Locust Attack: देश में ऐसे होता है टिड्डी दल का हमला, 24 घंटे में 35 हजार लोगों का भोजन कर सकते है चट
टिड्डी (Photo Credits: Wikimedia Commons)

बीते तीन दशक से टिड्डी (Tiddi Dal) दलों के हमले ना केवल भारत बल्कि पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान को खूब परेशान कर रहे है. खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार टिड्डियां (Locust) दुनिया की सबसे पुरानी प्रवासी कीट हैं. देश के कई राज्यों को फसलों को खराब करने वाले टिड्डी दल का प्रकोप सहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. भारत में पिछले वर्ष के अंत में गुजरात और राजस्थान में टिड्डियों के दल ने हमला किया था, जबकि बीते फरवरी महीने में भी टिड्डियों ने पंजाब में फसलों को तबाह कर दिया था.

टिड्डी दल लाखों-करोड़ों की संख्या में आते हैं और एक ही रात में सब फसल को चट कर जाते है. एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने वाला टिड्डियों का झुंड एक दिन में 35,000 लोगों का भोजन खा सकता है. हालांकि टिड्डियों का पनपना पूरी तरह से प्राकृति से जुड़ी घटना है. रोचक पहलू यह है कि इनकी संख्या और प्रकोप का क्षेत्र, मौसम और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है. Locust Attack: पाकिस्‍तान से आ रहे टिड्डी दलों से राजस्थान के किसान परेशान, गुजरात में भी अन्नदाताओं को फसल बर्बाद होने का डर

पाकिस्तान से होती है एंट्री-

पाकिस्तान में तबाही मचाने के बाद टिड्डियों के दल ने भारत के निकटवर्ती राज्यों की ओर रुख करते है. टिड्डियों का झुंड राजस्थान (Rajasthan) में आने वाली हवा या रेगिस्तानी तूफान की मदद से भारत में फैलते हैं. हर साल पाकिस्तान से भारत में टिड्डियों की घुसपैठ का कोई ना कोई मामला सामने आता रहता है. हजारों-लाखों टिड्डियों का झुंड घुसपैठ करके देश की सीमावर्ती क्षेत्रो में किसानों की फसलों को तबाह कर देते है. जहां भी टिड्डिया पड़ाव डालता है, वहां फसलों व अन्य वनस्पतियों को चट करता हुआ चला जाता है.

पिछली बार टिड्डी दल का पहला हमला 21 मई 2019 को देखा गया था. इस दल ने लगभग आठ महीने तक किसानों को परेशान किया. आमतौर पर टिड्डी दल इतने लंबे समय तक सक्रिय नहीं रहता है. बीते 26 साल में टिड्डी दल ने इस बार सर्वाधिक तबाही मचाई थी. भारत में 1962 के बाद से टिड्डियों का इतने बड़े पैमाने पर हमला कभी नहीं हुआ था. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि 1978 और 1993 में भी टिड्डी दल ने फसलों को नुकसान पहुंचाया था.

भविष्य में बढ़ सकता है खतरा-

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट में मौसम की चरम और असामान्य गतिविधियों को टिड्डियों के पनपने की वजह बताया गया है. रिपोर्ट में मौसम की चरम गतिविधियों के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवात की असामान्य गतिविधियां भी प्रमुख वजह मानी जा रही हैं. एक रिपोर्ट में मौसम विज्ञानियों के हवाले से आगाह किया गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर कमी नहीं आयी तो भविष्य में इस तरह के खतरे बढ़ेंगे.

टिड्डियों से बचाव-

समय से कीटनाशकों का छिड़काव न होने से टिड्डियों की समस्या बढ़ जाती है और कड़ी मेहनत से उपजाई गई किसानों की फसल नष्ट हो जाती है. इसलिए किसानों को जैसे ही टिड्डी दल दिखाई दें, तो सामूहिक रूप से ड्रम, कनस्तर या थाली बजाना चाहिए. क्योकि तेज आवाज सुनकर टिड्डी दल वापस लौट जाते हैं. इसके अलावा क्लोरोपॉयरीफॉस और साइपरमैथ्रीन पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़काव करने अथवा फैलवैनरेट तीन से पांच किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़कने पर इसकी गंध से टिड्डी भाग जाते है. राजस्थान: पाकिस्तान से भारत की सीमा में घुसपैठ करते दिखा टिड्डियों का झुंड, जैसलमेर जिला प्रशासन अलर्ट, देखें वीडियो

टिड्डियों के नियंत्रण के लिए FAO का सदस्य बना भारत-

भारत में टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना 1946 में की गई. उसके पहले 1926 से 1931 के दौरान टिड्डियों से करीब दस करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. दक्षिण पश्चिम एशिया में मरुस्थलीय टिड्डियों के नियंत्रण के लिए एफएओ (Food and Agriculture Organisation) आयोग का भारत सदस्य है. पौधे के संरक्षण के उपकरणों, कीटनाशकों और टिड्डी चेतावनी संगठन कर्मचारियों को प्रशिक्षण आदि के माध्यम से एफएओ, सदस्य देशों को तकनीकी और अन्यसामग्री द्वारा सहायता उपलब्ध कराकर वैश्विक टिड्डी नियंत्रण प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है. भारत इस आयोग का नियमित सदस्य रहा है और 1964 के दौरान इसके ट्रस्ट फंड की शुरुआत के साथ ही भारत इसके तहत निधियन मुहैया कराने में योगदान करता रहा है. (एजेंसी इनपुट के साथ)