नई दिल्ली: जापान (Japan) के प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) ने आज (28 अगस्त) खराब स्वास्थ्य के कारण अपना पद छोड़ दिया. यह दूसरी बार है जब स्वास्थ्य कारणों से आबे को अपना पद छोड़ना पड़ा है. इससे पहले उन्होंने 2007 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. हालांकि वो दुबारा 2012 में भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापस लौट आए. शिंजो आबे के कार्यकाल में भारत और जापान के बीच संबंधों में नए आयाम जुड़े. उनके आने से दोनों देशों के बीच कुटनीतिक रिश्ते की नींव और पुख्ता हुई. वर्तमान में जापान भारत का मेट्रो, बुलेट ट्रेन, बुद्धिज्म, व्यवसाय, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में बहुत बड़ा सहयोगी है. यही वजह है कि बीते कुछ सालो में जापान और भारत सबसे करीबी दोस्त बन गए हैं.
भारत और जापान के बीच मेत्री का एक लंबा इतिहास है जो आध्यात्मिक सोच में समानता तथा मजबूत सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत रिश्तों पर आधारित है. शिंजो आबे के कार्यकाल में दोनों आधुनिक देशों ने पुराने संबंध की सकारात्मक विरासत को जारी रखा है जो लोकतंत्र, व्यक्तिगत आजादी तथा कानून के शासन में विश्वास के साझे मूल्यों से मजबूत किया है. जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने स्वास्थ कारणों के चलते पद से दिया इस्तीफा
दिल्ली मेट्रो के निर्माण में जापान के योगदान को कभी नहीं भुला जा सकता है. इसी तरह 15 अरब डॉलर की मुंबई को सूरत और अहमदाबाद से जोड़ने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना में भी जापान अहम साझेदार है. भारत ने इस संबंध में जापान से एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए है. सितंबर 2017 में परियोजना की शुरुआत में एक समारोह हुआ था, जिसमें पीएम मोदी के साथ शिंजो आबे भी मौजूद थे. आबे की अगुवाई में जापान ने बुलेट ट्रेन के लिए भारत को 88 हजार करोड़ देने का फैसला लिया. साल 2015 में दिसंबर में पीएम मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी आबे की अगवानी की थी. जापानी पीएम के साथ भारत की गर्मजोशी कई सालों के रिश्तों की बानगी मानी जाती है.
साल 2012 में सत्ता में लौटने के बाद आबे ने भारत और जापान को एक ऐसा साझेदार बनाने में मदद की जिससे शांतिपूर्ण एवं स्थिर एशिया-प्रशांत क्षेत्र का तानाबाना बुनी जा सकी. एशिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों तथा एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने पूरी दुनिया के सामने कई मिसाल पेश की. साल 2014 में आबे भारत के आधिकारिक दौरे पर आए थे और दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. तब दोनों देशों के बीच विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग करार पर हस्ताक्षर हुआ.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शिजो आबे के साथ 9वीं वार्षिक शिखर बैठक के लिए 30 अगस्त 2014 को पहला जापान दौरा किया. तब दोनों पक्षों ने संबंध को विशेष सामरिक एवं वैश्विक साझेदारी के रूप में स्तरोन्नत करने का निर्णय तथा एक भारत - जापान निवेश संवर्धन साझेदारी शुरू की जिसके तहत जापान ने अगले पांच वर्षों में भारत में लगभग 35 मित्रियन अमरीकी डालर निवेश करने की अपनी मंशा की घोषणा की.
भारत-जापान द्विपक्षीय व्यापार का शेयर जापान के कुल विदेश व्यापार के 1 प्रतिशत के आसपास है. भारत की ओर से जापान को जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है उनमें मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन, एलीमेंट, कंपाउंड, गैर मेटलिक मिनरल वेयर, मछली एवं मछली के पकवान, मेटफेरस अयस्क एवं स्क्रैप, कपड़ा एवं असेसरीज, लोहा एवं इस्पात के उत्पाद, टेक्सटाइल यार्न, फेब्रिक एवं मशीनरी आदि शामिल हैं.
वित्त वर्ष 2016-17 में भारत-जापान व्यापार 13.61 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. वित्तीय वर्ष 2015-16 में कुल द्विपक्षीय व्यापार 14.51 बिलियन यूएस डॉलर था. 2016-17 में भारत का जापान में निर्यात 3.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि 2016-17 में भारत का जापान से आयात 9.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. भारत में जापानी एफडीआई 2016-17 के दौरान 4.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 80% अधिक थी.
आबे के प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 2012 में भारत में जापान के एफडीआई में वर्ष 2011 की तुलना में 19.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2786 मिलियन अमरीकी डालर पर पहुंच गया. जापान की एफडीआई मुख्य रूप से आटोमोबाइल, इलेक्ट्रिकल उपकरण, दूर संचार, रसायन एवं फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में है. जबकि इस दौरान भारत में जापान से संबद्ध कंपनियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई. भारत में जापानी कंपनियों की उपस्थिति निरंतर बढ़ रही है. दिसंबर 2014 तक की स्थिति के अनुसार भारत में पंजीकृत जापानी कंपनियों की संख्या 1209 थी जो 2013 के आंकड़ों की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है. भारत में प्रचालन करने वाले जापानी व्यवसायों के स्थापना की कुल संख्या 3961 थी जो पिछले साल की तुलना में 56 प्रतिशत अधिक है.