लखनऊ, 22 अक्टूबर: हाथरस (Hathras) आए विभिन्न नागरिक समाज संगठनों की एक टीम ने फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कई 'संस्थागत खामियां' बताईं गईं हैं. ये वो खामियां हैं जिसके कारण 19 साल की दलित लड़की (Dalit Women) के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की जांच में समझौता हुआ है. नागरिक समाज संगठनों के निकाय नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट की एक टीम ने बुलगड़ी गांव का दौरा किया. नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडे और आरटीआई कार्यकर्ता, लेखक मणि माला ने एक बयान जारी किया है.
इसमें कहा गया है, "हमारी फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने पाया कि जांच ठीक से नहीं की गई थी. एफआईआर दर्ज करने के बाद के 24 घंटे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इसके बावजूद, किसी ने भी यौन उत्पीड़न के एंगल से जांच नहीं की. मेडिकल परीक्षण लड़की की मृत्यु के बाद किया गया, जाहिर है इतनी देरी से किए गए परीक्षण में दुष्कर्म साबित नहीं हो सका." रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ित परिवार के बयानों में कोई विरोधाभास नहीं था.
इसमें आगे कहा गया, "पीड़ित को अस्पताल लाया गया लेकिन डॉक्टरों ने पुलिस को सूचित नहीं किया और न किसी पुलिसकर्मी या अधिकारी ने परिवार के सदस्यों के अनुसार जांच की थी. जबकि ऐसा होना जरूरी था. लड़की के मौत से पहले दिए गए बयान बताते हैं कि उसे पिछले छह महीनों से आरोपी पुरुषों द्वारा परेशान किया जा रहा था. उसे पहले भी एक बार खेत के पास खींचा गया था लेकिन तब वह बच गई थी. हालांकि, परिवार ने संदीप और लड़की के बीच संबंध की खबरों को नकार दिया."
रिपोर्ट में कहा गया है, "सफदरजंग अस्पताल में जब पीड़िता ने दम तोड़ा, तो बाहर बैठे परिवार के सदस्यों को पुलिस ने सूचना दी. परिवार को मामले में लूप में नहीं रखा गया. बाद में पुलिस उनकी सहमति या राय लिए बिना ही शव को दाह संस्कार के लिए ले गई." कुल मिलाकर रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि इस मुद्दे को दबाने का प्रयास किया गया था.