यूपी-उत्तराखंड में 109 लोगों की मौत, जानिए कैसे सांप- छिपकली और आयोडेक्स से बनती है जहरीली शराब
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit- Wikimedia Commons)

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लोगों पर जहरीली शराब का कहर इस प्रकार टूटा है कि मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. ताजा जानकारी के मुताबिक मृतकों की संख्या 100 से ऊपर पहुंच कर 109 हो गई है. हरकत में आई उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है. उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग के अनुसार हादसे पर अब तक 297 मुकदमा दर्ज करके 175 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. साथ ही अकेले सहारनपुर में 10 पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है. इसके अलावा राज्य सरकार जहरीली शराब बनाने और बेचने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (NSA) लगाने की तैयारी कर रही है.

जहरीली शराब से मौत की खबरें अक्सर सुनने में आती रहती हैं. जिसके बाद कई लोगों के दिमाग में यह सवाल गूंजता है कि आखिर यह शराब कैसी होती है, कैसे बनती है? नवभारत टाइम्स के अनुसार जानकार बताते हैं कि इस शराब में यूरिया, आयोडेक्स, ऑक्सिटॉसिन का इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं, शराब को ज्यादा नशीली बनाने के लिए इसमें सांप और छिपकली तक मिला दी जाती है. इस शराब को बनाने के लिए कई बार डीजल, मोबिल ऑयल, रंग रोगन के खाली बैरल और पुराने बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है. यह भी पढ़ें- यूपी-उत्तराखंड में जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या पहुंची 100 के पार, 175 गिरफ्तार, ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी

ऑक्सिटॉसिन और आयोडेक्स का इस्तेमाल 

शराब में स्वाद के लिए गुड़, महुआ, शीरा आदि का इस्तेमाल किया जाता है. शराब को अधिक नशीला बनाने के लिए बहुत पुराने गुड़ और शीरे का इस्तेमाल होता है. जितना पुराना और दुर्गंध वाला गुड़ या शीरा होगा उससे उतनी ही अधिक नशीली शराब तैयार होती है. शराब को अधिक नशीली बनाने के लिए भैंस का दूध निकालने के लिए इस्तेमाल होने वाले ऑक्सिटॉसिन के इंजेक्शन, दर्द में इस्तेमाल की जाने वाली आयोडेक्स भी मिलाई जाती है.

मिथाइल ऐल्कॉहॉल होता है जानलेवा 

अधिक नशे के चक्कर में कई दूसरे केमिकल का भी इस्तेमाल भी किया जाता है. जानकारों के अनुसार गुड़ और शीरे में ऑक्सिटॉसिन मिलाने से मिथाइल ऐल्कॉहॉल बन जाता है. मिथाइल ऐल्कॉहॉल कच्ची शराब में ज्यादा होने पर शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाता है. ज्यादा मिथाइल ऐल्कॉहॉल से शरीर के हिस्से काम करना बंद कर देते हैं जिससे आमतौर पर पीने वालों की मौत हो जाती है.

गंदे नाले के पानी का इस्तेमाल 

इसके अलावा इस तरह की शराब बनाने में गंदे नालों और तालाबों का पानी भी इस्तेमाल किया जाता है. अवैध शराब तस्कर घने जंगल में नदी-नाले और तालाब के किनारे भट्ठी लगाकर शराब बनाते हैं. कई घंटे भट्ठी में आग जलाकर शीरे और गुड़ से शराब को निचोड़ा जाता है. जंगलों में अच्छे पानी के अबाव में ये लोग नाले, तालाब या गड्ढों में भरे गंदे पानी का भी इस्तेमाल करते हैं.

शराब से मौत का यह कोई पहला या अंतिम मामला नहीं है. यूपी समेत देश के विभन्न राज्यों में आए दिन जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत होती रहती है. साल 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार जहरीली शराब पीने से प्रतिदिन पांच लोगों की मौत होती थी. जहरीली शराब पीने से 2014 में 1699 लोगों की मौत हुई थी, जो 2013 में 387 लोगों की हुई मौत की तुलना में 339 प्रतिशत ज्यादा है. वहीं, मालवाणी और मुंबई में 2015 में अवैध शराब पीने से करीब 108 लोगों की मौत हो गई थी.