
Stolen Review: 'स्टोलन' एक ऐसी फिल्म है जो आपको न सिर्फ झकझोरती है बल्कि आपकी आंखों के सामने वो सच्चाई लाकर खड़ी कर देती है, जिसे हम अक्सर वायरल वीडियो में देखकर भूल जाते हैं. सोशल मीडिया पर फैली अफवाहें, मॉब लिंचिंग और एक बच्चे की किडनैपिंग से शुरू होती है ये कहानी, जो अंत तक आपको सांस रोककर देखने पर मजबूर कर देती है. फिल्म की शुरुआत एक गांव के रेलवे स्टेशन पर होती है. गौतम (शुभम वर्धन) अपने भाई रमन (अभिषेक बनर्जी) को लेने आया है. दोनों अपनी मां की शादी में शामिल होने जा रहे हैं. तभी वहां एक महिला झुम्पा (मिया मेल्ज़र) का बच्चा चोरी हो जाता है. अफरा-तफरी में वह रमन को किडनैपर समझ लेती है. पुलिस आती है, मामला सुलझता है, लेकिन इसके बाद कहानी एक ऐसे मोड़ पर पहुंचती है जहां से पीछे लौटना नामुमकिन हो जाता है.
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसका टाइट स्क्रीनप्ले और रॉ ट्रीटमेंट. स्टोरी को किसी भी तरह से ओवरड्रामैटिक नहीं बनाया गया है. जो भी घटनाएं होती हैं, वो बहुत ही ऑर्गेनिक लगती हैं. यही वजह है कि फिल्म के हर दृश्य में सच्चाई का असर महसूस होता है.
देखें 'स्टोलन ट्रेलर':
अभिनय की बात करें तो अभिषेक बनर्जी इस बार भी छा गए हैं. वह हर बार अपने किरदार में कुछ नया ले आते हैं और इस बार भी उनका इमोशनल रेंज देखने लायक है. रमन के किरदार में उनका गुस्सा, हताशा और मानवीयता सब कुछ बेहद सटीक ढंग से सामने आता है. मिया मेल्ज़र ने एक मां के दर्द को बिना किसी मेलोड्रामा के जिस तरह से प्रस्तुत किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है. शुभम वर्धन के रूप में भी हमें एक सधा हुआ और संवेदनशील अभिनेता देखने को मिला.
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर इसकी टेंशन को कई गुना बढ़ा देते हैं. ईशान घोष का कैमरा वर्क फिल्म को एक डॉक्यूमेंट्री जैसा रियल फील देता है. साउंड डिजाइन (सुस्मित नाथ) भी बहुत प्रभावी है. कहीं कोई लाउड म्यूजिक नहीं, लेकिन हर लोकेशन की आवाज़ें आपको वहां मौजूद होने का अनुभव देती हैं.
फिल्म की थीम पर अगर बात करें तो यह केवल बच्चा चोरी या किडनैपिंग की कहानी नहीं है. यह फिल्म सिस्टम की उदासीनता, मॉब जस्टिस, अफवाहों की ताकत और सोशल मीडिया के गलत प्रभाव की बात करती है. जो वीडियो वायरल होता है, उसमें कुछ और दिखाया गया है, जबकि ग्राउंड रियलिटी एकदम उलट होती है. यही फिल्म का सबसे मजबूत हिस्सा है – आपको समझ नहीं आता कि आप किस पर भरोसा करें.
कमियों की बात करें तो, फिल्म का सेकंड हाफ थोड़ी देर के लिए धीमा महसूस होता है और कुछ घटनाएं प्रेडिक्टेबल लग सकती हैं. खासकर गौतम का ट्रांसफॉर्मेशन पहले से अंदाजा हो जाता है. लेकिन ये खामियां फिल्म के टोटल इम्पैक्ट को कमजोर नहीं करतीं. निर्देशक करन तेजपाल का काम बेहद सधा हुआ है. उन्होंने इस रियलिस्टिक कहानी को बिना ग्लैमर और बिना कोई ज़्यादा सजावट के, सीधे-सच्चे तरीके से बताया है. यही वजह है कि फिल्म एक ईमानदार दस्तावेज़ बन जाती है उन घटनाओं का, जो हमारे आस-पास हर दिन घटती हैं.
निष्कर्ष में, Stolen एक जरूरी फिल्म है. यह मनोरंजन के साथ-साथ समाज की एक कड़वी सच्चाई से भी रूबरू कराती है. अभिषेक बनर्जी और मिया मेल्ज़र की शानदार अदाकारी, करन तेजपाल की ईमानदार निर्देशकीय शैली और सशक्त स्क्रीनप्ले मिलकर इसे एक बेहतरीन थ्रिलर बनाते हैं. आप इसे Prime Video पर देख सकते हैं.