घर की एक दीवार पर माता अहोई की तस्वीर बनाकर उनका परंपरागत तरीके से पूजा-अर्चना करती थीं, लेकिन अब अहोई माता की तस्वीर सहजता से उपलब्ध हो जाती है. पूजा शुरू करने से पहले एक पाटले पर लाल रंग का नया कपड़ा बिछाएं. इस पर बीचो-बीच में कलश की स्थापना करें.
माता अहोई की पूजा में एक विधान यह भी है कि पुत्र के लिए चांदी की होई बनाई जाती है, जिसे ‘स्याहु’ भी कहते हैं. इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व पके हुए चावल से किया जाता है. ध्यान रहे माता अहोई की पूजा में कलश स्थापना आवश्यक होता है. पूजा के पश्चात माएं अपनी सास अथवा माँ के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. कुछ जगहों पर पूजन के बाद अहोई माता को दूध और चावल का भोग भी लगाने की परंपरा है. पूजा के अंत में माता अहोई देवी की कथा अवश्य सुनें अथवा सुनाएं. यह भी पढ़ें: Balram Jayanti 2019: भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम थे शेषनाग के अवतार, जानिए क्या है इस जयंती का महत्व
व्रत की पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में चंपा नाम की एक स्त्री थी. विवाह के 5 वर्ष होने के बावजूद वो निसंतान थी. एक दिन किसी ग्रामीण वृद्धा ने चंपा को माता अहोई का व्रत रखने की सलाह दी. चंपा ने व्रत रखा तो उसकी देखा-देखी उसकी पड़ोसन चमेली ने भी माता अहोई का व्रत रख लिया. चंपा ने श्रद्धावश व्रत रखा था, जबकि चमेली ने स्वार्थवश एवं देखादेखी व्रत रखा था. एक दिन माता अहोई ने प्रकट होकर चमेली से पूछा कि बताओ, तुम्हें कौन-सा वरदान चाहिए. चमेली ने कहा कि उसे पुत्र चाहिए. इसके पश्चात माता अहोई ने चम्पा से भी यही सवाल पूछा. चम्पा ने कहा, माँ क्या मुझे आपको यह बात भी बतानी पड़ेगी. आप तो सर्वज्ञानी हैं, आपसे कुछ छिपा नही है. तब देवी अहोई ने कहा उत्तर दिशा में एक बाग में कुछ सुंदर-सुंदर बच्चे खेल रहे हैं. वहां जाओ और जो बच्चा पसंद आये, उसे अपने साथ लेती जाना. ऐसा नहीं कर सकी तो तुम्हें कभी भी संतान प्राप्त नहीं होगी.
चम्पा और चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगीं. अजनबी औरतों को देख बच्चे रोने लगे. चम्पा से उनका रोना देखा नहीं गया, वह बिना बच्चा लिए वापस चली आई. उधर चमेली एक रोते हुए बच्चे को जबदस्ती बालों से कसकर पकड़कर अपने घर ले आई. माता अहोई ने चम्पा के त्याग और ममता सराहना करते हुए उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन चमेली को मां बनने के लिए अयोग्य बताया. 9 माह बाद चम्पा को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन चमेली निसंतान ही रही. तभी से पुत्र की कामना के लिए माता अहोई का व्रत एवं पूजा करने का सिलसिला जारी है.