देश भर में अब मॉनसून सक्रिय हो रहा है. ऐसे में लोगों में सामान्य सर्दी-जुकाम होना आम है. लेकिन कोविड19 के समय में सामान्य सर्दी जुकाम से कोरोना के संक्रमण का कितना खतरा है. साथ ही मॉनसुन के समय संक्रमण की क्या स्थिति रहेगा. इस बारे में बताते हुए आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉ रमन आर गंगाखेडकर ने कहा कि मॉनसून में अक्सर सर्दी जुकाम होता है और लोगों को खांसी और छींक आती है. इससे कोरोना के केस बढ़ने की संभावना ज्यादा है. डॉ. गंगाखेडकर ने आगे कहा कि अगर लोग अपना ध्यान रखेंगे तो मॉनसून में भी कोई खतरा नहीं होगा. अगर किसी संक्रमित या भीड़ से संपर्क में नहीं आए हैं, और सर्दी जुकाम है और अन्य लक्षण नहीं हैं तो ये मॉनसून की वजह से हो सकता है. लेकिन हां सामान्य जुकाम में भी मास्क (mask) लगा कर रखें. बाहर ही नहीं, घर पर भी मास्क लगायें और घर के बाकी सदस्यों को भी मास्क लगाने को कहें. कुछ भी करने से पहले हैंड वाश करें. वैसे ही जैसे वायरस से बचने के लिए करते हैं. अब कोई भी मौसम हो या बीमारी हो सावधानी और सतर्कता सभी को रखनी है.
मरीजों की सहमति पर ही दी जाएगी दवा:
इस दौरान उन्होंने कोविड19 के मरीजों को दी जाने वाली दवा के बारे में जानकारी दी जिसे ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने अनुमति दे दी है. साथ ही उस दवा का उत्पादन भी भारत में होने लगा है. डॉ गंगाखेडकर ने बताया कि दो कंपनियां फेविपिराविर बनाने की कोशिश कर रही हैं. एक कंपनी ने क्लिनिकल ट्रायल भी किया है, जो ड्रग कंट्रोलर के सामने पेश किया. दूसरे देशों में भी इसका प्रयोग अच्छा रहा है. लेकिन यह दवा किसे, कब देनी है यह डॉक्टर तय करेंगे. दवा देने से पहले मरीज या उसके परिजनों की सहमति लेना जरूरी होगा. क्योंकि इस दवा के प्रोयग और शोध करने के लिए समय नहीं मिला है और किसी दवा पर शोध करने में काफी समय लगता है. इसलिए बीच का रास्ता निकाला गया है. इस दवा को आम लोगों को खुद से नहीं लेना है. अलग-अलग बीमारी के लोगों में इसके इसके अलग-अलग साइड इफेक्ट हैं.
एंटीबॉडी के बारे में किसी भी शोध में है समय:
इस दौरान जो लोग कम लक्षण वाले हैं या जिनमें भी एंटीबॉडी बन रहे हैं, उनके शरीर में ये कितने दिन तक रहते हैं इस पर डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि अगर शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ बनी एंटीबॉडी कितने समय तक रहेंगे ये अभी पता नहीं चला है. कुछ लोगों का कहना है कि 6 महीने तक रहेंगे. लेकिन अभी इस बारे में बता भी नहीं सकते हैं, क्योंकि ये वायरस नया है और लोगों में एंटीबॉडी बने हुए भी ज्यादा समय नहीं हुआ है. इसका पता कुछ साल या कुछ महीने के बाद ही चलेगा. इस बारे में शोध करने के लिए समय की जरूरत है.
संक्रमण की संख्या, अस्पताल आदि खबर से घबराएं नहीं:
वहीं देश अनलॉक के बाद देश में कोरोना के संक्रमण बढ़ने लगे हैं. हालाकि देश में मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत बढ़ा है फिर भी लोग अस्पताल जाने में डर रहे हैं. इस बारे में डॉ गंगाखेड़कर ने कहा कि लोग मामलों की बढ़ती संख्या, मौत के आंकड़ों को देखते हैं. वो सोचते हैं अस्पताल में बेड भर गए हैं, या कुछ लोगों को लगता है कि रिश्तेदारों को पता चलेगा तो वो दूरी बना लेंगे. ये सब देख कर इतना घबराने की जरूरत नहीं है. शरीर में संक्रमण बढ़ेगा या इलाज में देरी होगी तो परेशानी और बढ़ेगी. जहां तक मौत का डर है, तो ये आंकड़ा बहुत कम है. क्योंकि जिन्हें पहले से कोई बीमारी है या शारीरिक परेशानी है, उनमें कुछ लोग गंभीर रूप से संक्रमित होते हैं. वो भी संख्या काफी कम है. रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बारे में न सोचें, लक्षण आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
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आईसीएमआर वैज्ञानिक ने कहा कि इस महामारी का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. साथ ही ठीक होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. यानी इससे मौत का आंकड़ा हमारे यहां न के बराबर है. लेकिन अभी अगर सावधानी रखेंगे और बचाव करेंगे तो संक्रमण के मामलों का आंकड़ा भी कम हो सकता है. इसके लिए लोगों को थोड़ा ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.