Budget 2020: देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नये सत्र 2020-21 की बजट की तैयारियों में मशगूल हैं. हालांकि देश की लगातार गिरती अर्थ व्यवस्था की खबरें उनके गले का फांस बनी हुई है. गौरतलब है कि साल 2019 दिसंबर माह की फुटकर महंगाई (CPI) लगभग करीब साढ़े पांच साल के सर्वोच्च स्तर 7.35 प्रतिशत तक पहुंच गयी थी. ऐसे में कहा जा सकता है कि महंगाई का यह ग्राफ वित्त मंत्री की बजट-2020 की तैयारियों को प्रभावित कर सकता है? यहां तक कि विख्यात अर्थ शास्त्रियों का भी मानना है कि वर्तमान सत्र का बजट तैयार करते समय वित्त मंत्री के लिए सब कुछ संतुलित करना आसान नहीं होगा. ध्यान रहे कि सामान्य खान-पान की सामग्रियों की कीमतों में निरंतर वृद्धि के कारण 2019 के अंतिम माह में फुटकर महंगाई (CPI) दर में 7.35 फीसदी की वृद्धि हुई थी. गौरतलब है कि इसके एक माह पूर्व यानि नवंबर में फुटकर महंगाई (CPI) 5.54 फीसदी थी. यही नहीं नवंबर माह में जिन खाद्य सामग्रियों की दरों में महंगाई 10.01 फीसदी थी, एक माह के अंतराल में ही यह आंकड़ा 14.12 फीसदी तक पहुंच गया.
दरअसल साल 2016 जुलाई के बाद 2019 दिसंबर वह पहला महीना था, जब महंगाई दर आरबीआई की पॉलिसियों के तहत सुविधा सीमा से 2-6 को पार किया है. ध्यान रहे कि इससे पूर्व साल 2014 जुलाई में फुटकर महंगाई दर अपने उच्चतम स्तर 7.39 फीसदी थी.
कहां और क्यों बढ़ी महंगाई:
पिछले कुछ माह में खाद्य सामग्रियों में 14.1 फीसदी की वृद्धि और प्याज-टमाटर सहित हरी सब्जियों में 60 से 70 फीसदी की वृद्धि हो जाने से दिसंबर माह में फुटकर महंगाई (CPI) में जबरदस्त उछाल आया है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2019 में सब्जियों की महंगाई दर लगभग 26 फीसदी थी. इसके एक माह के बाद ही इनकी कीमतों में करीब दस फीसदी का उछाल आया यानी अक्टूबर से नवंबर तक आते-आते सब्जियों की महंगाई दर 26 से 36 फीसदी हो गयी. यहां भी महंगाई की मार थमने के बजाय नवंबर से दिसंबर आते-आते 60.5 फीसदी की वृद्धि हो गयी. इस कदर बढी महंगाई के पीछे एक वजह इसी माह टेलीकॉम, रेल किराया एवं कारों की बढी कीमतों की भी अहम भूमिका रही है.
तेल की कीमतों में वृद्धि:
साल 2019, दिसंबर माह में तेल की लगातार बढ़ती कीमतों ने भी महंगाई के ग्राफ को बढ़ाया है. पेट्रोल डीजल के दरों में वृद्धि का असर फुटकर महंगाई दर पर भी पड़ा. इस वर्ष अमेरिका-ईरान के बीच छिड़े संघर्ष के बाद कच्चे तेल की कीमतों में न्यूनतम 5 फीसदी की तेजी देखने में आयी. पिछले सप्ताह तेल की कीमतों में थोड़ी राहत मिली है, यद्यपि अभी भी इसकी कीमत 65 डॉलर प्रति की ऊंची कीमत पर है. राजकोषीय घाटे की असली वजह तेल की बढ़ी हुई कीमतें भी हैं, यह स्थिति चिंताजनक है. उधर विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक ब्रेंट क्रूड जिसे कच्चा तेल कहते हैं की कीमतें 70 डॉलर की सीमा के भीतर रहती हैं तब तक बजट को अनियंत्रित कहना उचित नहीं होगा.
वित्त मंत्री के लिए बजट-2020 अग्नि परीक्षा से कम नहीं:
भारत की गिरती इकोनॉमी को देखते हुए समझा जा रहा है कि वित्त मंत्री बजट में सरकारी खर्चों को प्राथमिकता दे सकती हैं, क्योंकि इकोनॉमी में निवेश बढ़ाने का यही एकमात्र तरीका हो सकता है, क्योंकि निजी निवेश भी संतोषजनक नहीं है. लेकिन ऐसा करते हुए वित्त मंत्री को ज्यादा सजग भी रहना होगा, क्योंकि ज्यादा खर्च और निवेश से ज्यादा पैसा जनता तक तो पहुंचेगा, लेकिन इससे महंगाई का ग्राफ और भी बढ़ने की संभावना है. केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (Central Statistics Office) के एक आकलन के मुताबिक इस वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि 5 फीसदी हो सकती है. ऐसे में अर्थ व्यवस्था में संतुलन लाना वित्त मंत्री के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगी.
उम्मीद नई आर्थिक नीतियों से:
पिछले कुछ महीनों से प्याज, टमाटर और कुछ सब्जियों की लगातार बढ़ती कीमतों ने सरकार की अर्थ व्यवस्था के सारे दावों की पोल खोल कर रख दी हैं. ऐसे में सरकार एग्रीकल्चर व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कोल्ड स्टोरेज की संख्या बढ़ाने की ओर विशेष ध्यान देंगी. हालांकि प्याज की नई फसल आने के बाद प्याज की कीमतें गिरेंगी, लेकिन जनवरी की अन्य महंगाइयों पर सरकार नियंत्रित कर सकेगी, कह पाना मुश्किल है. क्योंकि जनवरी माह में बेस इफेक्ट और भी प्रभावी हो सकता है. वस्तुतः 2019 जनवरी में फुटकर महंगाई मात्र 2 फीसदी थी. इसके साथ ही दलहन और तिलहन सामग्रियों के मूल्य भी बढ़ने की संभावना है. अर्थ शास्त्रियों के अऩुसार नई अर्थ नीतियों के अनुसार अप्रैल 2020 तक फुटकर महंगाई (CPI) 6 फीसदी की ऊंचाई तक जा सकती है.
महंगाई का यह ग्राफ आरबीआई द्वारा तय मानक सुविधाजनक स्तर 2 से 6 फीसदी ज्यादा है. इस बात की संभावना बहुत कम है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (Monetarry policy committee) की अगले माह यानी फरवरी में होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में कोई बदलाव हो सकता है. महंगाई की इस ऊंची दर को देखने के बाद लगता है कि आरबीआई अपेक्षित सावधानियां बरतेगा.