
आजकल दुनिया की नज़रें एक छोटे से जहाज़ पर टिकी हैं, जिसका नाम 'मैडलीन' (Madleen Ship Gaza) है. इस जहाज़ पर कोई और नहीं, बल्कि दुनिया की मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग सवार हैं. वो अपने 11 साथियों के साथ ग़ाज़ा के लोगों के लिए मदद लेकर जा रही हैं, और आज ईद के दिन उनके ग़ाज़ा पहुँचने की उम्मीद है.
आख़िर ये पूरा मिशन क्या है?
ग्रेटा थनबर्ग, जो पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी आवाज़ उठाने के लिए जानी जाती हैं, इस बार इंसानियत के लिए एक बड़ा कदम उठा रही हैं. उनके जहाज़ पर दवाइयाँ, अनाज, बच्चों के लिए दूध, डाइपर और पानी साफ़ करने वाली मशीनें लदी हुई हैं.
यह सफ़र 1 जून को इटली से शुरू हुआ था. ग्रेटा और उनकी टीम का लक्ष्य लगभग 2000 किलोमीटर की दूरी तय करके ईद के मौके पर ग़ाज़ा पहुँचना है, ताकि वहाँ के लोगों को कुछ राहत मिल सके.
ग्रेटा ने रवाना होने से पहले कहा, "अगर इंसानियत में थोड़ी भी उम्मीद बची है, तो हमें फ़िलिस्तीन के लिए आवाज़ उठानी होगी. यह मेरा कर्तव्य है."
कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग, जो दुनिया से भिड़ गई थीं?
ग्रेटा थनबर्ग वही लड़की हैं, जिन्होंने 15 साल की उम्र में जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ अकेले स्वीडन की संसद के बाहर हड़ताल शुरू कर दी थी. उनका आंदोलन 'Fridays For Future' नाम से दुनिया भर में फैल गया.
2019 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के बड़े नेताओं को डांटते हुए कहा था, "How Dare You?" (आपकी हिम्मत कैसे हुई?). उन्होंने कहा था कि आपके खोखले वादों ने हमारा बचपन और हमारे सपने छीन लिए हैं. उनका यह भाषण पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था.
इजराइल क्यों रोक रहा है इस जहाज को?
ग़ाज़ा में हालात बहुत ज़्यादा ख़राब हैं. इज़राइल ने पिछले कई महीनों से वहाँ मदद पहुँचाने वाले रास्तों पर कड़ी रोक लगा रखी है, जिससे लाखों लोग भुखमरी की कगार पर हैं.
ग्रेटा का यह मिशन 'फ़्रीडम फ़्लोटिला कोएलिशन' नाम के एक अंतरराष्ट्रीय संगठन का हिस्सा है, जो शांतिपूर्ण तरीक़े से ग़ाज़ा की इस घेराबंदी को तोड़ना चाहता है.
लेकिन इज़राइल इस मिशन से सख़्त नाराज़ है. इज़राइली सेना ने साफ़ कह दिया है कि वो इस जहाज़ को ग़ाज़ा के तट तक नहीं पहुँचने देंगे. उनका कहना है कि अगर एक जहाज़ को आने दिया, तो भविष्य में ऐसे और भी जहाज़ आएँगे, जिससे उनकी सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है.
इज़राइली अधिकारियों ने धमकी दी है कि अगर जहाज़ पर मौजूद लोगों ने उनकी बात नहीं मानी, तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा.
गाजा की घेराबंदी: 17 साल का दर्द
यह कोई नई बात नहीं है. इज़राइल ने ग़ाज़ा की ज़मीनी और समुद्री सीमाओं को पिछले 17 सालों से घेर रखा है. यह घेराबंदी 2007 में शुरू हुई थी, जब हमास ने ग़ाज़ा पर नियंत्रण कर लिया था. इज़राइल का कहना है कि यह उसकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी है, ताकि हमास जैसे गुटों तक हथियार न पहुँच सकें.
पहले भी कई बार इस घेराबंदी को तोड़ने की कोशिशें हुई हैं. साल 2010 में इसी तरह मदद लेकर जा रहे एक जहाज़ पर इज़राइली सेना ने हमला कर दिया था, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना की पूरी दुनिया में बहुत आलोचना हुई थी.
आज, जब ग्रेटा का जहाज़ ग़ाज़ा की ओर बढ़ रहा है, तो पूरी दुनिया देख रही है कि क्या इंसानियत की यह कोशिश कामयाब हो पाएगी या इसे भी रोक दिया जाएगा.