श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में 22 साल बाद राष्ट्रपति शासन लागू होने वाला है. इससे पहले साल 1990 से अक्टूबर 1996 तक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा था. दरअसल घाटी में राजनीतिक उठापटक के बीच बुधवार को राज्यपाल शासन के छह महीने पूरे हो रहे है. इसलिए केंद्र सरकार ने सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी जो फिलहाल लंबित है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के उद्घोषणा के बाद राज्य विधानमंडल की शक्तियां संसद या संसद के प्राधिकार द्वारा इस्तेमाल की जाएंगी. अब कानून बनाने का अधिकार संसद के पास होगा. नियमानुसार राष्ट्रपति शासन में बजट भी संसद से ही पास होता है.
मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को सहयोग और सलाह देगी-
जम्मू-कश्मीर, संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन में नहीं आता है और राज्य के संविधान के तहत उसकी उद्घोषणा की जाती है ऐसे में सभी निर्णयों पर राष्ट्रपति की मुहर लगनी होगी. वहीं प्रधानमंत्री की अगुवाई में मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को सहयोग और सलाह देगी.
केंद्र ने भेजा प्रस्ताव-
जानकारी के मुताबिक केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू कश्मीर में 19 दिसंबर से राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा था. राज्यपाल कार्यालय ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक पत्र भेजा है जिसने प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल को भेजा.
राज्यपाल को छह महीने पूरे होने के बाद विधानसभा को भंग करना होता है और फिर राज्य अगले छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन आता है जिस दौरान राज्य में चुनाव की घोषणा करनी होती है. यदि चुनाव की घोषणा नहीं की जाती है तो राष्ट्रपति शासन को अगले छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है. राष्ट्रपति उद्घोषणा किसी भी स्थिति में तीन साल से अधिक प्रभाव में नहीं रहेगी.
गौरतलब हो कि बीते 21 नवंबर को एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद जम्मू और कश्मीर विधानसभा को राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भंग कर दिया. इससे पहले मुख्यधारा के तीन दलों ने साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया, वहीं, इसका विरोध करते हुए बीजेपी समर्थित पीपल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी सरकार बनाने का दावा पेश किया था.
बीजेपी के समर्थन वापस लेने से गिरी सरकार-
विधानसभा को भंग करने की घोषणा से तुरंत पहले पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा किया था. वहीं, बीजेपी भी पीडीपी के विद्रोही विधायकों और सज्जाद लोन के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश में जुटी थी. दरअसल 87 सदस्यीय विधानसभा में पच्चीस सदस्यों वाली बीजेपी द्वारा समर्थन वापसी के बाद जून में महबूबा मुफ्ती सरकार अल्पमत में आने के बाद गिर गई थी.