नई दिल्ली: कई लोगों को लगता है कि 'मोतियाबिंद' (Cataracts) केवल बड़े व वृद्ध लोगों को ही होता है, लेकिन 'मोतियाबिंद' बच्चों को भी हो सकता है. जी हां, सफेद मोतिया (Glaucoma) या 'मोतियाबिंद' बच्चों में दृष्टिहीनता (Blindness) का एक बड़ा कारण है. सफेद मोतिया होने पर बच्चे की आंख का लेंस प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में आंख में धुंधलापन (Blurred Vision) या सफेदी आ जाती है और बच्चे की दृष्टि प्रभावित होती है. Vaccines for Children: दिल्ली एम्स में 6 से 12 साल के बच्चों पर होगा Covaxin का ट्रायल, कल से होगा सिलेक्शन
क्या कहते हैं डॉक्टर ?
एम्स के नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर सुदर्शन खोखर इस बारे में बताते हैं कि पीडियाट्रिक यानि बच्चों के cataract (मोतियाबिंद) हमारे यहां 13 से 15 तक के होते हैं. 10 हजार बच्चों में हर 10वें बच्चे को cataract यानि मोतियाबिंद होने की संभावना होती है. बच्चों को मोतियाबिंद ग्लाक्टोसेमिया बीमारी के कारण हो सकता है, या फिर बच्चों में कुपोषण हो, या बच्चे की आंख में चोट लगी हो, यह उससे भी हो सकता है.
बच्चों में मोतियाबिंद के कारण:
-आनुवांशिक
-विकिरण के अधिक संपर्क व प्रभाव से
-अन्य बीमारियां जैसे डाउन सिंड्रोम
-बच्चों में संक्रमण
-कुछ दवाएं जैसे स्टेरॉयड
-गर्भावस्था में रूबेला या चिकन पॉक्स जैसे संक्रमण
-आघात या आंख पर चोट
यदि मोतियाबिंद की पहचान जल्द कर बच्चे को सही समय पर इलाज मिल पाए तो उसकी दृष्टि को खोने से बचाया जा सकता है. सफेद मोतिया बच्चों में दृष्टिहीनता का एक ऐसा कारण है, जिससे बचाव किया जा सकता है. बच्चे में सफेद मोतिया होने पर उसकी जल्द पहचान व सही इलाज होना आवश्यक है. यदि इलाज में देरी होगी तो इससे बच्चे की दृष्टि भी प्रभावित हो सकती है.
बच्चों की नियमित रूप से आंखों की जांच जरूर करवाएं
डॉक्टर सुदर्शन खोखर कहते हैं कि यदि बच्चे को सफेद मोतिया है तो उसका जल्द से जल्द ऑपरेशन जरूरी है, क्योंकि अगर मोतिया के कारण रोशनी आंख के अंदर नहीं जा रही है तो रेटिना का डेवलपमेंट ठीक से नहीं होगा. ऐसे में माता-पिता को ही सही समय पर बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण जांचते रहना होगा.
ज्यादातर मामलों में बच्चों में मोतियाबिंद जांच करने पर पता चलता है
माता पिता को देखना है कि बच्चों में या तो आंख का तिरछापन होता है, या बच्चा धूप में जाता है तो एक या दोनों आंखों को बंद कर लेता है, या आंखों में थिरकन होती है. इसके अलावा बच्चे अपनी आंखों को मलने लगते हैं या टीवी या किसी भी वस्तू को बहुत करीब जाकर देखते हैं तो उस स्थिति में बच्चों में चश्मे की कमी भी हो सकती है और मोतिया भी हो सकता है. ऐसे में बच्चों को डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले जाना बेहद जरूरी है. डॉक्टर बच्चे की आंख में पुतली फैलाने की दो बूंद दवाई डालेंगे. उसके बाद वे आंख की जांच करके बता देंगे कि बच्चे को मोतिया है या नहीं. ऐसे में समय पर बच्चों को इस बीमारी का इलाज मिल पाएगा.
माता-पिता को सबसे ज्यादा उस समय जागरूक रहने की जरूरत है कि जब बच्चा पैदा हो और आप उसे किसी डॉक्टर को दिखाएं तो उस वक्त ही बच्चे की आंख में एक बूंद दवाई की डलवा कर उसकी आंख की जांच भी करवाएं. इसके कारण हम बच्चे में मोतियाबिंद को जल्दी पकड़ सकते हैं.
बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण:
-आंख की पुतली पर टॉर्च की रोशनी पड़ने पर जब सफेद दिखती है
-दृष्टि में धुंधलापन
-आंखे जो सही स्थिति में नहीं हैं
-आंख की लगातार चाल या गति, जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है
-देखने में परेशानी
-रोशनी जो बहुत चमकदार दिखती है
-बच्चे द्वारा किसी वस्तु को देखने पर वस्तु के चारों ओर प्रकाश का घेरा दिखाई देना
समय पर उपचार मिलने पर बच्चों में दृष्टिहीनता से बचाव संभव
बच्चे में मोतियाबिंद होने पर इलाज में देरी हो, या सही समय पर इलाज न हो पाए तो इससे दृष्टि को क्षति हो सकती है. ऐसे में बच्चे में जीवनभर के लिए दृष्टिहीनता हो सकती है. आवश्यक है कि बच्चे को नियमित रूप से समय-समय पर नेत्र जांच के लिए अवश्य ले जाएं, जिससे उसकी दृष्टि में हो रहे बदलाव की पहचान हो सके. किसी भी नेत्र रोग को जल्द पहचाना जा सके.