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आ रही है भीषण गर्मी पर तैयार नहीं है भारत

अगले महीने से तापमान के तेजी से बढ़ने का अनुमान जाहिर किया जा चुका है लेकिन इस भीषण गर्मी से निपटने में भारत की व्यवस्था तैयार नहीं है.

देश Deutsche Welle|
आ रही है भीषण गर्मी पर तैयार नहीं है भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अगले महीने से तापमान के तेजी से बढ़ने का अनुमान जाहिर किया जा चुका है लेकिन इस भीषण गर्मी से निपटने में भारत की व्यवस्था तैयार नहीं है. गर्मी से निपटने के लिए और ज्यादा संसाधनों व बेहतर तैयारी की जरूरत होगी.नई दिल्ली स्थित एक संस्था सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने कहा है कि भारत के कमजोर तबकों को आने वाली गर्मी से बचाने के लिए तैयारियां समुचित नहीं

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आ रही है भीषण गर्मी पर तैयार नहीं है भारत

अगले महीने से तापमान के तेजी से बढ़ने का अनुमान जाहिर किया जा चुका है लेकिन इस भीषण गर्मी से निपटने में भारत की व्यवस्था तैयार नहीं है.

देश Deutsche Welle|
आ रही है भीषण गर्मी पर तैयार नहीं है भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अगले महीने से तापमान के तेजी से बढ़ने का अनुमान जाहिर किया जा चुका है लेकिन इस भीषण गर्मी से निपटने में भारत की व्यवस्था तैयार नहीं है. गर्मी से निपटने के लिए और ज्यादा संसाधनों व बेहतर तैयारी की जरूरत होगी.नई दिल्ली स्थित एक संस्था सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने कहा है कि भारत के कमजोर तबकों को आने वाली गर्मी से बचाने के लिए तैयारियां समुचित नहीं हैं. सीपीआर ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा तैयार की गईं 37 योजनाओं का विश्लेषण किया है.

उनका निष्कर्ष है कि योजनाओं में समय पर जरूरी बदलाव नहीं किए जा रहे हैं और अधिकतर मामलों में इन योजनाओं के लिए अलग से वित्तीय या कानूनी मदद उपलब्ध नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि इन योजनाओं के तहत उन तबकों की पहचान नहीं की गई है, जिन्हें भीषण गर्मी से सबसे ज्यादा सुरक्षा की जरूरत होगी.

दर्जनों हीट प्लान तैयार

2010 में जब अहमदाबाद में तापमान 48 डिग्री पहुंच गया था और गर्मी के कारण 800 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, तब कई राज्यों ने ऐसी योजनाएं बनानी शुरू की थीं. शहर के अधिकारियों और अन्य संगठनों तेजी से कार्रवाई करते हुए एक ‘हीट प्लान' तैयार किया था जिसके तहत लोगों को गर्मी से बचाने के लिए कई तरह के उपाय सोचे गए थे. दक्षिण एशिया में यह अपनी तरह की पहली कोशिश थी, जिसमें लोगों को जागरूक करने से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों को ऐसी स्थिति के लिए विशेष प्रशिक्षण देने जैसे उपाय शामिल थे. साथ ही, घरों को ठंडा रखने वाली छत बनाने के लिए नारियल की छाल और कागज की लुग्दी जैसी चीजों को इस्तेमाल किया जाना भी जरूरी माना गया.

केंद्रीय और राज्यों के स्तर पर कई अन्य योजनाएं भी तैयार की गई हैं. सीपीआर में एसोसिएट फेलो और इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम में शामिल रहे आदित्य पिल्लै कहते हैं कि हीट प्लान बनाने के मामले में भारत ने खासी प्रगति की है. उन्होंने बताया, "कई दर्जन हीट प्लान बनाकर भारत ने पिछले एक दशक में विशेष प्रगति की है. लेकिन हमारा आकलन है कि इन योजनाओं में कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए.”

नैचरल रिसॉर्सेज डिफेंस काउंसिल में जलवायु और स्वास्थ्य योजनाओं के प्रमुख अभियंत तिवारी कहते हैं कि अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि चक्रवातीय तूफान आदि के मामले में यह स्पष्ट होता है कि कौन धन उपलब्ध कराएगा और कौन योजनाओं को लागू करेगा, जबकि इस मामले में ऐसा नहीं है. वह बताते हैं, "हीट प्लान के लिए वित्त एक ऐसा मामला है जिसके बारे में कोई बात नहीं करता. भारत सरकार भीषण गर्मी की गंभीरता को लेकर सचेत तो है लेकिन इस रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों को हल करना काफी कारगर साबित होगा.”

हजारों जानों का सवाल है

पिछले 30 साल में सिर्फ भारत में गर्मी से कम से कम 26 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. झुग्गी बस्तियों में रहने वाले, स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं, छोटे या बंद कमरों में काम करने वाले कारीगर, किसान और निर्माण कार्य में लगे मजदूर गर्मी के सबसे पहले शिकार होते हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के सालों में हीट वेव और बहुत ज्यादा तापमान लगातार आम होते जा रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन इनकी बारंबारता और तीव्रता को बढ़ा रहा है.

दक्षिण भारत में उमस एक ऐसी समस्या है जिसे सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है और उन इलाकों में तापमान के कम रहने के बावजूद गर्मी को और खतरनाक बना देती है. 2021 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि गर्मी के कारण काम के घंटों में सबसे ज्यादा नुकसान भारत को होगा जो सालाना सौ अरब घंटों से भी ज्यादा हो सकता है. इसका आर्थिक असर बहुत गंभीर होने की आशंका है.

छह साल में सबसे बुरा बिजली संकट झेल रहा है भारत

पिल्लै कहते हैं कि गर्मी से निपटने के तरीकों में बदलाव की सख्त जरूरत है. उदाहरण के लिए हीट वेव को आपदा घोषित किया जाना चाहिए. योजनाओं की नियमित समीक्षा होनी चाहिए. ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए जो इन योजनाओं के अमलीकरण और उसके लिए धन को सुनिश्चित करें. वह कहते हैं, "एक मजबूत आधार तैयार हो चुका है लेकिन ये बदलाव फौरन करने होंगे ताकि और जानों को नुकसान ना हो.”

वीके/एए (एपी)

2010 में जब अहमदाबाद में तापमान 48 डिग्री पहुंच गया था और गर्मी के कारण 800 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, तब कई राज्यों ने ऐसी योजनाएं बनानी शुरू की थीं. शहर के अधिकारियों और अन्य संगठनों तेजी से कार्रवाई करते हुए एक ‘हीट प्लान' तैयार किया था जिसके तहत लोगों को गर्मी से बचाने के लिए कई तरह के उपाय सोचे गए थे. दक्षिण एशिया में यह अपनी तरह की पहली कोशिश थी, जिसमें लोगों को जागरूक करने से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों को ऐसी स्थिति के लिए विशेष प्रशिक्षण देने जैसे उपाय शामिल थे. साथ ही, घरों को ठंडा रखने वाली छत बनाने के लिए नारियल की छाल और कागज की लुग्दी जैसी चीजों को इस्तेमाल किया जाना भी जरूरी माना गया.

केंद्रीय और राज्यों के स्तर पर कई अन्य योजनाएं भी तैयार की गई हैं. सीपीआर में एसोसिएट फेलो और इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम में शामिल रहे आदित्य पिल्लै कहते हैं कि हीट प्लान बनाने के मामले में भारत ने खासी प्रगति की है. उन्होंने बताया, "कई दर्जन हीट प्लान बनाकर भारत ने पिछले एक दशक में विशेष प्रगति की है. लेकिन हमारा आकलन है कि इन योजनाओं में कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए.”

नैचरल रिसॉर्सेज डिफेंस काउंसिल में जलवायु और स्वास्थ्य योजनाओं के प्रमुख अभियंत तिवारी कहते हैं कि अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि चक्रवातीय तूफान आदि के मामले में यह स्पष्ट होता है कि कौन धन उपलब्ध कराएगा और कौन योजनाओं को लागू करेगा, जबकि इस मामले में ऐसा नहीं है. वह बताते हैं, "हीट प्लान के लिए वित्त एक ऐसा मामला है जिसके बारे में कोई बात नहीं करता. भारत सरकार भीषण गर्मी की गंभीरता को लेकर सचेत तो है लेकिन इस रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों को हल करना काफी कारगर साबित होगा.”

हजारों जानों का सवाल है

पिछले 30 साल में सिर्फ भारत में गर्मी से कम से कम 26 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. झुग्गी बस्तियों में रहने वाले, स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं, छोटे या बंद कमरों में काम करने वाले कारीगर, किसान और निर्माण कार्य में लगे मजदूर गर्मी के सबसे पहले शिकार होते हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के सालों में हीट वेव और बहुत ज्यादा तापमान लगातार आम होते जा रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन इनकी बारंबारता और तीव्रता को बढ़ा रहा है.

दक्षिण भारत में उमस एक ऐसी समस्या है जिसे सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है और उन इलाकों में तापमान के कम रहने के बावजूद गर्मी को और खतरनाक बना देती है. 2021 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि गर्मी के कारण काम के घंटों में सबसे ज्यादा नुकसान भारत को होगा जो सालाना सौ अरब घंटों से भी ज्यादा हो सकता है. इसका आर्थिक असर बहुत गंभीर होने की आशंका है.

छह साल में सबसे बुरा बिजली संकट झेल रहा है भारत

पिल्लै कहते हैं कि गर्मी से निपटने के तरीकों में बदलाव की सख्त जरूरत है. उदाहरण के लिए हीट वेव को आपदा घोषित किया जाना चाहिए. योजनाओं की नियमित समीक्षा होनी चाहिए. ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए जो इन योजनाओं के अमलीकरण और उसके लिए धन को सुनिश्चित करें. वह कहते हैं, "एक मजबूत आधार तैयार हो चुका है लेकिन ये बदलाव फौरन करने होंगे ताकि और जानों को नुकसान ना हो.”

वीके/एए (एपी)

शहर पेट्रोल डीज़ल
New Delhi 96.72 89.62
Kolkata 106.03 92.76
Mumbai 106.31 94.27
Chennai 102.74 94.33
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