भारत छोड़ो आंदोलन: इस आंदोलन से हिल गई थी अंग्रेज सरकार की नींव, देश छोड़ने पर हो गए थे मजबूर
भारत छोड़ो आंदोलन मुहिम की शुरूआत (photo Credits: Wikipedia)

नई दिल्ली:  भारत 1947 से पहले गुलाम देश हुआ करता था. 1947 से पहले देश पर अंग्रेजों का राज था. उन्हें देश से  भगाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को एक आंदोलन की शुरूआत की थी. इस आन्दोल को नाम दिया गया भारत छोड़ो आंदोलन. अंग्रेजो को देश से भगाने के लिए इस आंदोलन की शुरुआत कहीं और से नहीं बल्कि मुंबई के ग्वालिया टैंक से शुरू हुआ. जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है.

भारत छोडों आंदोलन को 8 अगस्त 2018 को पूरे 76 साल होने जा रहा है. आज के ही दिन महात्मा गांधी ने आंदोलन शुरू किया था. जिनका मकसद था देश को अंग्रेजों के गुलामी से आजाद कराना. बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन से की थी.

देश को आजाद करवाने के लिए 1942 से पहले कई बार कोशिश की गई. लेकिन लोगों को सफलता नहीं हासिल हो सकी. इसके बाद महात्मा गांधी और उनके साथ जुडे़ आन्दोलनकारियों ने यह फैसला किया कि मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान से शुरू होने वाला इनका यह आंदोलन तब तक नही खत्म होगा, जब तक देश को आजादी नहीं मिल जाती हैं. इस आंदोनल के दौरान ही आंदोलनकारियों में जोश भरने के लिए करो या मरो का नारा दिया गया था. जिसका मतलब था कि देश के आजादी के लिए जान की आहुति भी देनी पड़ेगी तो जरूर देंगे. लेकिन आजादी लेकर रहेंगें

इस आंदोलन के उग्र होने की जानकारी जैसे ही ब्रिटिश हुकूमत को मिली तो उन्होंने  9 अगस्त को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया. अग्रेजों की ज्यादती का सिलसिला यही तक नही थमा, उन्होंने आंदोलन की शुरूआत करने वाले महात्मा गांधी को अहमदनगर जिले में स्थित एककिले में नजर बंद कर दिया. अकड़ों की बार करें तो इसमें करीब 940 लोग मारे गए थे, वही 1630 लोग घायल हुए थे. जबकि  60229 लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी थी.

गांधी जी के इस आंदोलन में  डॉ. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली जैसे लोगों का भी अहम योगदान रहा है. इन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ सकड़ो पर लोगों को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. इन लोगों ने सरकारी कामकाज रुकवा कर काम बंद करवा दिया. जिसके चलते सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए.

देश के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण था जब सरकारी कर्मचारी भी अंग्रेजों के विरोध में खड़े हो गए. डॉ लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली के बारे में कहा जाता है कि ये नेता आंदोलन के दौरान ही उभर कर सामने आए थे. जिसके बाद इन नेताओं की गिनती बड़े नेता के तौर पर होने लगी.

इस आन्दोलन के बाद अंग्रेजों  को संकेत मिल गया  कि पूरा देश उनके खिलाफ हो चुका है. ऐसे में भारत में राज करना उनके लिए आगे मुश्किल हो जाएगा. जिसके बाद वे धीरे-धीरे उन्होंने अपना साम्राज भारत से समेटना शुरू कर दिया. देश को आजाद करवाने का अपने सपने में गांधी जी सफल हुए और देश 1947 में अंग्रेजों से आजाद हो गया.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस दुनिया में नही है लेकिन उनके बारे में सम्मान के साथ इतना कहा जा सकता है कि वे यदि अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन की मुहिम की शुरूआत नही किया होता तो  आज भी पूरा देश ब्रिटिश सरकार के हाथों गुलाम रहता. लेकिन बापू द्वारा अंग्रेजो के खिलाफ छे़डा गया आंदोलन  इनके लिए इतना असरदार साबित हुआ कि वह नारा ब्रिटिश सरकार की नींव हिला कर रख दी.